भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) का मामला अटका हुआ है. वहीं, इस ट्रेड डील को लेकर देश का तिलहन उद्योग चिंतित है. सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने केंद्र सरकार के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि वह उदार व्यापारिक लाभों की होड़ में देश के कृषि हितों को अनदेखा न करें. SEA के अध्यक्ष संजीव अस्थाना ने अपने मासिक पत्र में कहा है कि खाद्य तेल और तिलहन क्षेत्र इस समय एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है. अगर अमेरिका को सोयाबीन और मक्का बेचने पर टैरिफ में छूट दी गई तो यह भारत की घरेलू तिलहन व्यवस्था, खासकर सोयाबीन वैल्यू चेन के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है.
अस्थाना ने कहा कि भारत के किसान अब भी नॉन-जीएमओ सोयाबीन की खेती करते हैं. ऐसे में अगर जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) सोयाबीन के आयात की अनुमति दी जाती है तो घरेलू बाजार का संतुलन बिगड़ सकता है और भारतीय सोया मील (खली- पशु आहार) अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाएगा. एसईए एक संतुलित दृष्टिकोण का समर्थन करता है, जो निष्पक्ष व्यापार को प्रोत्साहित करता है, लेकिन कमज़ोर कृषि क्षेत्र की रक्षा करता है.
SEA के अनुसार, इस खरीफ सीजन में तिलहन की बोवाई लगभग 156.76 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है, जो पिछले साल के 162.80 लाख हेक्टेयर के मुकाबले हल्की गिरावट है.
इसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा है, जो अपनी खपत का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा करता है. जून से जुलाई के बीच क्रूड पाम ऑयल की कीमत में तेजी आई है, जबकि देश में उपभोक्ता मांग लगातार बढ़ रही है. अस्थाना ने कहा कि SEA सरकार के साथ लगातार बातचीत कर रहा है, ताकि देश का खाद्य तेल क्षेत्र आत्मनिर्भरता, पोषण सुरक्षा और बाजार स्थिरता के रास्ते पर बना रह सके.