
संसद के दोनों सदनों से SHANTI Bill 2025 को मंजूरी मिल चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को इस नए घटनाक्रम पर कहा कि संसद की तरफ से SHANTI बिल पास होना भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर के लिए एक बड़ा बदलाव लाने वाला पल है. साथ ही यह प्राइवेट सेक्टर और युवाओं के लिए कई मौके खोलता है. वहीं इसे मंजूरी मिलने के बाद एक बार फिर देश में न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को लेकर चर्चा तेज हो गई है. आमतौर पर न्यूक्लियर एनर्जी को बिजली उत्पादन या रक्षा से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन भारत में इसका इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में भी लंबे समय से हो रहा है. इस दिशा में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) ने अहम भूमिका निभाई है.
इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) और संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (FAO) भारत समेत सदस्य देशों के साथ मिलकर स्थायी कृषि विकास के लिए परमाणु टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं. सालाना करीब 14 मिलियन अमेरिकी डॉलर के खर्च के साथ, ये संगठन 200 से ज्यादा तकनीकी सहयोग प्रोजेक्ट को सपोर्ट करते हैं. साथ ही 30 से ज्यादा कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (CRPs) के जरिए नई टेक्नोलॉजी देते हैं.
न्यूक्लियर एनर्जी फूड और एग्री सेक्टर में गेम-चेंजर के रूप में उभर रही है, जो कीट नियंत्रण, बीमारी की रोकथाम, मिट्टी और पानी के मैनेजमेंट और खाद्य सुरक्षा जैसे जरूरी पहलुओं पर काम कर रही है. न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी पहले ही भारतीय खेती को बदल रही है. रेडिएशन पर आधारित तकनीकों से सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, दालें, चावल, जूट और केले सहित 72 नई फसलों की किस्में विकसित करने में मदद मिली है. BARC की लागत प्रभावी फूड रेडिएशन टेक्नोलॉजी न सिर्फ फसलों की शेल्फ लाइफ बढ़ाती है, बल्कि कृषि सुधारों को भी पूरा करती है, जिससे किसानों को जरूरी सहायता मिलती है.
कृषि में न्यूक्लियर एनर्जी का मतलब परमाणु रिएक्टर या रेडिएशन से फसल उगाना नहीं है, बल्कि नियंत्रित रेडिएशन तकनीक का इस्तेमाल करके बीजों में म्यूटेशन किया जाता है. इससे फसलों में ऐसे गुण विकसित होते हैं, जो उन्हें ज्यादा उपज देने वाला, जल्दी पकने वाला और रोग प्रतिरोधी बनाते हैं. BARC और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) मिलकर दशकों से इस तकनीक पर काम कर रहे हैं. अब तक भारत में 300 से ज्यादा फसल किस्में न्यूक्लियर तकनीक की मदद से विकसित की जा चुकी हैं.
BARC की न्यूक्लियर एग्रीकल्चर रिसर्च का असर कई प्रमुख फसलों में देखा जा सकता है. इस इंस्टीट्यूट की तरफ से 72 से ज्यादा फसलों पर काम जारी है. हाल ही में रिसर्च सेंटर की तरफ से केले की एक खास किस्म को डेवलप किया गया है. जिन खास फसलों में BARC खास काम कर रहा है, उनमें कुछ इस तरह से हैं.
धान
धान भारत की सबसे अहम खाद्य फसल है. BARC द्वारा विकसित कई धान की किस्में कम समय में पकने वाली, अधिक उत्पादन देने वाली और रोग प्रतिरोधी हैं. इन किस्मों ने खासकर पूर्वी और दक्षिणी भारत में किसानों को फायदा पहुंचाया है.
गेहूं
गेहूं में न्यूक्लियर म्यूटेशन तकनीक से ऐसी किस्में विकसित की गई हैं, जो गिरने से बचती हैं और बेहतर दाना गुणवत्ता देती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है.
मूंग और उड़द जैसी दालें
दालों में BARC की रिसर्च बेहद अहम मानी जाती है. मूंग और उड़द की कई किस्में कम अवधि में तैयार होती हैं, जिससे किसान एक ही साल में दो फसलें ले सकते हैं. इससे दाल उत्पादन बढ़ाने में मदद मिली है.
मूंगफली और सोयाबीन
तिलहनी फसलों में न्यूक्लियर तकनीक से तेल की मात्रा बढ़ाने और कीट प्रतिरोधक क्षमता सुधारने पर काम किया गया है. मूंगफली की कुछ किस्में सूखा सहन करने वाली भी हैं.
कपास
कपास में रिसर्च का मकसद फाइबर क्वालिटी सुधारना और रोगों से बचाव करना रहा है. इससे कपास उत्पादक राज्यों में किसानों की आमदनी पर सकारात्मक असर पड़ा है.
सब्जियां और फल
सेंटर ने टमाटर, प्याज और केला जैसी फसलों पर भी रिसर्च की है. प्याज में ज्यादा समय तक स्टोरेज वाली किस्में और टमाटर में बेहतर शेल्फ लाइफ विकसित करने पर जोर दिया गया है.
SHANTI BILL के जरिए न्यूक्लियर रिसर्च को कानूनी और संस्थागत मजबूती मिलेगी. इससे कृषि में नई किस्मों के विकास, फूड सिक्योरिटी और क्लाइमेट चेंज से निपटने में मदद मिलेगी. सूखा, बाढ़ और बदलते मौसम के बीच ऐसी तकनीकें भविष्य की खेती के लिए बेहद जरूरी मानी जा रही हैं. फूड इरैडिएशन से खाने की चीजों की शेल्फ लाइफ बढ़ती है, महंगे कोल्ड स्टोरेज पर निर्भरता कम होती है, कीड़े खत्म होते हैं और खाने की सुरक्षा बेहतर होती है. ये एप्लीकेशन खाने की सुरक्षा को मजबूत करते हैं, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करते हैं, किसानों की इनकम बढ़ाते हैं और ग्लोबल एग्रीकल्चरल ट्रेड में भारत की कॉम्पिटिटिवनेस को बढ़ावा देते हैं.
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