भारत खेती-किसानी और विविधताओं से भरा देश है. भारत में अलग-अलग फसलें अपनी अलग-अलग पहचान के लिए जानी जाती हैं. कई फसलें अपने अनोखे नाम के लिए तो कई अपने स्वाद और खास पहचान के तौर पर जानी जाती हैं. ऐसी है एक फसल है जिसकी वैरायटी का नाम है 'भू सोना बेल'. दरअसल, ये वैरायटी शकरकंद की एक खास किस्म है, जिसकी खेती पूरे साल की जाती है. वहीं, बात करें शकरकंद की तो बाज़ार में इसकी हमेशा मांग बनी रहती है. आलू की तरह दिखने वाली शकरकंद की खेती अलग-अलग राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है. भारत में उगने वाले शकरकंद का स्वाद आज पूरी दुनिया को भा रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं शकरकंद की कौन-कौन सी उन्नत किस्में हैं?
'भू सोना बेल'- शकरकंद की ये किस्म उत्पादन के लिए सबसे बेस्ट है. इस किस्म में कई तरह के पोषक तत्व मौजूद हैं जिसकी वजह से ये स्वादिष्ट है और बाजार में इसकी अधिक मांग रहती है. शकरकंद की इस किस्म से चिप्स और आटा भी बनाया जाता है जिसकी बाजार में काफी मांग है.
श्रीभद्र किस्म- यह शकरकंद की अधिक उपज देने वाली किस्म है. ये किस्म 90 से 105 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी चौड़ी पत्तियां होती हैं. इसके कंद आकार में छोटे और गुलाबी होते हैं. इस कंद में 33 फीसदी शुष्क पदार्थ, 20 फीसदी स्टार्च और 2.9 फीसदी चीनी होती है.
गौरी किस्म- शकरकंद की इस किस्म को साल 1998 में इजाद किया गया था. गौरी किस्म को तैयार होने में लगभग 110 से 120 दिन का समय लग जाता है. शकरकंद की इस किस्म के कंद का रंग बैंगनी और लाल होता है. गौरी किस्म के शकरकंद से औसतन उत्पादन तकरीबन 20 टन तक हो जाता है.
श्री कनका किस्म- शकरकंद की श्री कनका किस्म को साल 2004 में विकसित किया गया था. इस किस्म के कंद का छिलका दूधिया रंग का होता है. इसको काटने पर पीले रंग का गूदा नजर आता है. यह किस्म 100 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म का उत्पादन 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर है.
सिपस्वा 2 किस्म- शकरकंद की इस किस्म का उत्पादन अम्लीय मिट्टी में किया जाता है. इनमें केरोटिन की प्रचुर मात्रा होती है. शकरकंद की यह किस्म 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी उपज 20 से 24 टन प्रति हेक्टेयर है.