आज एक खबर आई कि सुपरस्टार मनोज कुमार का देहांत हो गया है. लेकिन मैं इस खबर के जरिए आपको दिल्ली के एक ऐसे गांव में लेकर चलूंगी जहां शायद आपको लगे ही ना कि मनोज कुमार जा चुके हैं. यहां आपको मिलेगा वो घर जहां मनोज कुमार ने खाई थी बाजरे की रोटी और सरसों का साग. यहां आपको मिलेंगे वो खेत जहां मनोज कुमार ने गाए थे गाने. यहां आपको मिलेगा वो पीपल का पेड़ जिसे खुद मनोज कुमार ने लगाया था. इस गांव में वो बच्चे भी हैं जो आज बूढ़े हो चुके हैं लेकिन जिनसे मनोज कुमार ने खूब लाड किया था. दिल्ली के इस गांव का नाम है नांगल ठाकरां.
इस समय गर्मी अपने पूरे तेवर दिखा रही है. मौसम विभाग ने लू का अलर्ट जारी कर दिया है. मगर इस गर्मी में भी दिल्ली के नांगल ठांकरा गांव में आपको हवा के ठंडे झोंके मिलेंगे. यहां दूर-दूर तक आपको खेत ही खेत नजर आएंगे. एक बार को तो ऐसा भी होगा शायद कि आपको लगे कि आप दिल्ली में हैं ही नहीं. ऐसी ही ठंडक शायद सन् 1966 में सुपरस्टार मनोज कुमार को भी महसूस हुई थी. वो दिल्ली के इस गांव में आए और फिर अपनी फिल्म उपकार के लिए इस गांव को ही चुन लिया और शूटिंग शुरू हो गई.
फिल्म को रिलीज हुए आज 58 साल हो चुके हैं, मगर इस गांव में आज भी ऐसे लोग हैं जो मनोज कुमार और फिल्म की शूटिंग के किस्से सुनाते थकते नहीं हैं. इस गांव के लोग उस घर में ले जाते हैं जहां दिन-रात उपकार फिल्म की शूटिंग हुई थी. इस समय इस घर के मालिक हैं महेंद्र सिंह. उस समय उनके दादा जी से मनोज कुमार ने उनके घर में शूटिंग की इजाजत ली थी. उस वक्त महेंद्र सिंह की उम्र 14 साल थी.
ये भी पढ़ें: Manoj Kumar Death: लाल बहादुर शास्त्री की वो सलाह... और किसानों पर 'उपकार' कर गए मनोज कुमार
आज उन दिनों को याद करके महेंद्र सिंह बताते हैं,' डेढ़-दो महीने तक दिन-रात इसी घर में फिल्म की शूटिंग चली थी. हर दिन शूटिंग देखने इतने लोग आते कि जमीन से लेकर छत तक भीड़ ही भीड़ जमा हो जाती थी. एक बार तो मनोज कुमार ने खुद ही उनके दादा जी से कहा भी था, 'इतने लोग शूटिंग देखने आ रहे हैं, आपके घर की तो छत पर भी पैर रखने की जगह नहीं है. कहीं छत टूट ही ना जाए'. दादा जी और मनोज कुमार के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी तो दादा जी ने भी पलटकर जवाब दिया- तू अपनी शूटिंग कर, बाकी कोई चिंता ना कर'.
सबसे खास बात ये है कि आज बेशक मनोज कुमार इस दुनिया को अलविदा कहकर जा चुके हैं लेकिन दिल्ली के इस गांव में एक ऐसा पेड़ है जो आज भी उनके जिंदा होने का अहसास बचाकर रखे हुए है. इस पेड़ को आज भी गांव वाले मनोज कुमार का पेड़ कहते हैं. ये पीपल का पेड़ खुद इस गांव में शूटिंग के दौरान मनोज कुमार ने लगाया था. गांव के किसान रवींद्र कुमार ने जब ये पेड़ दिखाया तो एक अलग ही खुशनुमा सा अहसास दिल में कैद हो गया. ऐसी निशानियां छोड़कर जाने वाले मनोज कुमार को भला कोई कैसे भुला सकता है.
1967 में आई ये फिल्म मनोज कुमार ने ही लिखी थी और उन्होंने ही इसे डायरेक्ट किया था. ये दो भाइयों की कहानी है. इनमें से एक भारत का रोल मनोज कुमार ने ही किया था. दूसरा भाई पुरान जिसका किरदार प्रेम चोपड़ा ने निभाया था. दोनों भाई जिंदगी के अलग-अलग रास्ते चुनते हैं. भारत पढ़ा-लिखा होने के बाद भी गांव में रहकर खेती करता है और पुरान शहर में ही रहना चाहता है. ये फिल्म मनोज कुमार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की सलाह पर बनाई थी. उस समय देश गहरे अन्न संकट से जूझ रहा था. ऐसे समय में किसान कितना अहम रोल अदा कर सकते हैं ये फिल्म में बखूबी दिखाया गया है.