बांस की खेती किसानों के लिए कमाई का एक बड़ा जरिया बनकर उभर रही है. एक बार बांस लगाने के बाद कई साल तक कमाई होती रहती है. इसलिए कई लोग इसे ग्रीन गोल्ड के नाम से भी पुकारते हैं. कभी भारत में बांस काटना अपराध था लेकिन अब इसे घास की श्रेणी में ला दिया गया है इसलिए किसान इसकी खेती कर रहे हैं और उसे काट कर अलग-अलग कार्यों के लिए बेच रहे हैं. बांस की 136 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 10 काफी लोकप्रिय हैं. इस बीच गहन शोध के बाद शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में मीठे बांस की एक विशेष प्रजाति को तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है. जो किसानों की आय बढ़ाने में बड़ा मददगार हो सकता है. इससे इथेनॉल भी बन सकता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह शोध बिहार के जिला भागलपुर में टीएनबी कॉलेज स्थित प्लांट टिश्यू कल्चर लैब (पीटीसीएल) में किया गया. यहां मीठे बांस के पौधे व्यावसायिक दृष्टि से बड़े स्तर पर तैयार किये जा रहे हैं. किसान इस व्यवसाय को अपनाकर अपनी आय को दोगुना कर सकेंगे. इससे रूरल इकोनॉमी को बूस्ट मिलेगा. बांस की खेती बिहार की अर्थव्यवस्था को बदलने में पूरी तरह सक्षम हो सकती है, क्योंकि वर्तमान समय में इस बांस की मांग अधिक है. आज विश्व के कई देशों में इससे खाद्य उत्पाद भी बनाए जाते हैं. इसके साथ ही इस प्रजाति का उपयोग दवाइयां बनाने में भी किया जा रहा है.
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बांस की इस प्रजाति की खेती किसी भी मौसम और सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकेगी. परीक्षण के दौरान एनटीपीसी से निकले राख के ढेर पर भी इसके पौधे उगाने में शोधकर्ताओं को सफलता हासिल हुई है. दवाई और खाद्य उत्पादों के लिए भी इसे उपयोगी पाया गया है. फूड प्रोसेसिंग यूनिट के माध्यम से बांस के इन पौधों से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद तैयार किए जा सकेंगे. इनका उपयोग चीन, ताईवान, सिंगापुर, फिलीपींस आदि देशों में बड़े स्तर पर चिप्स, अचार, कटलेट जैसे उत्पाद तैयार करने में किया जाता है. अब भारत में भी इसका उपयोग व्यावसायिक तौर पर हो सकेगा. इससे फूड प्रोसेसिंग उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही दावा किया जा रहा है कि इन पौधों से एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर जैसे रोगों की दवाइयां भी बनाई जा सकेंगी.
बांस के पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अच्छी तरह से अवशोषित कर कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं. ये पदार्थ मिट्टी में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति भी बढ़ाते हैं. बांस की सहायता से बायो इथेनॉल, बायो सीएनजी एवं बायोगैस उत्पादन पर भी शोध प्रगति पर है. भारत में बांस की 136 व्यावसायिक प्रजातियां पाई जाती हैं और इनका औद्योगिक उपयोग भी है. बांस की खेती से पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर सहित अन्य उद्योगों को काफी बढ़ावा मिला है. निकट भविष्य में बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है.
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