
लगातार बढ़ते तापमान ने मधुमक्खी पालन व्यवसाय के लिए संकट खड़ा कर दिया है. इस समस्या के कारण मधुमक्खियों के जीवनचक्र में बदलाव देखे जा रहे हैं. लगातार तापमान बढ़ने के कारण जहां मधुमक्खियों की संख्या में कमी आ रही है, वहीं शहद के उत्पादन में भी कमी आई है. उधर कृषि वैज्ञानिकों ने कहा है कि रबी फसलों एवं सब्जियों में मघुमक्खियों का बडा योगदान है, क्योंकि यह परांगण में सहायता करती है. इसलिए जितना संभव हो मघुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें तथा दवाईयों का छिड़काव सर्दी के मौसम में सुबह या शाम के समय ही करें.
दरअसल, इस समय मधुमक्खीपालन व्यवसाय इस दोहरी समस्या से गुजर रहा है. अब अप्रैल के शुरुआत से ही तापमान बढ़ता जा रहा है. बढ़ते तापमान का असर लोगों पर ही नहीं, बल्कि मधुमक्खीपालन व्यवसाय पर साफ-साफ देखा जा सकता है. मधुमक्खियां फसलों की उपज बढ़ाने में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. आपको बता दें, लीची नीबू प्रजातीय फलों और अन्य दलहनी एवं तिलहनी फसलों में मधुमक्खियों द्वारा परागण अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है. इसके अलावा, ये न सिर्फ शहद का उत्पादन करती हैं, बल्कि बड़ी मात्रा में मोम और गोंद का भी उत्पादन करती हैं.
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की एक पत्रिका में कहा गया है कि शहद बनाने वाली मधुमक्खियां और दूसरे कीट-पतंगे परागकण फैलाने व फूलों के निषेचन में भी अहम भूमिका निभाते हैं. खेतीबाड़ी के आधुनिक तरीकों के बीच इन जीवों की संख्या घट रही है, जिससे विश्व कृषि का नुकसान हो रहा है. मधुमक्खियां, तितलियां, भंवरे व अन्य कीट-पतंगों की संख्या घटने का मतलब है, फूलों का ठीक से पराग-निषेचन नहीं होगा. दूसरे शब्दों में निषेचन नहीं होगा, तो फसल भी अच्छी नहीं होगी.
विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि मधुमक्खियां यदि एक रुपये का लाभ मधुमक्खी पालक को पहुंचाती हैं, तो वे 15-20 रुपये का लाभ उन काश्तकारों व बागवानों को पहुंचाती हैं, जिनके खेतों या बागों में परागण व मधु संग्रहण हेतु मधुमक्खी पालन किया जाता है. फसलों से मधुमक्खियां पराग और मकरंद इकट्ठा करती हैं. इससे मधुमक्खियां अनजाने में ही परागण क्रिया कर इनकी उपज में बढ़ोतरी कर देती हैं. मधुमक्खियां न हों तो खेती-किसानी बहुत मुश्किल हो जाएगी, इसलिए अब कृषि वैज्ञानिक इनके संरक्षण पर जोर दे रहे हैं.
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