गेहूं की तीसरी और चौथी पत्ती पीली हो जाए तो जिंक की कमी का है लक्षण, तुरंत डालें ये 2 दवा

गेहूं की तीसरी और चौथी पत्ती पीली हो जाए तो जिंक की कमी का है लक्षण, तुरंत डालें ये 2 दवा

गेहूं बोने वाले किसानों को आईएमडी ने कहा है, यदि बुवाई के समय जिंक सल्फेट नहीं दिया गया है, तो बुवाई के 45 दिन बाद और 60 दिन बाद 0.5% जिंक सल्फेट + 2.5% यूरिया या 0.25% बुझा हुआ चूना का छिड़काव करें. किसानों को यह भी सलाह दी जाती है कि यदि पौधों की तीसरी और चौथी पत्ती पीली हो जाए, जो जिंक की कमी के लक्षणों को बताती है, तो 2.5% यूरिया को 0.5% जिंक सल्फेट के साथ मिलाकर छिड़काव करें.

गेहूं में पीलापनगेहूं में पीलापन
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Mar 07, 2025,
  • Updated Mar 07, 2025, 2:52 PM IST

हरियाणा के किसानों के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग यानी IMD ने फसल एडवाइजरी जारी की है. एडवाइजरी में आईएमडी ने कहा है कि किसानों को सलाह दी जाती है कि वे खेतों में सिंचाई न करें या उर्वरक न डालें या अन्य खेती के काम न करें क्योंकि आगे बारिश का पूर्वानुमान है. गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग को लेकर नियमित निगरानी करें. नए लगाए गए और छोटे पौधों के ऊपर बाजरे या गन्ने का शेड बनाएं. इससे फसल की सुरक्षा होगी. 

गेहूं

गेहूं किसानों को आईएमडी ने कहा है, यदि बुवाई के समय जिंक सल्फेट नहीं दिया गया है, तो बुवाई के 45 दिन बाद और 60 दिन बाद 0.5% जिंक सल्फेट + 2.5% यूरिया या 0.25% बुझा हुआ चूना का छिड़काव करें. किसानों को यह भी सलाह दी जाती है कि यदि पौधों की तीसरी और चौथी पत्ती पीली हो जाए, जो जिंक की कमी के लक्षणों को बताती है, तो 2.5% यूरिया को 0.5% जिंक सल्फेट के साथ मिलाकर छिड़काव करें. 

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गेहूं की बुवाई के 30-35 दिनों के बाद "जंगली पालक" सहित गेहूं में सभी चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को रोकने के लिए, मेटसल्फ्यूरॉन (एल्ग्रिप जी. पा या जी. ग्रैन) 8.0 ग्राम (उत्पाद + सहायक) प्रति एकड़ की दर से 200-250 लीटर पानी में मिलाकर, हवा बंद होने पर फ्लैट फैन नोजल का इस्तेमाल करके छिड़काव करें.

सरसों

सिंचाई के समय केवल हल्का पानी ही डालें और खेत में पानी जमा न होने दें, अन्यथा पौधे मर जाएंगे. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने खेतों पर नियमित निगरानी रखें, क्योंकि यह मौसम सफेद रतुआ रोग के पनपने और सरसों एफिड के प्रकोप के लिए अनुकूल है. प्रकोप की शुरुआती अवस्था में पौधे के प्रभावित भाग को नष्ट कर दें. जिन क्षेत्रों में तना सड़न रोग हर साल होता है, वहां बुवाई के 45-50 दिन बाद 0.1% की दर से कार्बेन्डाजिम का पहला छिड़काव करें. 65-70 दिन बाद 0.1% की दर से कार्बेन्डाजिम का दूसरा छिड़काव करें.

किसान अपने खेतों की लगातार निगरानी करते रहें. जब यह निश्चित हो जाए कि खेतों में सफेद रतुआ रोग ने दस्तक दे दी है, तो 600-800 ग्राम मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) को 250-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें.

बरसीम

किसानों को सलाह दी जाती है कि वे बरसीम में जरूरत के अनुसार ही सिंचाई करें. जिन क्षेत्रों में किसान अभी तक बरसीम की बुवाई नहीं कर पाए हैं, वे फसल की बुवाई पूरी कर लें, क्योंकि मौजूदा मौसम की स्थिति बुवाई के लिए उपयुक्त है. 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज बोएं. चारे की अधिक उपज के लिए बुवाई से पहले प्रति एकड़ 10 किलोग्राम नाइट्रोजन और 28 किलोग्राम फास्फोरस डालें.

मक्का

अगर मक्के के बीच अन्य फसलों की इंटर क्रॉपिंग करनी है तो खेत में नमी की मात्रा का ध्यान रखते हुए ही ट्रैक्टर से ऑपरेट होने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करें. मक्का बोरर के हमले को नैपसेक स्प्रेयर के साथ प्रति एकड़ 60 लीटर पानी में 30 मिली कोराजन 18.5 एससी (क्लोरएंट्रानिलिप्रोले) का छिड़काव करके रोका जा सकता है. इस कीट को नियंत्रित करने के लिए बायोएजेंट ट्राइकोग्रामा चिलोनिस का भी उपयोग किया जा सकता है.

खेत में लगे पानी के कारण होने वाले नुकसान को साप्ताहिक अंतराल पर 3 प्रतिशत यूरिया घोल के दो छिड़काव या जमा पानी खत्म होने के बाद मध्यम से गंभीर नुकसान के मामले में प्रति एकड़ 12-24 किलोग्राम (25-50 किलोग्राम यूरिया) अतिरिक्त नाइट्रोजन डालकर कम किया जा सकता है.

फॉल आर्मीवर्म को रोकने के लिए, मौसम साफ होने के बाद मक्के की फसल पर कोराजन 18.5 एससी @ 0.4 मिली प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. इसके प्रभावी नियंत्रण के लिए स्प्रे नोजल को मक्के के प्रभावित हिस्से की ओर रखें.

सब्जी फसलें

अधिक उपज पाने के लिए नियमित अंतराल पर कद्दूवर्गीय फसलों और टमाटर, मिर्च, बैंगन और भिंडी जैसी अन्य सब्जियों की कटाई करें. लौकी, करेला, टिंडा की बुवाई के लिए 2 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज और वंगा के लिए 1.0 किलोग्राम बीज का उपयोग सलाह के अनुसार करें. भिंडी में जैसिड का प्रबंधन 80 मिली नीम आधारित जैविक कीटनाशक इकोटिन (एजाडिरेक्टिन 5%) को 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ 15 दिन के अंतराल पर एक या दो बार छिड़काव करके किया जा सकता है.

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मोजूदा मौसम प्याज की बुवाई के लिए सही है. बीज दर 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें. बुवाई से पहले बीज को कैप्टान/2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें. यदि आलू के पौधे की ऊंचाई 15-22 सेमी हो जाए तो बुवाई के 30-35 दिन बाद मिट्टी की जुताई या मिट्टी चढ़ाने का काम करें.

 

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