भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधने वाला त्योहार रक्षाबंधन नजदीक आ गया है. बहन अपने भाईयों के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधेंगी. इस पर्व पर रक्षासूत्र का सबसे ज्यादा महत्त्व है, जो कच्चे सूत जैसी सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे और सोने, चांदी जैसी मंहगी चीजों की हो सकती है. लेकिन राखी अगर ऐसी हो जिसमें खेती-किसानी, स्वदेशी बीजों और महिलाओं के उत्थान से जुड़ी हो तो कैसा लगेगा.
ऐसी ही एक कोशिश छिंदवाड़ा के पास मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बॉर्डर पर स्थित परड़सिंहा गांव में चल रही है. जिसमें बनने वाली राखियां स्वदेशी बीजों के संरक्षण और केमिकल फ्री खेती का संदेश दे रही हैं. हर राखी में बीज है.
इस मिशन को बढ़ाने वाली श्वेता ने बताया कि इस गांव में बनने वाली हर डिजाइन की राखी की अपनी एक कहानी है, जिसे राखी के साथ लिखा गया है. इस राखी में जो कुछ भी लगा हुआ है वो इसी गांव में पैदा हुआ है. यहां इस बार 70 हजार राखी बनाई गई थीं. जिसमें से अधिकांश बिक गई हैं. हर राखी में स्वदेशी बीज लगा हुआ है. जो धागा लगा है वो देशी कॉटन से बना धागा है.
ये लोग इस गांव में मल्टीक्रॉपिंग करते हैं. यानी एक ही फसल की बुवाई नहीं करते. खेती के मोनो कल्चर को नहीं बढ़ाते. बीटी कॉटन का इस्तेमाल नहीं करते. यहां के किसानों का मानना है कि बीटी की वजह से उनकी निर्भरता मल्टीनेशनल कंपनियों पर बढ़ रही है. इसलिए देसी कपास की खेती करके, उसके धागे को नेचुरल रंगों से रंगाई करते हैं. धागा चरखे से बनाते हैं.
कम से कम 250 ग्रामीण औरतें यह काम कर रही हैं. यहां की बनी राखी को आप बीज पत्र या बीज बंध बोल सकती हैं. तो अगर आप नेचर से जुड़ी हुई हैं तो बेशक अपने भाई की कलाई पर खेती के लिए संदेश देने वाली राखी बांध सकती हैं.
कुछ लोग मिलकर 'ग्राम आर्ट' के नाम से ग्रुप चलाते हैं. इसमें कुछ किसान, कलाकार और महिलाएं शामिल हैं. ये अलग-अलग विचारों और पहचान वाले लोग हैं. लेकिन वह विचार और पहचान जो इन सभी को जोड़ती है और हमें सामूहिक बनाती है, वह यह है कि ये सभी एक गांव में और उसके आसपास रह रहे हैं और काम कर रहे हैं. खेती के बारे में चिंतित हैं. ये लोग कलाकृतियां भी बनाते हैं.