यूपी में चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय आर. भूसरेड्डी ने बसंत कालीन गन्ना बुवाई के सम्बन्ध में किसानों को विस्तृत एडवाइजरी जारी की है. इसमें उन्होंने विभाग की 'पंचामृत योजना' का जिक्र करते हुए कहा कि इसके अन्तर्गत पांच घटक शामिल हैं. इसमें ट्रेंच विधि द्वारा गन्ना बुवाई, गन्ने के साथ सहफसली खेती पेड़ी प्रबंधन, ड्रिप विधि द्वारा सिंचाई तथा ट्रैश मल्चिंग विधि से बुवाई की जा सकती है. किसान इन घटकों को अपनाकर पैदावार में वृद्धि कर सकते हैं.
बसंत काल में ट्रेंच विधि से गन्ना बुवाई करके जहां 60 से 70 प्रतिशत जमाव प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा गन्ने के साथ मूंग व उड़द की सहफसली खेती द्वारा अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है. इन दलहनी फसलों की जड़ों में पाये जाने वाले बैक्टीरिया द्वारा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का अवशोषण कर मिट्टी उर्वरता में भी वृद्धि होती है. ड्रिप विधि द्वारा सिंचाई से पानी की बचत कर गन्ने की जड़ों के पास पर्याप्त सिंचाई कर उपज में अत्यधिक वृद्धि की जा सकती है.
पेड़ी प्रबंधन तकनीक से 'रैटून मैनेजमेंट डिवाइस' द्वारा 20 से 25 प्रतिशत कम लागत में उतनी ही उपज प्राप्त कर सकते हैं. ट्रैश मल्चिंग द्वारा मिट्टी की नमी को संरक्षित कर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि के साथ खरपतवार नियंत्रण भी की सकती है.
भूसरेड्डी ने कहा कि मौसम और तापक्रम को ध्यान में रखते हुए किसान 15 फरवरी से बसंत कालीन गन्ने की बुवाई शुरू कर दें. बुवाई का काम हर हाल में 30 अप्रैल तक पूरा कर लें. उन्होंने गन्ना विकास विभाग द्वारा गठित महिला स्वयं सहायता समूहों को सुझाव दिया कि 'सिंगल बड विधि' द्वारा नवीन गन्ना किस्मों की अधिक से अधिक पौध तैयार करना अभी से प्रारम्भ कर दें, जिससे 25 से 30 दिन बाद किसानों को उन पौधों का वितरण किया जा सके.
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भूसरेड्डी ने कहा कि किसान, विभाग की 'गन्ना किस्म स्वीकृत उपसमिति' द्वारा यूपी के लिए स्वीकृत गन्ना किस्मों की ही बुवाई करें. स्वीकृत किस्मों में उपज एवं चीनी परता में वृद्धि के साथ-साथ कीट और रोगों से भी लड़ने की क्षमता होती है. बसंत कालीन गन्ना बुवाई हेतु नवीन गन्ना किस्में भी लगाई जा सकती हैं. इनमें मध्य एवं पश्चिमी यूपी के लिए को शा. 13235, को 15023, को लख. 14201, को. शा. 17231, को. शा. 14233, को. शा. 16233, को. शा. 15233, को लख. 14204, 15207 किस्मों को लगाया जा सकता है. इसके अलावा पूर्वी यूपी के लिए 'को लख 15466 लगाई जा सकती है और ऊसर जमीन में यू.पी. 14234 की बुवाई कर किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है.
उन्होंने किसानों को आगाह किया कि गन्ना किस्म 'कोशा 13235' और 'को 15023' में अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग हानिकारक है, अतः इसका उपयोग निश्चित मात्रा में ही करें. इन दोनों किस्मों की टाप ड्रेसिंग, मानसून से पहले ही पूरा करना बेहतर होगा. मानसून के बाद नाइट्रोजन का उपयोग बिल्कुल न करें. उन्होने किसानों से अपील की है कि अन्य प्रदेशों की गन्ना किस्में जो यूपी में स्वीकृत नहीं हैं, अथवा प्रदेश के शोध केंद्रों के अधीन अभी ट्रायल पर चल रही हैं, उन किस्मों की बुवाई कदापि न करें.
