ऊसर भूमि सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत देश में 90 और 2000 के दशक में तेजी से काम हुआ है. उत्तर प्रदेश में भी ऊसर सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक 6 लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि सामान्य हो चुकी है. उसर भूमि सुधार के लिए काम करने वाली केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा लवणीय भूमि में पैदावार देने वाली धान ,गेहूं और सरसों की 8 किस्मों को विकसित किया जा चुका है. उत्तर प्रदेश में खरीफ के सीजन के अंतर्गत ऊसर भूमि में किसानों के द्वारा वैसे तो धान की कई किस्में को उगाया जाता है लेकिन केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा विकसित सीएसआर 76 धान की किस्म की मांग सबसे ज्यादा है. धान की यह किस्म उच्य पीएच मान 9.8 भूमि में भी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है. किसानों के बीच में धान की इस किस्म के बीज की मांग खूब बढ़ी है.
केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रवि किरन के द्वारा किसान तक को बताया गया की वर्ष 2021 में सीएसआर-76 धान की नई किस्म को विकसित किया गया. लवणीय भूमि को ध्यान में रखते हुए इस किस्म को तैयार किया गया है. 9.8 पीएच भूमि में धान की किस्में 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है जबकि सामान्य भूमि में इस धान की इस किस्म की पैदावार 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. धान की इस किस्म की पौधे की लंबाई ज्यादा बड़ी नहीं होती है. पौधे की लंबाई 90 सेंटीमीटर तक होती है. वहीं धान की इस किस्म की पकने की अवधि 125 से 130 दिन के बीच है. धान की यह किस्म लंबे और पतले चावल वाली है. किसानों के बीच धान की यह किस्म खूब पॉपुलर हो चुकी है.
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लखनऊ स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा लवणीय भूमि को ठीक करने और उच्च पीएच मान वाली भूमि में उगाई जाने वाली फसलों को लेकर शोध कार्य किए जाते हैं. संस्थान के द्वारा अब तक कुल 8 किस्म को विकसित किया गया है जिनमें धान की चार किस्म शामिल है. सीएसआर 36, 43 , सीएसआर-46, और 2021 में सीएसआर-76 धान की किस्म को विकसित किया गया है. किसान के द्वारा लवणीय भूमि में धान की इन किस्मों का खूब प्रयोग किया जा रहा है. वही संस्थान के वैज्ञानिक रवि किरन के द्वारा बताया गया कि धान की सभी किस्मों के बीज संस्थान में उपलब्ध है. किसान को बड़े आसानी से संस्थान से निर्धारित दर पर बीज खरीद सकते हैं.