Soybean: इन कारणों से निकला सोयाबीन का 'तेल'! दाम बेहाल तो किसान परेशान 

Soybean: इन कारणों से निकला सोयाबीन का 'तेल'! दाम बेहाल तो किसान परेशान 

देश में कुल सोयाबीन उत्‍पादन का अकेले महाराष्‍ट्र 45 फीसदी और मध्‍यप्रदेश 40 फीसदी उत्‍पादन करता है.सोयाबीन का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) 4892 रुपये क्‍विंटल घोषित है. जबकि मौजूदा वक्‍त में दोनों राज्‍यों में किसान 4000 रुपये क्‍विंटल से नीचे सोयाबीन बेचने को मजबूर हैं.

सोयाबीन के दामों में गिरावट के पीछे है इंटरनेशल वजहसोयाबीन के दामों में गिरावट के पीछे है इंटरनेशल वजह
मनोज भट्ट
  • Noida ,
  • Aug 23, 2024,
  • Updated Aug 23, 2024, 8:00 AM IST

पिछले दिनों मध्‍य प्रदेश के एक किसान ने खेत में सोयाबीन की खड़ी फसल पर ट्रैक्‍टर चला दिया. मंदसौर के किसान कमल पाटीदार ने सोयाबीन की पुरानी फसल 3800 रुपये क्‍विंटल के हिसाब से बेची थी. ऐसे में नई फसल का दाम सहीं ना मिलने की आशंका के चलते किसान कमल पाटीदार ने खेत में खड़ी सोयाबीन की फसल पर ट्रैक्‍टर चला दिया. सोशल मीडिया एक्‍स में पोस्‍ट किए गए वीडियो में किसान कमल पाटीदार कहते हैं कि अगर सोयाबीन का नया भाव 3500 से 3800 के बीच खुलता है तो इससे किसानों का नुकसान ही होना है. ऐसे में उन्‍होंने फसल नष्‍ट करना ही बेहतर समझा.

मध्‍य प्रदेश में ही सोयाबीन किसानों का ये हाल नहीं है. कुछ ऐसे ही हालात महाराष्‍ट्र सोयाबीन किसानों के भी हैं. वह भी 3800 से 4200 रुपये क्‍विंटल पर सोयाबीन बेचने को मजबूर हैं. अमूमन, नई फसल आने से पहले तक किसी भी एग्री कमोडिटी के दाम अच्‍छे होते हैं और नई फसल की आवक होते ही दामों में गिरावट होती है, लेकिन इस बार साेयाबीन के साथ उलटा हो रहा है. नई फसल आने में समय है और सोयाबीन के दामों में गिरावट दर्ज की जा रही है.

सोयाबीन का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) 4892 रुपये क्‍विंटल घोषित है, तो वहीं तीन साल पहले सोयाबीन का बाजार भाव 11 हजार रुपये क्‍विंटल तक दर्ज किया गया था. ऐसे में आखिर क्‍या वजह से है कि साेयाबीन के दामों में गिरावट दर्ज की गई है. इस साल सोयाबीन के दामों का क्‍या हाल होने की संभावना है. इस पर विस्‍तार से बात करते हैं.

पहले समझते हैं सोयाबीन का 'तिलिस्‍म'

सोयाबीन की बेहाली के कारणों पर पड़ताल से पहले सोयाबीन के तिलिस्‍म को समझते हैं. असल में महाराष्‍ट्र और मध्‍य प्रदेश देश में सबसे बड़े सोयाबीन उत्‍पादक राज्‍य हैं. देश में कुल सोयाबीन उत्‍पादन का अकेले महाराष्‍ट्र 45 फीसदी और मध्‍यप्रदेश 40 फीसदी उत्‍पादन करता है. वहीं इसकी खपत को समझें तो दुनियाभर में मुख्‍य तौर पर खाद्य तेल और पशुआहार के तौर सोयाबीन की खपत सबसे अधिक होती है. असल में सोयाबीन के खल यानी तेल निकालने के बाद बचे हुए वेस्‍ट, जिसे DOC (डी ऑयल केक) कहा जाता है, उसमें 45 फीसदी तक प्रोटीन होता है, पशुओं के लिए प्रोटीन का मुख्‍य सोर्स होता है. ऐसे में दुनियाभर में खल की बेहद मांग है.