बसंत कालीन गन्ना बुवाई में संतुलित रूप में उर्वरकों के प्रयोग पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि किसान उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करें. सामान्य दशा में 180 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फास्फोरस, 60 किग्रा पोटाश तथा 25 किग्रा जिंक सल्फेट का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करें. नाइट्रोजन की मात्रा को 03 हिस्सों में बांटकर 03 अलग समय पर प्रयोग करें. इन तत्वों की पूर्ति हेतु बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 130 किग्रा यूरिया 500 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट, 100 किग्रा म्यूरेट आफ पोटाश तथा 25 किग्रा जिंक सल्फेट नालियों में प्रयोग करें. यूरिया की शेष 260 किग्रा मात्रा को बुवाई के बाद एवं मानसून से पहले दो बार में टॉप ड्रेसिंग के रूप में दे. भूसरेड्डी ने सुझाव दिया कि इसके लिए नैनो यूरिया का उपयोग करने से उर्वरकों की क्षमता बढ़ जाती है. उन्होने बताया कि गन्ने में फास्फोरस की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट से करने पर 11 प्रतिशत सल्फर की अतिरिक्त पूर्ति होती है, जिससे उपज एवं शर्करा प्रतिशत में वृद्धि होती है.
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फसल में कार्बनिक पदार्थों की पूर्ति हेतु प्रति हेक्टेयर की दर से 100 कुंतल गोबर की सड़ी खाद अथवा 50 कुंतल प्रेसमड अथवा 25 कुंतल वर्मी कम्पोस्ट के साथ 10 किग्रा एजोटोबैक्टर व 10 किग्रा पी.एस.बी का प्रयोग खेत की तैयारी के समय अवश्य करें. कार्बनिक पदार्थों के प्रयोग से मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है. साथ ही मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि भी होती है. जिससे मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता में इजाफा होता है। कीट नियंत्रण हेतु फिप्रोनिल 0.3 जी 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से नालियों में पेड़ों के ऊपर डाल कर ढकें.
उन्होने कहा कि चूंकि 'लाल सड़न' गन्ने की एक बीज जनित बीमारी है. इस बीमारी का शुरुआती संक्रमण बीज गन्ने से होता है, इसलिए किसान गन्ना बुवाई से पूर्व बीज का उपचार अवश्य करें. बीज उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम अथवा थायोफिनेट मेथिल 0.1 प्रतिशत की दर से 112 लीटर पानी में 112 ग्राम रसायन मिलाकर गन्ने के एक अथवा दो आँख के टुकड़ों को 10 मिनट तक शोधित करने के बाद बुवाई करें. इस बीमारी से बचाव हेतु रोग रहित शुद्ध स्वस्थ विभागीय नर्सरी, पंजीकृत गन्ना बीज उत्पादकों की नर्सरी या अपने स्वस्थ खेत से ही बीज लेकर बुवाई करें.
भूसरेड्डी ने कहा कि किसान, लाल सड़न रोग से संक्रमित खेत में कम से कम एक वर्ष तक गन्ना न बोयें. ऐसे खेत में गन्ने के स्थान पर अन्य फसल की बुवाई कर फसल चक्र अपनाएं, क्योंकि लाल सड़न का रोगजनक, बिना पोषक पौधे अर्थात गन्ने के बिना भी 06 माह तक सक्रिय रहता है. किसान, संक्रमित गन्ने की पेड़ी भी लेने से बचें. भूमिगत कीटों जैसे दीमक, व्हाइट ग्रब तथा रूट बोरर से बचाव हेतु जैविक कीटनाशक कवक मेटाराइजियम एनीसोपली व बावेरिया बेसियाना की 05 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 02 कुंतल गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर अवश्य प्रयोग करें.
खेत की तैयारी के समय गहरी जुताई कर अंतिम जुताई के समय यदि 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 2 से 3 कुंतल गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में प्रयोग करें तो लाल सड़न के रोगजनक 'कोलेटोट्राइकम फॉल्केटम' का मिट्टी में संक्रमण नही होगा. इससे फसल पर मृदा द्वारा लाल सड़न रोग के फैलने की संभावना क्षीण हो जाती है. उन्होंने बताया कि ट्राइकोडर्मा, एक जैव उत्पाद है, जो गन्ने की फसल को लाल सड़न रोग के साथ-साथ उकठा (विल्ट) एवं पाइन एप्पल जैसे मृदा जनित रोगों से भी गन्ना की फसल को बचा कर इन रोगों के फफूंद को खाकर नष्ट कर देता है.
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