
किसान उत्पादक संगठन (FPOs) अब पारंपरिक मंडियों से आगे बढ़कर कमोडिटी एक्सचेंज के ज़रिए अपनी उपज बेच रहे हैं. वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में यह ट्रेंड और मजबूत हुआ है. इससे न सिर्फ किसानों को बेहतर दाम मिल रहे हैं, बल्कि व्यापार भी अधिक पारदर्शी और औपचारिक हो गया है.
इस साल अप्रैल से सितंबर 2025 तक, NCDEX (नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज) पर 62 FPOs ने कुल ₹377 करोड़ की कृषि उपज बेची. इनमें जीरा, कैस्टर, धनिया, हल्दी, कपास, कपास बीज खल और ग्वारसीड जैसे उत्पाद शामिल हैं. इनमें से 35 FPOs ऐसे रहे जिन्होंने अकेले ₹1 करोड़ से ज्यादा की बिक्री की है.
कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, कमोडिटी एक्सचेंज के ज़रिए व्यापार करने से किसानों को पारदर्शी तरीके से भुगतान सीधे बैंक खाते में मिलता है. इसके अलावा, किसान मंडियों में दलालों पर निर्भर नहीं रहते और अपनी उपज की उचित कीमत पा सकते हैं.
देश का सबसे बड़ा कमोडिटी डेरिवेटिव्स एक्सचेंज MCX भी अब FPOs को अपने प्लेटफॉर्म पर शामिल कर रहा है. अब तक 25 किसान समूहों को इसमें जोड़ा जा चुका है. MCX पर जल्द ही मेंटा को भी फ्यूचर्स ट्रेडिंग में शामिल किया जाएगा.
कई किसान संगठनों ने यह मांग की है कि और फसलों को फ्यूचर्स ट्रेडिंग के लिए खोला जाए.
हालांकि, SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने सात प्रमुख कृषि फसलों की डेरिवेटिव ट्रेडिंग पर रोक को मार्च 2026 तक बढ़ा दिया है. इन फसलों में - धान (गैर-बासमती), गेहूं, चना, सरसों, सोयाबीन, क्रूड पाम ऑयल और मूंग शामिल हैं.
कमोडिटी एक्सचेंज और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए बिक्री से किसान संगठनों को एक नई दिशा मिली है.
अब वे पारंपरिक मंडियों से निकलकर सीधे बाजार तक पहुंच पा रहे हैं और उचित मूल्य प्राप्त कर रहे हैं.
इससे किसानों की आमदनी में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है.
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