फसल-उपरांत प्रबंधन और खाद्यान्न प्रबंधन के एक विशेषज्ञ ने कहा कि फ्लैट बल्क स्टोरेज (एफबीएस) भारत सरकार, विशेषकर सहकारिता मंत्रालय के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है, जिसने 70 मिलियन टन खाद्यान्न भंडारण की व्यवस्था शुरू की है. सहकारिता मंत्रालय ने फरवरी के महीने में कहा था कि केंन्द्र से सहकारिता के क्षेत्र में विश्व के सबसे बड़े खाद्य भंडारण योजना की शुरुआत की है. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर यह योजना देश के कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू हो चुकी है. इस पर लगातार काम भी चल रहा है और देश को इसका फायदा भी मिल रहा है.
इस योजना में तेजी लाने के लिए सहकारिता मंत्रालय, खाद्य आपूर्ति मंत्रालय, फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम के बीज कई एमओयू पर हस्ताक्षर भी हुए हैं. इसके तहत देश में विकसित किए जा रहे भंडारण क्षमता का पूरी तरह से इस्तेमाल किया जाएगा. इसमें बुनियादी स्तर पर जो पैक्स के जरिए स्टोरेज विकसित किए जा रहे हैं उनका भी पूरा-पूरा इस्तेमाल किया जाएगा. बिजनेसलाइन से बात करते हुए लोटस हार्वेसटेक प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और विशेषज्ञ मुनिश्वर वासुदेवा ने कहा कि पीबीएस के पास विभिन्न उत्पादों के भंडारण की सुविधा है. यह स्टोरेज को लेकर कई सारे विकल्प भी उपलब्ध कराता है.
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मुनिश्वर वासुदेवा के अनुसार सहकारिता मंत्रालय सभी प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में वेयरहाउस बनाने के लिए खर्च कर रहा है. इसके बाद एफसीआई उन सभी वेयरहाउस को इंडस्ट्रीयल साईलो के तौर पर बदल देगा. यह उस आधार पर किया जाएगा जहां पर उत्पादक और उपभोक्ता दोनों अलग-अलग होंगे. इन वेयरहाउस की स्थापना करना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह किसानों को वेयरहाउस रसीद उपलब्ध कराने में मदद करेगा. उन रसीद के माध्यम से किसान उत्पादों को बेचे बगैर लोन लेकर अपनी जरुरतें पूरी कर सकते हैं और फिर जब उत्पाद के अच्छे दाम मिलेंगे तब बाजार में उसे लाकर बेच सकेंगे.
मुनिश्वर वासुदेवा जिन्होंने अडानी लॉजिस्टिक के साथ मिलकर देश में कई साइलो स्थापित करने का काम किया है उन्होंने कहा कि फार्म लेवल पर इन साइलो में 170-180 टन माल का भंडारण किया जा सकता है. क्योंकि 40-42 प्रतिशत किसान जूट के बैग का इस्तेमाल करते हैं. जबकि 15-20 प्रतिशत किसान सीधे कमरे में ही बिना कोई वैज्ञानिक तरीकों को अपनाएं ही अपने उत्पाद रखते हैं. वहीं 10-15 प्रतिशत किसान धातु की बनी वस्तुओं का इस्तेमाल करके भंडारण करते हैं और बाकी जो किसान बचते हैं वो आज भी पारंपरिक तरीकों से स्थानीय सामग्री का इस्तेमाल करके बनाए गए वस्तुओं में भंडारण करते हैं.
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उनका भंडारण खरीद और वितरण बैग की खरीद में आने वाली लागत के साथ मैन्युअल हैंडलिंग पर निर्भर करता है. इसमें तेजी लाना थोड़ा मुश्किल कार्य है. जबकि जो खाद्यान्न बोरे में रखे जाते हैं उनकी गुणवत्ता और वजन पर असर पड़ता है. हालांकि यह हवादार होता है लेकिन आधुनिक नहीं होने का कारण इसमें परेशानी आती है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नीति ऐसी होनी चाहिए की खेत से भंडारण तक खाद्यान्न पहुंचने के दौरान नुकसान को जितना हो सके कम किया जाए. क्योंकि इस दौरान परिवहन और उतार-चढ़ाव में खाद्यान्न की बर्बादी होती है. जहां पर 70 फीसदी खाद्यान्न वापस होता है और उपभोग में लाया जाता है. इसलिए किसानों को भंडारण के वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.