इन वजहों से गिरे सोयाबीन के दाम

सोयाबीन का तेल और खल की दुनियाभर में बेहद मांग है. तो वहीं दूसरी तरफ तीन साल पहले सोयाबीन का भाव 11 हजार क्‍विंटल तक पहुंच गया था, तो ऐसे में आखिर इस साल ऐसा क्‍या हुआ है कि सोयाबीन के दाम औसतन 4000 रुपये क्‍विंटल तक सीमित हो गए हैं. इसके पीछे तीन कारण हैं. आइए जानते हैं कि वह तीन कारण कौन से हैं.

1.लैटिन अमेरिकी देशों में बंपर उत्‍पादन

साेयाबीन के दामों में गिरावट का मुख्‍य कारण ग्‍लोबली इसके उत्‍पादन में हुई बढ़ोतरी है. असल में लैटिन अमेरिकी देश सोयाबीन के बड़े उत्‍पादक हैं. जहां इस साल सोयाबीन का बंपर उत्‍पादन हुआ है. ब्राजील, अर्जेटीना और अमेरिका में इस साल सोयाबीन का सरप्‍लस उत्‍पादन होने का अनुमान है. तो वहीं भारत में भी सोयाबीन का उत्‍पादन अनुमान बेहतर है. ऐसे में ग्‍लोबली मार्केट में सोयाबीन की आवक सरप्‍लस बनी हुई है. नतीजतन ग्‍लोबली सोयाबीन के दाम स्‍थिर बने हुए हैं, जिसका असर भारत पर भी दिख रहा है.  

2.सोयाबीन वेस्‍ट के इंटरनेशनल बाजार की ठंडी चाल 

मध्‍य भारत FPO फेडरेशन के सीईओ योगेश द्विवेद्धी बताते हैं कि इस साल सोयाबीन के दामों में गिरावट की दूसरी वजह सोयाबीन वेस्‍ट यानी सोयाबीन डी ऑयल केक के ग्‍लोबली बाजार की ठंडी चाल है. वह बताते हैं कि भारत से भी सोयाबीन वेस्‍ट का इंपोर्ट होता था, लेकिन मौजूदा साल ग्‍लोबली सोयाबीन सरप्‍लस है, इस वजह से सोयाबीन वेस्‍ट का इंटरनेशल मार्केट स्‍थिर बना हुआ है. इसका असर भारत पर भी दिख रहा है. 

3.भारत में सस्‍ते पाम ऑयल की आवक

सोयाबीन वेस्‍ट का इंटरनेशनल बाजार में अगर ठंड छाई हुई तो इन हालातों में सोयाबीन की बड़ी खेप का इस्‍तेमाल खाद्य तेल बनाने में होना चाहिए. सोयाबीन के दामों में दिख रही गिरावट को खत्‍म करने के लिए मौजूदा वक्‍त में ये सुझाव सबसे प्रांसगिक लगता है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है. इसका गणित बताते हुए मध्‍य भारत FPO फेडरेशन के सीईओ योगेश द्विवेद्धी कहते हैं कि भारत सरकार ने पाम ऑयल के इंपोर्ट से ड्यूटी हटा दी है. यानी ड्यूटी फ्री पाम ऑयल इंपोर्ट होने से बेहद ही सस्‍ता पाम ऑयल भारत आ रहा है, जो सोयाबीन खाद्य तेल उद्योग को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है.

वह बताते हैं कि खाद्य तेलों में पाम ऑयल समिश्रण को लेकर कोई स्‍पष्‍ट दिशा-निर्देश नहीं हैं. ऐसे में सोयाबीन में 50 फीसदी तक पाम ऑयल का समिश्रण हो रहा है. नतीजतन सोयाबीन की खपत खाद्य तेल में भी सीमित हो रही है और किसानाें को नुकसान हो रहा है. 

क्‍या होगी बाजार की चाल, कैसे होगा समाधान

सोयाबीन के हाल इस साल कैसे रहेंगे, इस सवाल के जवाब में मध्‍य भारत FPO फेडरेशन के सीईओ योगेश द्विवेद्धी कहते हैं कि अभी तक की स्‍थितियों को देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि सोयाबीन का बाजार इस साल मंदा रह सकता है. ससे किसानों को नुकसान होगा. वह कहते है कि जरूरी ये है कि सरकार सोयाबीन बाजार में हस्‍तक्षेप करें. राज्‍य सरकारें भावांतर योजना के तहत किसानों के नुकसान को कम करें और केंद्र अगर MSP पर सोयाबीन खरीद शुरू कर दे तो किसानों को बड़ी राहत मिलेगी.

 

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