Ground Report: अधिक कमाई होने के बावजूद कर्ज के बोझ से क्यों दबे जा रहे पंजाब के किसान

Ground Report: अधिक कमाई होने के बावजूद कर्ज के बोझ से क्यों दबे जा रहे पंजाब के किसान

पंजाब के किसानों ने संस्थानों और निजी साहूकारों से एक लाख करोड़ रुपये का लोन लिया है जो देश में सबसे अधिक है. अलग-अलग स्टडी में पंजाब पर 70,000 करोड़ रुपये से 100,000 करोड़ रुपये के बीच कर्ज का अनुमान लगाया गया है. पंजाब में प्रति कृषि परिवार ऋण देश में तीसरा सबसे अधिक है.

भारी कर्ज के बोझ तले दबे हैं पंजाब के किसानभारी कर्ज के बोझ तले दबे हैं पंजाब के किसान
मनजीत सहगल
  • Chandigarh,
  • Sep 18, 2023,
  • Updated Sep 18, 2023, 1:10 PM IST

प्रति कृषि परिवार औसत मासिक आय में दूसरे स्थान पर होने के बावजूद, पंजाब के किसान भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. यह कर्ज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बढ़ने के साथ कई गुना बढ़ रहा है. विभिन्न अध्ययनों में पंजाब पर 70,000 करोड़ रुपये से 100,000 करोड़ रुपये के बीच वित्तीय बोझ का अनुमान लगाया गया है. इस साल अगस्त में लोकसभा में पेश की गई राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब के प्रत्येक किसान परिवार पर वित्तीय संस्थानों का अनुमानित 2.95 रुपये का कर्ज बकाया है, जो 27 अन्य राज्यों के किसानों के बीच सबसे अधिक है. रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात और हरियाणा के किसानों ने क्रमशः 2.28 लाख रुपये और 2.11 लाख रुपये कर्ज लिए और वे दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं.

इस साल फरवरी में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में प्रति कृषि परिवार (पीएएच) का औसत बकाया ऋण 2,03,249 रुपये था, जो आंध्र प्रदेश और केरल के बाद देश में तीसरा सबसे अधिक था. प्रत्येक किसान परिवार पर बैंकों का क्रमशः 2,45,554 और 2,42,484 रुपये बकाया था.

इस मामले में देविंदर शर्मा जैसे कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि नाबार्ड की से जारी आंकड़ों में पंजाब में आढ़तिया कहे जाने वाले निजी साहूकारों द्वारा दिया गया ऋण शामिल नहीं हो सकता है. इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि पंजाब के किसान निजी साहूकारों पर अधिक निर्भर हैं क्योंकि नेशनलाइज्ड बैंकों की तुलना में उनसे उधार लेना आसान था.

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2008 में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि कुल कर्ज का 54.17 प्रतिशत कमीशन एजेंटों और निजी साहूकारों के माध्यम से लिया गया था जो दो से पांच प्रतिशत के बीच मासिक ब्याज दर वसूल रहे थे. 1998 में किए गए पहले के अध्ययन से पता चलता है कि छोटे और मध्यम किसान बड़े किसानों की तुलना में अधिक लोन उठा रहे थे. उसी वर्ष आईडीसी द्वारा किए गए एक केस अध्ययन से पता चला कि किसानों ने 888.55 करोड़ रुपये उधार लिए थे, जिसमें से 92 प्रतिशत राशि छोटे से मध्यम किसानों ने उधार ली थी.

लोन माफी से केवल 24 प्रतिशत किसानों को लाभ

तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2018 से 2022 के बीच 5.63 लाख छोटे और सीमांत किसानों का 4,610 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था. इस पहल की कृषक समुदाय ने सराहना की लेकिन इससे केवल 24 प्रतिशत किसानों को ही लाभ हुआ. एसबीआई द्वारा किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि आठ लाख पात्र किसान थे जिन्होंने लोन माफी के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनमें से 76 प्रतिशत को ऋण माफी योजना से लाभ नहीं मिल सका क्योंकि राज्य का खजाना खाली था.

पंजाब में किसानों का कर्ज़ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होता है. उदाहरण के लिए, अगर दादाजी कर्ज लेते हैं तो उनके पोते-पोतियां कर्ज चुकाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते हैं. इस बारे में मोहाली के छोटे किसान रणजीत सिंह जिनके पास एक एकड़ जमीन है, वे कहते हैं कि उनके भाई सहित पांच सदस्यीय परिवार जमीन पर गेहूं, चावल और आलू उगाता है. रंजीत के दिवंगत दादा ने पांच लाख रुपये का कर्ज लिया था जिसे वह चुका नहीं सके. इसका भुगतान परिवार द्वारा ज़मीन का एक हिस्सा बेचकर किया गया था.

रणजीत सिंह कहते हैं, "उद्योदपतियों की तरह, हमें भी फसल उगाने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है. फसल उगाने के लिए प्रति एकड़ कम से कम 25,00 रुपये की जरूरत होती है. ऋण माफी योजना एक सपना साबित हुई क्योंकि वास्तविक लाभार्थी अछूते रह गए. केवल नेताओं के करीबी लोगों को छूट दी गई. जिन लोगों को छूट नहीं मिल सकी, उनसे बैंकों द्वारा हर्जाना लिया गया. लोन मौके पर ही माफ किया जाना चाहिए. यदि आप किसान को कर्ज के जाल से बाहर निकालने में मदद कर रहे हैं तो अधिक फसल उगाएंगे.'

