दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने भले ही नैनो यूरिया का एक्सपोर्ट शुरू कर दिया है, लेकिन डेनमार्क के दो वैज्ञानिकों ने निर्माता के दावे के अनुसार उत्पाद की प्रभावकारिता पर सवाल उठाए हैं. घरेलू मोर्चे पर नैनो यूरिया पर कई जगहों पर सवाल उठाए गए हैं लेकिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर किसी ने विवाद को जन्म दिया है. इन वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र निकायों द्वारा वैज्ञानिक शोध कराने की मांग की है कि क्या नैनो यूरिया का पौधों के विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. पड़ता है तो किस हद तक. हालांकि, भारतीय उर्वरक उद्योग ने इस शोध पत्र की मंशा पर सवाल उठाए हैं. मुद्दा ये है कि क्या कुछ देश भारत की इस खोज से जल रहे हैं?
इफको ने 31 मई 2021 को नैनो यूरिया लॉन्च किया था. दावा है कि नैनो यूरिया की 500 मिली की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान करता है. लॉन्चिंग के वक्त इफको ने दावा किया था कि इसकी प्रभावशीलता की जांच करने के लिए देश में 94 फसलों पर लगभग 11,000 कृषि क्षेत्र परीक्षण (एफएफटी) किए गए. जिसमें फसलों की उपज में औसतन 8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. अब इस पर भारत के कुछ राजनेताओं, कुछ किसान नेताओं और डेनमार्क के दो वैज्ञानिकों को आपत्ति है. जबकि सच तो यह है कि हर पहलू की जांच-पड़ताल के बाद ही इसे फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर में शामिल किया गया है. इफको को इसका पेटेंट मिला है.
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बहरहाल, नैनो यूरिया को लेकर हॉलैंड की मासिक वैज्ञानिक पत्रिका प्लांट एंड स्वायल में प्रकाशित एक शोध पत्र में लेखक मैक्स फ्रैंक और सोरेन हस्टे ने चेतावनी दी है कि यह खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं. इफको द्वारा जाहिर की गईं उम्मीदें वास्तविकता से बहुत दूर हैं. इससे खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका के लिए गंभीर परिणामों के साथ बड़े पैमाने पर उपज का नुकसान हो सकता है. साथ ही, नए उत्पादों के साथ-साथ उनके पीछे के विज्ञान में विश्वास को भी खतरा हो सकता है.
इसी तरह का एक सवाल दिसंबर 2022 में राज्यसभा में आया था. तब रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा था, "यह स्वदेशी रिसर्च है. यह देश के किसानों के लिए है और दुनिया भी इसकी तरफ देख रही है. हम बिना कारण के अपने देश में इसके प्रति कोई ऐसा प्रश्न न खड़ा करें, जिससे दुनिया की किसी लॉबी को नैनो-फर्टिलाइजर या हमारी रिसर्च अप्रूवल बॉडीज पर उंगली उठाने का अवसर मिले. हर मसले पर डिटेल्ड स्टडी करके इसको मार्केट में लाया गया है." आज यही हो रहा है. पहले अपनी इतनी बड़ी खोज पर भारत में सवाल उठे और आज डेनमार्क ने अंगुली उठा दी है.
शोध में कहा गया है कि नैनो यूरिया लॉन्च करने से पहले वैज्ञानिक रूप से उनकी प्रभावकारिता और कार्रवाई के तरीके को साबित करने को अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए. हालांकि यह शोध पत्र नैनो यूरिया की लॉन्चिंग से काफी बाद हाल ही में आया है और संयोग से जब इफको इसका एक्सपोर्ट बढ़ाना चाहता है. हालांकि, भारतीय उर्वरक उद्योग से जुड़े लोग इस शोध पत्र पर सवाल उठा रहे हैं. दरअसल, नैनो यूरिया विशुद्ध रूप से भारत की खोज है. कई देश इसकी डिमांड कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या पारंपरिक यूरिया बनाने वाले देशों को इससे खतरा लग रहा है. इसलिए ऐसे देशों को भारत की यह खोज पच नहीं रही है?
सहकारिता विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि नैनो यूरिया के बाद नैनो डीएपी भी मार्केट में आ चुका है. नैनो जिंक पर भी काम जारी है. नैनो सल्फर भी आएगा. यह भारत ही नहीं दुनिया के फर्टिलाइजर सेक्टर में बहुत बड़ी क्रांति है. यह खोज भारत के सहकारिता क्षेत्र की है. जाहिर है कि एक लॉबी को इससे बड़ी दिक्कत हो सकती है. यह लॉबी भारत में भी है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी. इस लॉबी को भारत की हर सफलता पर सवाल उठाने में मजा आता है. इसलिए इनकी बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है.
हालांकि, कई भारतीय कृषि वैज्ञानिक, जिन्होंने पिछले सप्ताह पेपर में उठाए गए मुद्दों पर अनौपचारिक रूप से चर्चा की, इस बात पर सहमत हुए कि इफको को लेखकों द्वारा उठाए गए वैज्ञानिक बिंदुओं पर स्पष्टीकरण देना चाहिए. इस मसले पर अभी तक इफको ने कोई बयान नहीं दिया है. बता दें कि नैनो यूरिया की प्रभावकारिता पर राजस्थान के किसान सवाल उठा चुके हैं. कई सांसदों ने लोकसभा में इससे जुड़े सवाल पूछे हैं. बहरहाल, अभी हमें अपने वैज्ञानिकों की बात पर भरोसा करने की जरूरत है जिन्होंने इसे हरी झंडी दी थी. इफको ने हाल ही में नैनो डीएपी की भी शुरुआत की है.
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