किसान यदि अपने खेतों में हरी खाद का प्रयोग करते हैं, तो उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण का भी संरक्षण होता है. उत्पादन लागत तो कम लगती ही है. रासायनिक उर्वरकों द्वारा मिट्टी को सिर्फ आवश्यक पोषक तत्वों जैसे-नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश इत्यादि की पूर्ति होती है. लेकिन मिट्टी की संरचना, उसकी जलधारण क्षमता एवं उसमें उपस्थित सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ाने में रसायनिक उर्वरकों का कोई योगदान नहीं होता. जबकि इन सबकी पूर्ति के लिए हरी खाद का खेत में प्रयोग एक संजीवनी बूटी की तरह काम करता है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खरीफ के मौसम में हरी खाद के लिए किसान ढैंचा, सनई, ग्वार, मूंग, उड़द व लोबिया आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं. इन फसलों के बीजों को बरसात से पहले सूखे खेत में भी छिटककर बुवाई कर सकते हैं. मॉनसून आने पर बीज अंकुरित हो जाते हैं. आजकल बढ़ते ऊर्जा संकट, उर्वरकों के दाम में भारी वृद्धि तथा कार्बनिक खादों (गोबर की खाद, कम्पोस्ट) की कम आपूर्ति से हरी खाद का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है.
हरी खाद के लिए ढैंचा बोना है तो प्रति हेक्टेयर 50-60 किलोग्राम बीज लगेगा.
सनई बोना है तो 60-80 किलोग्राम बीज लगेगा.
ग्वार की बुवाई करनी है तो 20-25 किलोग्राम
मूंग प्रति हेक्टेयर 15-20 किलोग्राम लगेगी.
लोबिया की बुवाई के लिए 30-35 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है.
ढैंचा की फसल से 45 दिनों में लगभग 20-25 टन हरा पदार्थ और 85-105 किलोग्राम नाइट्रोजन मिलता है.
सनई की फसल से 40-50 दिनों में 20-30 टन हरा पदार्थ और 85-125 किलोग्राम नाइट्रोजन मिलेगा.
ग्वार की फसल से 20-25 टन हरा पदार्थ तथा 68-85 किलोग्राम नाइट्रोजन मिलेगा.
मूंग व उड़द की फसल से 10-12 टन हरा पदार्थ तथा 41-49 किलोग्राम नाइट्रोजन उपलब्ध होगा.
लोबिया की फसल से 15-18 टन हरा पदार्थ तथा 74-88 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर मिट्टी को प्राप्त होता है.
ढैंचा की उन्नत प्रजातियां पंत ढैंचा-1, हिसार ढैचा-1, सी.एस.डी. 123 एवं सी.एस.डी. 137 हैं. सनई की प्रजातियां नरेन्द्र सनई-1, के-12, एम.-18, एम.-35, बी.ई.-1, बेलगांव, दिनदवाड़ा, टी.-6, एस.टी.-55 तथा एस.एस.-2 आदि प्रमुख हैं. इनसे पर्याप्त जैव-पदार्थ मिलता है. ध्यान देने वाली बात है कि ढैचा की फसल को 40-45 दिनों के भीतर ही खेत में मिला देना चाहिए. हरी खाद की पलटी में देरी होने से तना सख्त हो जाता है और यह डिकंपोज नहीं हो पाता. इस कारण कई बार खेत में दीमक का प्रकोप बढ़ जाता है.
जब फसल की वृद्धि अच्छी हो गई हो तब फूल आने के पूर्व इसे हल या डिस्क हैरो द्वारा खेत में पलटकर पाटा चला देना चाहिए. यदि खेत में 5-6 सेंटीमीटर पानी भरा हो तो पलटने व मिट्टी में दबाने में कम मेहनत लगती है. जुताई उसी दिशा में करनी जिसमें पौधों के डिकंपोजिशन में सुविधा होती हो. यदि पौधों को दबाते समय खेत में पानी की कमी हो या देरी से जुताई की जाती है, तो पौधों के डिकंपोजिशन में अधिक समय लगता है.
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