जाने-माने कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि देश में नीतियां किसानों से ज्यादा कॉरपोरेट-अनुकूल हैं. जहां उद्योगपतियों के कर्ज माफ किए जा रहे हैं, वहीं किसान या तो आत्महत्या कर रहे हैं या जेलों में डाले जा रहे हैं. वे कहते हैं, "जब भी हम कृषि लोन के बारे में बात करते हैं तो पंजाब के किसान देश में शीर्ष पर हैं. किसान तभी कर्ज से बाहर आ सकते हैं जब खेती लाभकारी हो. नीति निर्माताओं ने यह ध्यान में रखे बिना कि किसान पहले से ही भारी कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं, उन्हें और अधिक लोन देने के पक्ष में हैं. इसलिए उन्होंने बकाया ऋण का भुगतान करने के लिए दूसरा ऋण उठाया. इससे वास्तव में कृषि बर्बाद हो गई है और इसके परिणामस्वरूप संकट पैदा हो गया है. यह दुख की बात है कि कृषि क्षेत्र को जानबूझकर गरीब बना दिया गया है.'' 

शर्मा ने कहा कि एक किसान को अपने ट्रैक्टर को फाइनेंस कराने के लिए 13 प्रतिशत तक ब्याज देना पड़ता है, जबकि एक लक्जरी कार को चार से पांच प्रतिशत पर फाइनेंस किया जा रहा है. पंजाब में प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय 26,701 है जो मेघालय (29348) के बाद दूसरी सबसे अधिक है. देविंदर शर्मा कहते हैं कि यह एक सरकारी चपरासी के मासिक वेतन से काफी कम है और यह दर्शाता है कि हम एक किसान की ताकत को चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी के बराबर भी नहीं बढ़ा सकते.

कर्ज का जाल किसानों और खेतिहर मजदूरों को मार रहा

2015-16 की कृषि जनगणना रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में कृषक परिवारों की कुल संख्या 10.53 लाख है. पंजाब के किसानों का औसत खेत का आकार और आय कई अन्य राज्यों में अन्य किसानों की तुलना में अधिक हो सकती है, लेकिन उनमें से 89 प्रतिशत कर्ज में डूबे हुए हैं. पंजाब के चुनावों के दौरान बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन सरकार बनने पर उन्हें पूरा करने में विफलता देखी जाती हैक्योंकि राज्य का खजाना खाली है. पंजाब का वर्तमान बकाया लोन 2.63 लाख करोड़ रुपये (2021-22 आरई) है, जो जीएसडीपी का 45.88 परसेंट है. राज्य का मौजूदा ऋण देश में सबसे खराब हैं, जो इसे और भी अधिक लोन के जाल में धकेल रहा है.

पिछले दो दशकों के दौरान हजारों तनावग्रस्त किसानों ने आत्महत्याएं की हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना सहित तीन प्रमुख पंजाब विश्वविद्यालयों द्वारा किए गए 17 साल के अध्ययन, जिसकी एक रिपोर्ट 2018 में जारी की गई थी, में पाया गया कि इस अवधि के दौरान 9291 किसानों और 7300 खेत मजदूरों ने आत्महत्या की. एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि 2017 से 2021 के बीच 1000 किसानों ने आत्महत्या की.

इनमें से 88 प्रतिशत आत्महत्याओं के लिए भारी कृषि ऋण जिम्मेदार था और आत्महत्या करने वाले 77 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत किसान थे. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एक अन्य अध्ययन में दावा किया गया है कि पंजाब के किसानों ने 1,00000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज उठाया है. पंजाब के प्रत्येक किसान परिवार पर साहूकारों का 10 लाख रुपये बकाया है. कर्ज के जाल में फंसे अधिकांश किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जो राज्य के कृषक परिवारों का 35 प्रतिशत हिस्सा हैं.

जमीन का बंटवारा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. सीमांत और लघु किसानों की संख्या बढ़ रही है. किसान केवल अपनी बुनियादी जरूरतें ही पूरी कर पाते हैं और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. खेती अब कोई लाभकारी व्यवसाय नहीं रह गया है. एक अनुमान के मुताबिक पंजाब के 12 प्रतिशत किसान खेती छोड़ चुके हैं. छोटे किसानों की संख्या जो 1991 में पांच लाख थी, 2001 में घटकर तीन लाख रह गई.

कर्ज के लिए फसल की बर्बादी और बढ़ती लागत जिम्मेदार

इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के निदेशक प्रोफेसर वरिंदर शर्मा ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा कि हरित क्रांति के बाद पंजाब और अन्य जगहों पर खेती पूंजी गहन और व्यावसायिक हो गई है.

"मशीनरी, सिंचाई सहित कृषि इनपुट के प्रबंधन के लिए लोन लिए बिना फसल उगाना संभव नहीं हो सकता है, जिसके लिए पूंजी की आवश्यकता होती है. किसान बैंकों से संपर्क करते हैं जो उनकी मदद करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उनकी अपनी सीमाएं और नियम हैं. इसने किसानों को आज अनौपचारिक क्षेत्र से लोन लेने के लिए मजबूर किया है. फसल की बर्बादी, उच्च इनपुट लागत, बढ़ती कीमतें, लाभकारी कीमतों की अनुपलब्धता और बाढ़, सूखा और मूसलाधार बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने कर्ज के ग्राफ को बढ़ा दिया है.'

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आईडीसी द्वारा 1997 से 2008 के बीच किए गए अध्ययन से पता चलता है कि किसान उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की खरीद के अलावा विवाह, घर बनाने, सामाजिक समारोहों की मरम्मत जैसे गैर-उत्पादक उद्देश्यों के लिए भी लंबे दिनों का लोन उठा रहे हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा किसानों के खर्च बढ़ने की आदतों और जीवनशैली पर बढ़ते शहरी प्रभाव के कारण भी हो रहा है.

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