आम के बौर के लिए घातक हैं ये दो रोग, रखें कड़ी नजर वरना नहीं बन पाएंगे फल, एक्सपर्ट ने दी सलाह

आम के बौर के लिए घातक हैं ये दो रोग, रखें कड़ी नजर वरना नहीं बन पाएंगे फल, एक्सपर्ट ने दी सलाह

मार्च के महीने में 25-35°C तापमान और अधिक आर्द्रता वाले मौसम में पाउडर फफूंदी और बौर झुलसा जैसी बीमारियां आम के बौर को प्रभावित कर उत्पादन में भारी गिरावट ला सकती हैं. उचित समय पर नियंत्रण का प्रयोग कर इन रोग से बचा जा सकता है वरना पेड़ पर नहीं बन पाएंगे फल.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Mar 13, 2025,
  • Updated Mar 13, 2025, 6:13 PM IST

आम के बाग में इस समय बौर आ रहे हैं. लेकिन जरूरी है ये बौर अधिक से अधिक फल में परिवर्तित हों. इसके लिए आम के बौर का प्रबंधन करना जरूरी है क्योंकि मार्च के महीने में 25-35°C तापमान और अधिक आर्द्रता वाले मौसम में पाउडर फफूंदी और बौर झुलसा जैसी बीमारियां आम को नुकसान कर उत्पादन में भारी गिरावट ला सकती हैं. इसलिए उचित समय पर नियंत्रण कर इन समस्याओं से बचा जा सकता है.

आरएयू सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा, समस्तीपुर, बिहार के डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ एस. के. सिंह के अनुसार, आम के बौर फूल खिलने से पहले और फल के मटर के आकार तक पहुंचने की अवस्था के बीच में बाग का खास तौर पर  देखरेख करना जरूरी होता है. आम का यह फंगस रोग बहुत तेजी से फैलता है. इस रोग की वजह से आम की उपज बहुत ज्यादा प्रभावित हो सकती है जिससे  उपज  और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होगी.

आम में इस रोग पर रखें कड़ी नजर 

पाउडर फफूंदी आम के फूल और छोटे फलों को प्रभावित करने वाली एक पाउडरी मिल्डयू प्रमुख फफूंद जनित बीमारी है. इस रोग के लगने पर बौर पर सफेद पाउडर जैसी संरचना दिखाई देती है. यह पाउडर फूलों को ढक लेता है, जिससे परागण और फल बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है. कई बार फूल पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं और फलों का निर्माण नहीं हो पाता. कई बार छोटे फल संक्रमित हो जाते हैं और वे विकृत होकर गिर जाते हैं. ये रोग बादल छाए रहने और अधिक नमी की स्थिति में अधिक तेजी से फैलता है. 

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अगर यह रोग आम में लग गया तो प्रभावित बौर को प्रारंभिक अवस्था में हटा देना चाहिए. इस रोग की रोकथाम के लिए सल्फर (Liquid Sulphur) @ 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. या हेक्साकोनाज़ोल, प्रोपिकोनाज़ोल, फ्लुसिलासोल या माइकोलैबुटानिल में से किसी एक दवा को 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें और दो सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव जारी रखें. जब तक कि फल पूरी तरह से विकसित न हो जाएं. पूरी तरह फूल खिल जाने के बाद सल्फर पाउडर का छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह तेज धूप में बौर को जलाने कारण बन सकता है.

आम के बौर को झुलसा देगा ये रोग

डॉ एस. के. सिंह ने कहा कि आम के बौर को प्रभावित करने वाली झुलसा एक गंभीर बीमारी है, जो एक फफूंद के कारण होती है. इस रोग के लगने के बाद बौर के डंठल का रंग हरे से लाल-भूरे रंग में बदल जाता है. प्रभावित बौर सूखने लगते हैं और गिर जाते हैं. फूलों पर काले धब्बे बनने लगते हैं, जिससे परागण प्रभावित होता है और फलन कम हो जाता है. संक्रमित फूल और छोटे फल भूरे होकर झड़ जाते हैं.

इस रोग का ऐसे करें रोकथाम

संक्रमित फूलों और शाखाओं की छंटाई कर नष्ट कर देना चाहिए. इसकी रोकथाम के लिए हेक्साकोनाज़ोल प्रोपिकोनाज़ोल अथवा फ्लुसिलासोल में किसी एक दवा की  1 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. या बायोफंजीसाइड जैसे ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल कर सकते हैं. यह दवा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है.

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इस बात का खास खयाल रखें

परागण प्रक्रिया के दौरान कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए. इससे परागण में सहायक कीट मधुमक्खियां, नष्ट हो सकते हैं, जिससे फल बनने की दर कम हो सकती है. आंम के बाग में उच्च दबाव छिड़काव उपकरणों का उपयोग करें. इससे कवकनाशक पूरे वृक्ष पर समान रूप से फैलेगा. एक ही प्रकार के सिस्टमिक फंगीसाइड का अधिक उपयोग करने से रोगजनक फफूंद उसमें प्रतिरोधकता विकसित कर सकते हैं, जिससे यह प्रभावी नहीं रहेगा. आम उत्पादन को बढ़ाने और रोगों से बचाव के लिए सतर्क रहना जरूरी है. इससे आम की अधिक उपज और गुणवत्ता दोनों को बेहतर बना सकते हैं.

 

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