
भारत सरकार चीनी या गन्ना विकास बोर्ड बनाने पर विचार कर सकती है. इसे लेकर सरकार में तैयारी चल रहा है. देश में निजी चीनी मिलों की संस्था ISMA ने भी ऐसा बोर्ड बनाने का सुझाव दिया है. इस्मा ने कहा है कि चीनी या गन्ना सेक्टर की पूरी समस्याओं को समझने और समाधान के लिए एक बोर्ड बनाया जाना चाहिए. बोर्ड बनाने की मांग ऐसे समय में आई है जब चीनी मिलों पर किसानों का बकाया लगातार बढ़ रहा है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा सीजन के शुरुआती दो महीने में चीनी मिलों ने किसानों का पैसा रोकना शुरू कर दिया है. एक अनुमान के मुताबिक यह राशि 2,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है. इस तरह की गंभीर समस्या के समाधान के लिए इस्मा ने सरकार से चीनी या गन्ना बोर्ड बनाने का आग्रह किया है.
किसानों का इस तरह का बकाया लंबे दिनों बाद सामने आया है. इतनी बड़ी बकाये की राशि तब है जब सरकार ने चीनी उत्पादन की बढ़त को देखते हुए चीनी निर्यात और इथेनॉल डायवर्जन की इजाजत दी है. इस फैसले से चीनी मिलों की कमाई बढ़ेगी. इसे देखते हुए पहले किसानों की शिकायतों का निपटारा होना चाहिए. लेकिन सरकार का अभी फोकस चीनी मिलों पर अधिक है, तभी मिनिमम सेलिंग प्राइस (MSP) बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है. गुरुवार को फूड सेक्रेटरी ने इसका संकेत दिया.
खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने कहा कि सरकार चीनी के लिए एक महीने के अंदर MSP में बदलाव और दूसरे राहत उपायों पर एक्टिव रूप से विचार कर रही है.
“उन्होंने (ISMA) हमें बताया कि गन्ने के बकाया से जुड़ी समस्या जनवरी के बीच से शुरू होगी. हम उस टाइमलाइन से वाकिफ हैं और उस पर काम कर रहे हैं. अगले एक महीने में, हम कुछ ऐसे फैसले लेंगे जो इंडस्ट्री की मदद करेंगे और किसानों को समय पर पेमेंट भी सुनिश्चित करेंगे,” चोपड़ा ने नई दिल्ली में इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) की सालाना आम बैठक के मौके पर मीडिया से कहा.
उन्होंने कहा कि सरकार सभी विकल्पों पर विचार कर रही है — MSP में बदलाव, मौजूदा 15 लाख टन (mt) से ज्यादा एक्सपोर्ट की इजाजत देना, और ज्यादा इथेनॉल आवंटन.
गन्ना विकास बोर्ड बनाने की ISMA की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए, चोपड़ा ने कहा कि हालांकि वह ऐसे विचार के पक्ष में हैं, लेकिन चूंकि यह कृषि मंत्रालय से जुड़ा है, इसलिए प्रस्ताव मिलने के बाद वह इस मुद्दे को उठाएंगे. उन्होंने कहा कि गन्ने की पैदावार के साथ-साथ चीनी की रिकवरी में भी सुधार करने की जरूरत है.
बाद में, मीडिया को संबोधित करते हुए, निवर्तमान अध्यक्ष गौतम गोयल ने MSP को पूरे भारत में औसत उत्पादन लागत के स्तर तक बढ़ाने की मांग की, जिसका अनुमान अभी 41.66 रुपये प्रति किलोग्राम है. चीनी का MSP फरवरी 2019 से 31 रुपये प्रति किलोग्राम पर जस का तस है, जबकि हर साल सरकार गन्ने की कीमत बढ़ा रही है, जिस पर मिलों को कानून के तहत खरीदना अनिवार्य है.
गोयल ने कहा कि 30 नवंबर तक का मौजूदा बकाया सिर्फ महाराष्ट्र का है, जबकि उत्तर प्रदेश में पेराई सिर्फ दो हफ्ते पहले शुरू हुई है. कानून के तहत, चीनी मिलों को गन्ने के किसानों को 14 दिनों के अंदर पेमेंट करना होता है, जिसके बाद यह बकाया बन जाता है.
उन्होंने यह भी कहा कि सरप्लस स्टॉक, उत्पादन की ज्यादा लागत, कम इथेनॉल आवंटन, घरेलू कीमतों में गिरावट और वैश्विक मंदी के कारण मिलें फंड के संकट का सामना कर रही हैं.
चोपड़ा ने कहा कि कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, ज्यादा गन्ना उत्पादन के कारण 2025-26 सीजन (अक्टूबर-सितंबर) के लिए भारत का चीनी उत्पादन 343 लाख टन रहने का अनुमान है. चूंकि गन्ने या चीनी आधारित शीरे से इथेनॉल का आवंटन केवल 28 प्रतिशत रहा है, इसलिए लगभग 34 लाख टन चीनी को इथेनॉल के लिए डायवर्ट किया जाएगा.
उन्होंने कहा, "हमें इस बात का ध्यान है कि सरप्लस स्टॉक जमा न हो. हमें यह भी पता है कि अगला चीनी सीजन और भी बेहतर हो सकता है. इसलिए हमें यह पक्का करना होगा कि स्टॉक जमा होने से जितना हो सके रोका जाए और गन्ने के किसानों को उनका बकाया समय पर मिले."
ISMA के नए चुने गए प्रेसिडेंट, कर्नाटक के Ugar Sugar Mills के नीरज शिरगांवकर, जो 20 दिसंबर से पद संभालेंगे, ने कहा कि अगर एक्सपोर्ट से कम कमाई होती है, तो भी मिलें इसे संभाल लेंगी, क्योंकि घरेलू बाजार मुख्य है, जहां 95 प्रतिशत उत्पादन बेचा जाता है. उन्होंने MSP में बढ़ोतरी के बाद स्टॉक जमा होने की संभावना से इनकार करते हुए कहा कि मांग कम नहीं होगी क्योंकि रिटेल कीमतें ज्यादा से ज्यादा 0.50-1 रुपये प्रति किलो बढ़ सकती हैं, लेकिन इससे एक्स-मिल रेट में गिरावट को रोकने में मदद मिलेगी. ISMA अधिकारियों ने कहा कि इस सीजन में मिलों को मिले पीक रेट से 2-2.50 रुपये प्रति किलो की गिरावट आई है.
ISMA के डायरेक्टर-जनरल दीपक बल्लानी ने कहा कि मौजूदा स्थिति 2018-19 सीजन जैसी ही है, जब गन्ने का बकाया 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था, जिससे सरकार को MSP बढ़ाना पड़ा और गन्ने के किसानों को इंसेंटिव देकर मिलों को एक्सपोर्ट में मदद करनी पड़ी.