बुंदेलखंड के पठारी इलाके में विंध्य की पहाड़ियों में इस आम चुनाव का शोरगुल सुनाई नहीं दे रहा है. इस इलाके की VIP Seat टीकमगढ़ में एक तरफ केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक मोदी लहर पर सवार हो कर लगातार चौथी बार जीतने की फिराक में हैं, वहीं कांग्रेस इस सीट को जीतकर अपना 20 साल का वनवास पूरा करने के लिए जद्दोजहद कर रही है. कांग्रेस ने इस बार जतारा के रहने वाले पंकज अहिरवार को उम्मीदवार बनाया है. तीन चौथाई ग्रामीण इलाके वाली इस सीट पर अहीर, अहिरवार समीकरण का जादू जिसके पक्ष में चल गया, चुनाव की लाटरी उसी के नाम पर लगना तय माना जा रहा है. वीरेंद्र चौधरी का सियासी कद, उनका मजबूत पक्ष है. वह लगातार तीन बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं. वहीं 2004 से इस सीट पर जीत के लिए तरस रही कांग्रेस को अब 2024 में वनवास खत्म होने की उम्मीद है.
बुंदेलखंड के अति पिछड़े इलाकों में शुमार टीकमगढ़ संसदीय सीट का विस्तार दो जिलों की 8 विधानसभा सीटों तक है. इसमें टीकमगढ़ जिले की 5 विधानसभा सीट (निवाड़ी, पृथ्वीपुर, खरगापुर, टीकमगढ़, और जतारा) और छतरपुर जिले की 3 विधानसभा सीट (बिजावर, छतरपुर और महाराजपुर) शामिल हैं. पिछले Assembly Election में इन दोनों जिलों की अधिकांश सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. भाजपा में मोदी लहर से पहले तक यह इलाका कांग्रेस का गढ़ रहा है.
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टीकमगढ़ सीट पर अनुसूचित जाति में अहिरवार और पिछड़ी जातियों में यादव (अहीर) मतों का समर्थन, जिसके पक्ष में होता है, चुनावी जीत उसी की होती है. पिछले चुनावों में 'अहीर अहिरवार समीकरण' कांग्रेस के पक्ष में नहीं होने के कारण भाजपा को निर्णायक बढ़त मिलती रही है. यह परिपाटी भाजपा की कद्दावर नेता रहीं उमा भारती के समय से शुरू हुई है.
गैर यादव समाज से ताल्लुक रखने वाली उमा भारती को 1989, 1991, 1996 और 1998 में विजय मिली थी. टीकमगढ़ के डूंडा गांव में जन्मी उमा भारती पिछड़ी जाति में लोध समुदाय से आती है और उन्होंने इस क्षेत्र में पिछड़ी जातियों को भाजपा के पक्ष में लामबंद करने की सफल कोशिश की थी.
इसके बाद 2004 के आम चुनाव तक पड़ोसी राज्य यूपी की प्रमुख पाटी सपा ने बुंदेलखंड के रास्ते एमपी में अपना विस्तार शुरू किया. इसके फलस्वरूप सपा को इस इलाके से एमपी की विधानसभा में पहुंचने का मार्ग सुलभ हो सका. इसका असर लोकसभा चुनावों में भाजपा के पक्ष में देखने को मिलने लगा. नतीजतन, इस इलाके के अहीर वोट बैंक में सपा की सेंधमारी का लाभ भाजपा को मिलना शुरू हो गया. लोकसभा चुनाव में सपा के उम्मीदवार उतारने से पहले तक यादव वोट कांग्रेस को जाता था, लेकिन बाद में यह वोट बैंक सपा और और कांग्रेस में बंटने के कारण अन्य पिछड़ी जातियां भाजपा के पक्ष में लामबंद होने लगीं.
इसी वजह से कांग्रेस ने इस चुनाव में सपा के साथ गठजोड़ करके भाजपा को हराने की रणनीति बनाई है. इस गठबंधन के फलस्वरूप ही सपा को एमपी की 29 में से सिर्फ एक सीट (खजुराहो) मिली है. इसके एवज में सपा ने यूपी में कांग्रेस को 17 सीटें दी हैं.
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कांग्रेस ने इस सीट पर बाहरी बनाम स्थानीय प्रत्याशी का दांव चल कर पिछले चुनावों में इस सीट पर कब्जा जमाने की कोशिश की, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. दरअसल वीरेंद्र खटीक सागर के रहने वाले हैं. उन्हें बाहरी बताकर कांग्रेस ने 2009 में वृंदावन अहिरवार, 2014 में कमलेश वर्मा और 2019 में किरण अहिरवार को चुनाव में उतारने के प्रयोग किए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. जानकारों के मुताबिक इसकी वजह स्थानीय या बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा नहीं है, बल्कि जातीय समीकरण ही इस सीट पर हार जीत का परिणाम तय करते रहे.
चुनावी पंडितों का एक मत यह भी है कि पिछले दो चुनाव में मोदी लहर ने भाजपा को जीत दिलाई, लेकिन इस बार ग्रामीण इलाकों में मोदी सरकार से किसानों की नाराजगी के चलते भाजपा के लिए चुनौतियां ज्यादा हैं. ऐसे में भाजपा के वीरेंद्र खटीक के लिए कांग्रेस के पंकज अहिरवार परेशानी का सबब बनने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. इस बार गठबंधन होने के कारण सपा ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है. यही वजह है कि अब सीधी लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के है. ऐसे में कांग्रेस को भाजपा के पक्ष में अहीर वोट न बंटने की उम्मीद, चुनावी वनवास खत्म होने की गारंटी नजर आ रही है. ये गारंटी, कांग्रेस को चुनाव परिणाम दे पाती है या नहीं, यह 4 जून को ही पता चलेगा.