
तमिलनाडु से आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने देशभर के किसानों की चिंता बढ़ा दी है. दुनिया की प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका लैंसेट (The Lancet) में छपे एक स्टडी में पता चला है कि प्रदेश के 5 फीसद से अधिक किसान क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं.
‘मातृभूमि.कॉम’ के मुताबिक, इस अध्ययन के तहत तमिलनाडु के 125 गांवों में 3350 किसानों और कृषक मजदूरों की जांच की गई. पहले चरण में करीब 17.43 फीसद लोगों में किडनी की समस्या पाई गई, जबकि तीन महीने बाद फॉलोअप में यह संख्या घटकर 5.13 फीसद रह गई. बावजूद इसके, यह दर बेहद चिंताजनक मानी जा रही है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इन किसानों में से आधे से ज्यादा को डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां नहीं थीं, जिन्हें आमतौर पर किडनी रोग की वजह माना जाता है.
CKD एक ऐसी बीमारी है जिसमें किडनी धीरे-धीरे अपना काम करना बंद कर देती है. जब किडनी खून से वेस्ट और अतिरिक्त फ्लूइड को साफ नहीं कर पाती, तो शरीर में टॉक्सिन (जहर) जमा होने लगते हैं. इससे ब्लड प्रेशर, दिल और अन्य अंगों पर बुरा असर पड़ता है.
यह बीमारी धीरे-धीरे कई वर्षों में विकसित होती है, और शुरुआत में इसके कोई साफ लक्षण नहीं दिखते. आम कारणों में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, संक्रमण, जेनेटिक फैक्टर और टॉक्सिन के लंबे संपर्क शामिल हैं.
रिपोर्ट बताती है कि तमिलनाडु के प्रभावित किसान तेज धूप और गर्मी में लंबे समय तक खेतों में काम करते हैं. इससे उनके शरीर में हीट स्ट्रेस और डिहाइड्रेशन की स्थिति बनती है, जो किडनी पर दबाव डालती है.
यह समस्या सिर्फ किसानों तक सीमित नहीं — कंस्ट्रक्शन मजदूर, ईंट भट्टों और फैक्ट्री कर्मियों में भी पाई जा रही है. चौंकाने वाली बात ये है कि लोग इस समस्या को समय रहते पहचान नहीं पाते, और जब तक जांच होती है, किडनी काफी नुकसान झेल चुकी होती है.
इस रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब किसानों की सेहत सिर्फ मेहनत या खानपान से नहीं, बल्कि मौसम और काम के हालात से भी गहराई से जुड़ चुकी है.