कई वर्षों से खराब मौसम, बार-बार फसल खराब होने और मिट्टी की खराब उर्वरता से जूझ रहे विदर्भ के किसान टिकाऊ और लाभदायक विकल्प के तौर पर रेशम उत्पादन की ओर रुख कर रहे हैं. महाराष्ट्र की सरकार भी अब इस बदलाव को बढ़ावा देने में लग गई है. सरकार की तरफ से 10,000 किसानों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से पांच साल की रेशम उत्पादन विकास योजना शुरू की गई है. इसमें महिलाओं और आदिवासी समुदायों पर विशेष ध्यान दिया गया है.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अधिकारियों को योजना के लिए धन आवंटन में तेजी लाने और योजनाओं का समय पर लागू करना, सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है. महाराष्ट्र की मीडिया के अनुसार योजना के तहत, किसानों को रेशम कीट के अंडों पर 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी. साथ ही रेशम रीलिंग के लिए 100 रुपये से 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक की प्रोत्साहन राशि भी मिलेगी. इस पहल में किसानों को आधुनिक रेशम उत्पादन तरीको से लैस करने के लिए तकनीकी प्रशिक्षण, अध्ययन दौरे और रोजगार सृजन कार्यक्रम भी शामिल हैं.
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पुणे स्थित भारतीय कृषि उद्योग फाउंडेशन (BAIF) समूह भी इसमें सरकार की मदद कर रहा है. संगठन की तरफ से विकास मॉडल के माध्यम से शहतूत की खेती से लेकर रेशमी कपड़े के निर्माण तक वैल्यू एडेड प्रोडक्ट रेंज बनाने के लिए सहयोग की जा रही है. कच्चे माल की उपलब्धता का समर्थन करने के लिए, वन विभाग आदिवासी क्षेत्रों में शहतूत, अर्जुन और बाकी रेशमकीट-अनुकूल पेड़ों के जंगल तैयार करने को बढ़ावा दे रहा है.
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प्रधान मुख्य वन संरक्षक को टसर रेशमकीट पालकों की सहायता करने और जमीनी चुनौतियों का समाधान करने का निर्देश दिया गया है. राज्य ने मॉर्डन मशीनरी के लिए आर्थिक सहायता भी शुरू की है, जिसमें मल्टी-एंड रीलिंग इकाइयों के लिए 100 रुपये प्रति किलोग्राम, ऑटोमेटेड रीलिंग यूनिट्स के लिए 150 रुपये प्रति किलोग्राम और टसर रेशम रीलिंग के लिए 100 रुपये प्रति किलोग्राम की पेशकश की गई है.
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निजी कंपनियों और सोशल ऑर्गेनाइजेशंस के समर्थन से और केंद्रीय और राज्य योजनाओं का लाभ उठाकर, रेशम उत्पादन विदर्भ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए तैयार है. जैसे-जैसे सरकारी समर्थन और कॉर्पोरेट भागीदारी बढ़ रही है, रेशम की खेती एक जलवायु-प्रतिरोधी आजीविका के तौर उभर रही है. बताया जा रहा है कि यह क्षेत्र के संकटग्रस्त किसानों को आशा, स्थिरता और नए अवसर प्रदान कर सकेगी.