
आज के दौर में खेती में मुनाफा बढ़ाना है तो लीक से हटकर कुछ नया करना होगा, और पंजाब के मनसा जिले के किसान मंजीत सिंह ने इस बात को साबित कर दिखाया है. जहां पारंपरिक खेती से किसान कम मुनाफे और ज्यादा लागत से परेशान हैं, वहीं मंजीत सिंह ने 'स्मार्ट फार्मिंग' का ऐसा मॉडल तैयार किया है जिससे वह एक ही खेत से एक साथ तीन-तीन फसलें ले रहे हैं. उनकी यह तकनीक न केवल आमदनी बढ़ाती है, बल्कि खेती में होने वाले जोखिम को भी कम करती है.
मनसा जिले के गांव चुहरियां के रहने वाले मंजीत सिंह भले ही सिर्फ मैट्रिक तक पढ़े हैं, लेकिन उनके पास खेती का 30 साल का लंबा तजुर्बा है. इसी अनुभव के दम पर उन्होंने समझा कि एक फसल पर निर्भरता ठीक नहीं है, इसलिए उन्होंने "लो टनल तकनीक" का इस्तेमाल करते हुए सब्जियों की 'मल्टी-क्रॉप' तकनीक का यह सफल तरीका अपनाया है.
मंजीत सिंह की इनोवेशन का मुख्य आधार 'इंटरक्रॉपिंग' यानी एक साथ कई फसलें उगाना है. वे भी 'लो टनल' के अंदर लौकी की फसल उगाते हैं. लेकिन कमाल की बात आम तौर पर किसान एक बार में एक ही सब्जी लगाते हैं, लेकिन मंजीत सिंह एक ही जमीन, एक ही समय और लगभग उतनी ही लागत में तीन फसलें लौकी, मटर और पत्ता गोभी तैयार कर लेते हैं.
मंजीत सिंह की इस तकनीक की सफलता का राज 'समय प्रबंधन' में छिपा है. अगर आप भी इस तरह की खेती करना चाहते हैं, तो उनके कैलेंडर को समझना बहुत जरूरी है. इन तीनों फसलों की बुवाई नवंबर के दूसरे पखवाड़े 15 नवंबर के बाद में की जाती है. सबसे पहले खेत तैयार करके लौकी और मटर की बुवाई की जाती है. बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई की जाती है. इसके करीब एक हफ्ते बाद, उसी खेत में पत्ता गोभी की पौध लगा दी जाती है.
मंजीत सिंह के इस मॉडल में कमाई का सिलसिला जनवरी के अंत में पत्ता गोभी की कटाई से शुरू होता है जो फरवरी तक चलता है, जिसके तुरंत बाद खेत को लौकी के लिए समतल कर दिया जाता है. इसके बाद 20 फरवरी से 20 मार्च के बीच मटर की तुड़ाई होती है और अंत में मार्च से जून तक मुख्य फसल लौकी का उत्पादन मिलता है. पैदावार के मामले में यह तकनीक बेहद शानदार है, जहां प्रति हेक्टेयर लगभग 70-75 क्विंटल मटर, 160-180 क्विंटल पत्ता गोभी और 250-300 क्विंटल लौकी प्राप्त होती है. इस तरह एक ही खेत से तीन फसलें लेने पर किसान को सारा खर्च काटकर आसानी से 2 लाख रुपये प्रति एकड़ तक का शुद्ध मुनाफा मिल जाता है.
इस 'मल्टी-क्रॉपिंग' मॉडल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें खेती का जोखिम बंट जाता है. अगर मौसम या भाव की वजह से एक फसल में घाटा हो, तो बाकी दो फसलें मुनाफा देकर उसकी भरपाई कर देती हैं. साथ ही, घनी बुवाई के कारण खेत में खरपतवार नहीं उगते और एक ही बार की तैयारी, खाद और पानी में तीनों फसलें तैयार होने से लागत भी काफी कम आती है. यह तकनीक छोटे किसानों के लिए कम जमीन में ज्यादा कमाई की एक बेहतरीन मिसाल है, जिसे वैज्ञानिक भी बड़े स्तर पर बढ़ावा देने की वकालत करते हैं.
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में इस सिस्टम को और आसान बनाने के लिए मशीनों के इस्तेमाल पर और शोध करने की जरूरत है ताकि मजदूरों पर निर्भरता कम हो सके. मंजीत सिंह ने साबित कर दिया है कि खेती अब केवल पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि एक व्यावसायिक उद्यम है. जो किसान सब्जियों की खेती में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं, उन्हें मंजीत सिंह के इस मॉडल को जरूर अपनाना चाहिए.