रबी फसल की कटाई के साथ मई महीने से किसान खरीफ फसल की खेती के लिए तैयारियां शुरू कर देते हैं. डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर के कृषि वैज्ञानिकों का कहना कि किसान 25 मई के बाद से धान की नर्सरी डाल सकते हैं. इसके साथ ही किसान हल्दी की बुआई भी शुरू कर सकते है, लेकिन बुआई से पहले खेत उसके अनुकूल तैयार करना बेहद जरूरी है. आइए जानते हैं कि किसान धान की नर्सरी लगाने के लिए किस तकनीक का प्रयोग करें, जिससे वह धान की रोपाई के लिए बेहतर पौध तैयार कर सकें.
डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर की तरफ से जारी वीकली एडवाइजरी में कहा गया है कि धान की नर्सरी डालने से पहले किसान खेत में सड़ी हुई गोबर का उपयोग करें. इसके साथ ही एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की रोपाई के लिए किसान 800 से 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में नर्सरी तैयार कर सकते हैं. वहीं किसान 25 मई से देर से पकने वाली धान की नर्सरी लगा सकते हैं. लम्बी अवधि वाले धान की किस्मों में राजश्री, राजेंद्र मंसुरी, राजेन्द्र स्वेता, किशोरी, स्वर्णा, स्वर्णा सब-1,सत्यम सहित अन्य किस्म हैं. धान की नर्सरी डालने से पहले बीज उपचार जरूरी है.
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बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भागलपुर ने बीते दिनों 25वीं शोध परिषद की बैठक में धान की दो नई किस्में सबौर मोती, और सबौर सोना जारी की थी. इन दोनों किस्मों को कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सिंह ने विकसित किया है. इसके बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि सबौर मोती धान कम समय में पकने के साथ- साथ अधिक उपज देने वाली किस्म है, जिसकी औसत उपज 52-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसे बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है. वहीं सबौर सोना धान मध्यम अवधि की बौनी किस्म है, जिसकी औसत उपज 52-58 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. यह चावल सुगंधित होता है. इस किस्म की खेती से किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. अनुशंसित दोनों किस्में जलवायु अनुकूल तथा धान में लगने वाले मुख्य कीट रोग के प्रति माध्यम-प्रतिरोधी है. प्रति बीघा करीब 13 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है.
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डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिकों के अनुसार जो किसान हल्दी की खेती करना चाहते हैं. उनके लिए यह समय अनुकूल है. वहीं हल्दी की खेत के जुताई के दौरान किसान सड़ी गोबर की खाद 25 से 30 टन, नाइट्रोजन 60 से 75 किलोग्राम, पोटाश 100 से 120 किलोग्राम, जिंक सल्फेट 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग कर सकते हैं. वहीं प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल बीज की जरूरत होगी. इसके साथ ही बीज का साइज 30 से 35 ग्राम तक होना चाहिए, जिसकी कम से कम चार से पांच कलियां स्वस्थ हो. वहीं रोपाई की दूरी 30 बाई 20 सेमी तथा गहराई 5 से 6 सेमी तक रखना चाहिए.उत्तर बिहार के लिए हल्दी की राजेंद्र सोनिया, राजेंद्र सोनाली किस्म बढ़ियां हैं.