खरीफ सीजन के दौरान देश के कई राज्यों में किसानों को एक बोरी खाद खरीदने के लिए पुलिस की लाठियां तक खानी पड़ी हैं. मगर बावजूद इसके भी भारत सरकार के लिए रबी सीजन में उर्वरक की मांग को पूरा करना और भी मुश्किल होगा. रबी 2024-25 में फर्टिलाइजर की मांग 36.45 मिलियन टन के मुकाबले 4 प्रतिशत बढ़कर 37.87 मिलियन टन (mt) होने का अनुमान है.
अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट 'बिजनेस लाइन' की एक रिपोर्ट में उद्योग सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि इस रबी सीजन में यूरिया की मांग 19.61 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जबकि एक साल पहले यह 18.69 मिलियन टन थी. इसी प्रकार, डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की मांग 5.21 मिलियन टन के मुकाबले 5.34 मिलियन टन, म्यूरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी) की मांग 1.2 मिलियन टन के मुकाबले 1.57 मिलियन टन, कॉम्प्लेक्स (सभी पोषक तत्वों का मिश्रण) की मांग 7.71 मिलियन टन के मुकाबले 8.24 मिलियन टन और सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) की मांग 3.65 मिलियन टन के मुकाबले 3.12 मिलियन टन रहने का अनुमान है. वहीं आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पिछले साल रबी सीजन (अक्टूबर-मार्च) के दौरान यूरिया की बिक्री 19.88 मिलियन टन, डीएपी 5.02 मिलियन टन, एमओपी 1.28 मिलियन टन और कॉम्प्लेक्स की बिक्री 7.43 मिलियन टन थी.
इसको लेकर कृषि वैज्ञानिक ए.के. सिंह ने कहा कि पिछले रबी सीजन की वास्तविक खपत के आधार पर मांग के अनुमान काफी हद तक सही लगते हैं. लेकिन सरकार को बिना किसी सीमा के समय पर और पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी. एक बार जब यह संदेश फैल जाएगा कि उपलब्धता पर्याप्त से ज़्यादा है, तो कोई कालाबाज़ारी नहीं होगी.
सूत्रों ने बताया कि यूरिया का अंतिम स्टॉक, जो खरीफ सीजन के दौरान कमी के कारण सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है, 23 सितंबर तक 3.25 मिलियन टन था, जबकि अक्टूबर के लिए मांग 3.97 मिलियन टन आंकी गई है. सरकार को उम्मीद है कि 31 अक्टूबर से पहले उसे 2 मिलियन टन आयातित यूरिया प्राप्त हो जाएगा.
एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि पिछले साल अक्टूबर में यूरिया का उत्पादन लगभग 26 लाख टन था और अगर हम इस साल भी 20 लाख टन आयातित यूरिया के साथ, इसी के बराबर उत्पादन कर सकें, तो यूरिया की उपलब्धता कोई समस्या नहीं बनेगी. चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही के दौरान यूरिया का घरेलू उत्पादन 10 प्रतिशत घटकर 67.9 लाख टन रह गया, इसलिए इस अक्टूबर में भी उत्पादन में मामूली गिरावट की आशंका है.
अगस्त-सितंबर में, सरकार ने नेशनल फर्टिलाइजर्स (एनएफएल) और इंडियन पोटाश (आईपीएल) द्वारा जारी टेंडरों के माध्यम से 40 लाख टन यूरिया के आयात की अनुमति दी थी. सूत्रों के अनुसार, इसमें से 10 लाख टन से अधिक यूरिया पहले ही आ चुका है. कुछ कृषि वैज्ञानिकों का कहाना है कि चूंकि गेहूं और सरसों जैसी रबी फसलों में प्रमुख उर्वरक डीएपी है, और चना और मसूर दोनों को उतनी नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए यदि कुछ कमी होती भी है तो उसे मिट्टी में मौजूद कार्बनिक कार्बन के वर्तमान स्तर से प्रबंधित किया जा सकता है. इसके अलावा, कृषि फसलों में यूरिया का मुख्य प्रयोग अगेती फसलों में नवम्बर में ही शुरू होगा.
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