राजस्थान की सबसे बड़ी सेंचुरी में से एक केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब पर्यटकों को ई-रिक्शा की सुविधा मिलेगी. इससे सेंचुरी में डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से फैलने वाले प्रदूषण पर रोक लग सकेगी. इससे पहले सेंचुरी में प्लास्टिक का कोई भी सामान ले जाने पर 50 रुपये प्रति आइटम वसूलने का नियम लागू किया गया था. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के उप वन संरक्षक मानस सिंह ने बताया कि पर्यटकों के लिए उद्यान में मैनुअल रिक्शा चलाने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है. अब तक 90 से ज्यादा ई- रिक्शा का रजिस्ट्रेशन हो चुका है.
इससे पर्यटकों का समय भी बचेगा और प्रदूषण में भी कमी आएगी. साथ ही सेंचुरी में वाहनों का शोर भी नहीं होगा.
मानस सिंह कहते हैं कि ई- रिक्शा के जरिये सेंचुरी में घूमने से पर्यटकों का समय बचेगा. साथ ही साथ ही रिक्शा चालकों को भी किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. सेंचुरी प्रशासन ने मैनुअल रिक्शा की जगह फॉसिल -फ्यूल फ्री ई- रिक्शा को लाया गया है. ये पर्यावरण संरक्षण की नजर से बेहतरीन है. केवलादेव प्रशासन पर्यटकों के साथ नॉइज़ फ्री एवं प्रदूषण मुक्त पर्यावरण संरक्षण के लिए संकल्पबद्ध है.
केवलादेव सेंचुरी पक्षी प्रेमियों की सबसे पसंदीदा जगहों में से एक है. इसीलिए पूरी दुनिया में इसका नाम है. घना 350 से ज्यादा प्रवासी पक्षियों का घर है. यहां हर साल सैंकड़ों की संख्या में देशी- विदेशी पर्यटक पक्षियों के साथ वन्यजीवों की अटखेलियां निहारने पहुंचते हैं. मानस कहते हैं कि इन्हीं सब चीजों को ध्यान में रखते हुए, पर्यटकों की सुविधा के लिए और पर्यावरण संरक्षण के लिए इस तरह के निर्णय लिए जा रहे हैं.
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ई-रिक्शा शुरू करने से कुछ दिन पहले ही सेंचुरी में अंदर प्लास्टिक ले जाने पर पाबंदी लगा दी थी. मानस सिंह कहते हैं, “घना को प्लास्टिक मुक्त करने की दिशा में यह पहल की गई है. पर्यटक पार्क में प्लास्टिक लेकर जाते हैं, लेकिन बाहर नहीं लाते. इसीलिए पक्षियों के प्रवास की जगहों पर प्लास्टिक फैल रहा था.
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अब हमने एंट्री गेट पर चेकिंग शुरू की है. इस कोशिश में हमने प्रत्येक प्लास्टिक उत्पाद पर 50 रुपये प्रति उत्पाद फीस जमा कर एक टैग लगा दिया जाता है. जब पर्यटक पार्क से बाहर आते हैं तो टैग लगे हुए प्लास्टिक उत्पाद की वापसी सुनिश्चित की जाती है. अगर वे उसे बाहर नहीं लाते तो पहले लिए हुए 50 रुपये बतौर जुर्माना रख लिए जाते हैं. मानस जोड़ते हैं कि इस पहल से का काफी अच्छा असर देखने को मिला है. पार्क में फैलने वाले प्लास्टिक में कमी हुई है.”