अगर महिलाएं कुछ करने की ठान लें, तो कोई भी बदलाव नामुमकिन नहीं होता — यह साबित किया है महाराष्ट्र के सातारा जिले की महिलाओं ने. यहां की महिलाओं ने घर और खेत की संपत्ति में अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की. अब जिले में 2600 से ज्यादा महिलाओं के नाम संपत्ति की रजिस्ट्री हो चुकी है — वो भी उनके पति के जीवित रहते हुए.
इस सामाजिक क्रांति की शुरुआत की सातारा की सामाजिक कार्यकर्ता वर्षा देशपांडे ने, जिन्होंने दलित महिला विकास मंडल के माध्यम से इस मुहिम को आकार दिया. उन्होंने बताया कि जिले में कई ऐसे मामले सामने आए, जहां पुरुषों ने नशे या कर्ज के चलते जमीन और घर बेच डाले. लेकिन अब, महिलाओं के नाम संपत्ति दर्ज होने से ऐसा करना मुमकिन नहीं है.
सतारा जिले का गजवडी गांव, जिसकी आबादी सिर्फ 1200 है, आज महिला अधिकारों की मिसाल बन गया है. यहां हर घर की रजिस्ट्री महिला और पुरुष दोनों के नाम पर की गई है. खेतों की रजिस्ट्री में भी महिलाओं को बराबरी से शामिल किया गया है. इस गांव की सीमा प्रकाश बलीप पहली महिला बनीं, जिनका नाम घर के दस्तावेजों में दर्ज हुआ.
संपत्ति में मालिकाना हक मिलने के बाद महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है. कई महिलाओं को बैंक से सस्ते दरों पर कर्ज मिला, जिससे उन्होंने छोटे उद्योग शुरू किए — जैसे मुर्गी पालन, मछली पालन, दूध व्यवसाय, और कृषि औजार बैंक से जुड़ना.
इस क्रांतिकारी पहल को संयुक्त राष्ट्र ने भी सराहा है. वर्षा देशपांडे को संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है. यह सम्मान पाने वाली वह भारत की तीसरी शख्सियत बनीं हैं — उनसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जेआरडी टाटा को यह पुरस्कार मिल चुका है.
महाराष्ट्र में यह अपने आप में अनोखा आंदोलन है जहां महिलाएं आगे बढ़ी हैं और खुद की संपत्ति की रक्षा के लिए कसम खा रही हैं. इन महिलाओं का कहना है कि जब पति भरोसे के काबिल नहीं रहेगा तो महिलाओं को आगे आकर इस तरह के आंदोलन करने होंगे. महिलाओं को चिंता है कि सारी संपत्ति गलत आदतों के चलते खत्म हो जाए तो हम अगली पीढ़ी को क्या देंगे. अगली पीढ़ी और संतानों के लिए क्या बचेगा. अगर संपत्ति नहीं बचेगी तो अगली पीढ़ी का भविष्य भी चौपट हो जाएगा.