
दक्षिण एशिया में जेनेटिकली मॉडिफाइड यानी GM फसलों को लेकर साल 2025 भी असमंजस और ठहराव के बीच गुजरता दिख रहा है. अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे क्षेत्र में पाकिस्तान अकेला ऐसा देश रहा, जिसने GM फसलों की व्यावसायिक खेती और आयात को लेकर स्पष्ट और ठोस फैसले किए. इसके उलट भारत और बांग्लादेश जैसे बड़े कृषि देशों में GM फसलों का मुद्दा नीति, अदालत और किसानों की चिंताओं के बीच फंसा हुआ है.
भारत में यह बहस अब केवल वैज्ञानिक या तकनीकी नहीं रही, बल्कि बीज लागत, किसान निर्भरता और जैव-सुरक्षा जैसे सवालों के चलते राजनीतिक और सामाजिक विवाद का रूप ले चुकी है. USDA के अनुसार, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव में GM फसलों की खेती की अनुमति नहीं है. बांग्लादेश में बायोटेक्नोलॉजी नीति लगभग ठप पड़ी है, जबकि भारत में नियामक अस्पष्टता के चलते फैसले आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं.
इसके उलट पाकिस्तान ने अक्टूबर 2025 में GM गन्ने और उन्नत GM कपास किस्मों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देकर दक्षिण एशिया में अलग राह अपनाई है. बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, USDA ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में GM फसलों को लेकर सबसे बड़ी उलझन नियामक संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र को लेकर बनी हुई है.
जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी यानी GEAC और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी FSSAI के बीच जिम्मेदारियों को लेकर स्पष्टता नहीं है. फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट 2006 के तहत GE खाद्य उत्पादों के नियमन की जिम्मेदारी FSSAI की है, लेकिन जरूरी नियम और बुनियादी ढांचा तैयार न होने के कारण यह जिम्मेदारी फिलहाल GEAC के पास ही है.
USDA ने बताया कि नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने FSSAI को GE खाद्य उत्पादों को नियंत्रित करने का निर्देश दिया था. इसके बावजूद, नवंबर 2022 में जारी GM या GE फूड्स रेगुलेशन का दूसरा ड्राफ्ट अब तक अंतिम रूप नहीं ले सका है. जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक GEAC ही खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करने वाले GE पौधों और पशु उत्पादों की शीर्ष नियामक संस्था बनी रहेगी.
भारत में फिलहाल केवल Bt कॉटन को ही व्यावसायिक खेती की मंजूरी मिली हुई है. सरकार GE सोयाबीन और कैनोला से बने खाद्य तेलों के आयात की अनुमति देती है, लेकिन खेती के स्तर पर विस्तार नहीं हो पाया है. GEAC के पास DDGS, सोयाबीन मील और GE या GE आधारित प्रोसेस्ड फूड के आयात से जुड़े कई आवेदन लंबित हैं, जिन पर FSSAI के नियम और ढांचे के अभाव में फैसला नहीं हो सका है.
Bt बैंगन को वर्ष 2010 में नियामक मंजूरी मिल चुकी है और अक्टूबर 2022 में स्वदेशी रूप से विकसित GE सरसों को भी हरी झंडी दी गई थी. इसके बावजूद इन फसलों की व्यावसायिक खेती शुरू नहीं हो पाई है. इसकी वजह 2004 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित वह याचिका है, जिसमें भारत की बायोटेक्नोलॉजी नियामक प्रणाली को चुनौती दी गई है. USDA के मुताबिक, इस मामले में अंतिम फैसला आए बिना सरकार GM फसलों पर बड़ा कदम उठाने से बच रही है.
इसी पृष्ठभूमि में GM फसलों को लेकर किसानों की चिंता नीति निर्माण की रफ्तार को प्रभावित कर रही है. किसान संगठनों का कहना है कि GM बीजों से हर सीजन नया बीज खरीदने की मजबूरी बढ़ती है, जिससे बीज कंपनियों पर निर्भरता बढ़ जाती है. Bt कॉटन के अनुभव का हवाला देते हुए वे यह भी सवाल उठाते हैं कि शुरुआती उत्पादन लाभ लंबे समय तक टिकाऊ क्यों नहीं रह पाए और क्यों कीटों में प्रतिरोध की समस्या सामने आई. छोटे और सीमांत किसानों के लिए ऊंची बीज लागत और फसल जोखिम को भी बड़ा मुद्दा बताया जाता है.
पर्यावरण और जैव-सुरक्षा से जुड़े सवाल भी इस विवाद का अहम हिस्सा हैं. किसान संगठनों और पर्यावरण समूहों का तर्क है कि परागण के जरिए GM फसलों का असर देशी किस्मों पर पड़ सकता है और लंबे समय के प्रभावों पर स्वतंत्र अध्ययन पर्याप्त नहीं हैं. यही कारण है कि अदालत और नीति स्तर पर सतर्कता बनी हुई है.
जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को GM फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति बनाने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि रिसर्च, खेती, व्यापार और वाणिज्य से जुड़े सभी पहलुओं पर देशव्यापी परामर्श के बाद नीति तय की जाए. हालांकि, अब तक इस दिशा में कोई स्पष्ट नीति सामने नहीं आई है.
इस बीच, जीनोम एडिटिंग के मोर्चे पर सरकार ने सीमित प्रगति की बात कही है. मई 2025 में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि ICAR से जुड़े अनुसंधान संस्थानों ने दो जीनोम एडिटेड धान किस्में विकसित की हैं. लेकिन इन किस्मों के भविष्य को लेकर भी नियामक स्पष्टता जरूरी मानी जा रही है.
बांग्लादेश में स्थिति और ज्यादा सुस्त है. USDA के अनुसार, वहां की बायोटेक्नोलॉजी नीति ठहराव में है और बायोसेफ्टी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. विटामिन ए से भरपूर गोल्डन राइस पिछले सात वर्षों से नियामक मंजूरी का इंतजार कर रहा है. सीमित नियामक क्षमता और सरकारी अनिश्चितता को इसकी मुख्य वजह बताया गया है.
इसके उलट पाकिस्तान ने 2025 में GM फसलों को लेकर कई अहम फैसले लिए. इंटरनेशनल सर्विस फॉर द एक्विजिशन ऑफ एग्री-बायोटेक एप्लीकेशंस के मुताबिक, पाकिस्तान की नेशनल बायोसेफ्टी कमेटी ने GM गन्ने और उन्नत GM कपास किस्मों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी दी. नवंबर 2025 में GE कैनोला के खाद्य, पशु आहार और प्रोसेसिंग के लिए आयात को भी हरी झंडी दी गई. GE सोयाबीन के आयात लाइसेंस को एक साल के लिए नवीनीकृत किया गया है.
USDA का मानना है कि इन फैसलों से अमेरिका को भी फायदा होगा. भारत और अमेरिका के बीच 2024 में कृषि और खाद्य व्यापार 8.6 अरब डॉलर का रहा, जिसमें व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा. वहीं पाकिस्तान के फैसलों से 2025-26 में उसका सोयाबीन आयात बढ़कर 24 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई है.