पीएम मोदी ने नवंबर में छत्तीसगढ़ की एक चुनावी रैली में देश की 80 करोड़ आबादी को पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अगले 5 साल तक फ्री अनाज देने का वादा किया था. इसे वादे पर बीते दिनों कैबिनेट ने मुहर लगा दी है. इसी कड़ी में भारत सरकार नए सहकारिता मूवमेंट के तहत देश में दुनिया का सबसे बड़ा अनाज भंडार बनाने जा रही है, जिसका उद्देश्य देश की खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन भारत काे अपनी इस कोशिश को अमलीजामा पहनाने के लिए दुनिया के कई देशों के साथ संघर्ष करना पड़ सकता है.
जिसके लेकर आगामी विश्व व्यापार संगठन (WTO) की बैठक में इस मुद्दे पर फिर घमासान होना है. तो वहीं खाद्यान्न भंडारण के मुद्दे पर WTO से जुडे़ देश एक बार फिर दो धड़ों में बंटे हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसमें भारत के साथ अफ्रीका समेत 80 देश बताए जा रहे हैं. WTO दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक संगठन है, जो ग्लोबल एक्सपोर्ट और इंपोर्ट संबंधी मानदंडों को रेगुलेट करता है और सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों का निपटारा करता है. इसके सदस्यों देशों की संख्या 184 है.
WTO की अगली मंंत्रिस्तरीय बैठक 26 से 29 फरवरी तक आबू धाबी में होनी है. WTO की इस मंत्रिस्तरीय बैठक से पहले भारत ने अपना स्टैंड क्लियर किया है. भारत की कई मीडिया रिपोर्टों में भारत सरकार के अधिकारियों से हवालों से कहा गया है कि खाद्यान्न का सार्वजनिक भंडारण का मुद्दा WTO में लंबित है.
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भारत सरकार के अधिकारियों से हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि WTO की अगली मंत्रिस्तरीय बैठक में पहले इसी मुद्दे पर बात की जाएगी और इसका स्थाई समाधान खोजा जाएगा.इसके बाद ही कृषि से जुड़े किसी अन्य विषयाें की चर्चा में भाग लिया जाएगा. मंंत्रिस्तरीय बैठक WTO की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च यूनिट है.
WTO इस मुद्दे पर दो धड़ों में बंटा हुआ नजर आता है. जिसमें विकसित देश और विकासशील देशों के अपने-अपने धड़े दिखाई देते हैं. विकसित देश MSP पर गेहूं, चावल जैसी फसलों की खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी PDS में अनाज वितरण का विरोध करते रहे हैं. विकसित देशों का तर्क है कि इससे ग्लोबल एग्रीकल्चर बिजनेस खराब होता है. वहीं भारत का तर्क है कि बड़ी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए PDS में अनाज का वितरण किया जाता है तो वहीं MSP पर फसलों की खरीद से कमजोर आय वर्ग वाले किसानों को फायदा पहुंचाना भी जरूरी है.
WTO की अगली मंंत्रिस्तरीय बैठक को लेकर कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि सार्वजनिक अनाज भंडारण के मुद्दे पर लंबे समय से विकसित देश और विकासशील देशों के बीच टकराव बना हुआ है. वह बताते हैं कि WTO के नियम कहते हैं कि गेहूं की टोटल वैल्यू से 10 फीसदी से अधिक का भुगतान MSP पर किसानों को नहीं किया जा सकता है. कुछ इससे ज्यादा ही धान पर लिमिट लगाई गई है, लेकिन मौजूदा समय में भारत गेहूं की टोटल वैल्यू का 60 फीसदी गेहूं और धान पर 80 फीसदी का भुगतान किसानों को कर रहा है,जो WTO के पीस क्लॉज के तहत किया जा रहा है. ऐसे में नियम तोड़ने वाली बात नहीं की जा सकती है.
मालूम हो कि WTO में पीस क्लॉज की व्यवस्था 2013 में संपन्न हुई बाली मंत्रिस्तरीय बैठक में की गई थी, जिसके तहत WTO के सदस्य देश इस बात पर सहमत हुए थे कि वह इसे मुद्दे का स्थाई समाधान होने तक इस मुद्दे पर किसी भी तरह के उल्लघंंन को चुनाैती नहीं देंगे.
MSP गारंटी कानून बनाने की मांग लंंबे समय से चली आ रही है, लेकिन माना जाता है कि WTO की शर्तें इसमें सबसे बड़ा रोड़ा हैं. WTO की सरकारी अनाज खरीद के नियम और उसको लेकर भारत के संंभावित कड़े रूख संबंधी सवाल के जवाब में कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि अगर भारत इस मुद्दे पर अपना रूख कड़ा रखता है तो संभवत: किसानों के लिए MSP गांरटी कानूनों का रास्ता आसान हो सकता है. वह कहते हैं कि भारत अगर WTO की शर्तों को तोड़ता है तो उससे कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि पहले भी कई देशाें ने WTO की शर्तों को तोड़ा है.
असल में WTO की अनाज की कुल वैल्यू की 10 फीसदी तक की राशि किसानों को देने जैसी शर्तें MSP गारंटी कानून का मुख्य रोड़ा है. अब भारत इन्हीं नियमों में बदलाव की मांग कर रहा है.