
मध्य प्रदेश के सोयाबीन किसान महेश पटेल इस साल की फसल से बेहद निराश हैं. हाल ही में खत्म हुए कटाई के मौसम में अत्यधिक बारिश ने उनकी खड़ी फसल बर्बाद कर दी. 57 वर्षीय पटेल, जिनके पास करीब 3 हेक्टेयर उपजाऊ जमीन है, कहते हैं कि पूरे राज्य में यही हाल है और सोयाबीन उत्पादन को भारी नुकसान पहुंचा है.
सोयाबीन के साथ इंटरक्रॉपिंग में उगाई जाने वाली मक्का की पैदावार इस बार अच्छी रही, लेकिन ज्यादा उत्पादन के चलते कीमतें गिर गईं. इससे किसानों की चिंता और बढ़ गई है. इसी बीच भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार बातचीत ने किसानों की मुश्किलें और गहरी कर दी हैं.
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में एक बड़ा मुद्दा अमेरिकी जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) सोयाबीन और मक्का को भारतीय बाजार में एंट्री देने का है. अमेरिका चाहता है कि भारत इन फसलों के आयात की अनुमति दे, ताकि उसके किसानों को नया बाजार मिल सके.
अमेरिका दुनिया में सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और वैश्विक उत्पादन का करीब 28 प्रतिशत हिस्सा वहीं से आता है. चीन के साथ व्यापार युद्ध के बाद अमेरिकी सोयाबीन और मक्का को नए खरीदारों की सख्त जरूरत है.
किसानों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था जीन कैंपेन की संस्थापक सुमन सहाय का कहना है कि अमेरिका पर अपने किसानों के दबाव के चलते भारत पर बाजार खोलने का दबाव बढ़ रहा है.
भारत अब तक GM सोयाबीन और मक्का के आयात से दूरी बनाए हुए है. देश नॉन-GM और ऑर्गेनिक फसलों का उत्पादन करता है, जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अलग पहचान है. सरकार को आशंका है कि GM फसलों के आयात से क्वालिटी पर सवाल उठेंगे और निर्यात बाजार प्रभावित हो सकता है.
भारत करीब 130 लाख टन सोयाबीन और 420 लाख टन मक्का का उत्पादन करता है. हालांकि देश सोया तेल के लिए आयात पर निर्भर है, लेकिन मक्का उत्पादन में आत्मनिर्भर है.
मध्य प्रदेश के मक्का किसान प्रकाश पटेल 'अल जजीरा' से कहते हैं कि व्यापारी सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम देते हैं. खाद, बीज और कीटनाशकों की बढ़ती कीमतों के साथ अनियमित बारिश ने किसानों को कर्ज में डुबो दिया है.
किसानों को डर है कि अगर अमेरिकी GM उत्पाद भारतीय बाजार में आए, तो सस्ते और ज्यादा पैदावार वाले इन उत्पादों के सामने वे टिक नहीं पाएंगे. सोया किसान निर्भय सिंह के मुताबिक, जहां एक एकड़ जमीन पर भारत में करीब 1 टन सोयाबीन पैदा होती है, वहीं GM सोयाबीन से पैदावार तीन गुना तक हो सकती है.
कुछ वैज्ञानिकों और उद्योग से जुड़े लोगों का मानना है कि GM तकनीक से कीटनाशकों का खर्च कम होगा और उत्पादन बढ़ेगा. पोल्ट्री फीड सप्लायर कवलजीत भाटिया का कहना है कि ज्यादा उत्पादन से पूरी सप्लाई चेन को फायदा होगा, लेकिन GM बीजों का आयात करने के बजाय देश में ही विकास होना चाहिए.
वहीं निर्यातक और विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि GM फसलों से भारत की नॉन-GM पहचान को नुकसान हो सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय खरीदार दूर हो सकते हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार बेहद सावधानी से कदम उठा रही है. कृषि देश की GDP में 18 प्रतिशत योगदान देती है और लगभग आधी आबादी की आजीविका इससे जुड़ी है. 2020-21 के किसान आंदोलन के अनुभव को देखते हुए सरकार किसी भी ऐसे फैसले से बचना चाहती है, जिससे किसानों में असंतोष फैले.
विशेषज्ञों के अनुसार, टैरिफ विवादों से पहले ही भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव है और सरकार किसी भी निर्णय से पहले किसानों और अपने वोट बैंक को ध्यान में रखेगी.