एक ही खेत में बार-बार क्यों नहीं लेनी चाहिए अरहर की फसल, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

एक ही खेत में बार-बार क्यों नहीं लेनी चाहिए अरहर की फसल, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

यह रोग पूरे भारत में अरहर की खेती में पाया जाता है. अरहर उगाने वाले कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार में इसके द्वारा बहुत अधिक हानि होती है. एक ही खेत में लगातार अरहर की फसल लेने से इस रोग से लगभग 50 प्रतिशत फसल सूखकर नष्ट हो जाते हैं.

अरहर की खेती अरहर की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jun 04, 2024,
  • Updated Jun 04, 2024, 12:34 PM IST

दलहन का उत्पादन बढ़ाना भारत के ल‍िए बहुत जरूरी है, क्योंक‍ि इसका आयात हो रहा है, लेक‍िन प्रमुख दलहन फसल अरहर कई रोगों से प्रभावित होती है. अगर समय पर ध्यान न द‍िया जाए तो क‍िसानों की मेहनत बेकार जाती है. इसमें उकठा एक प्रमुख विनाशकारी रोग है. यह रोग पूरे भारत में अरहर की खेती में पाया जाता है. अरहर उगाने वाले कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार में इसके द्वारा बहुत अधिक हानि होती है. एक ही खेत में लगातार अरहर की फसल लेने से इस रोग से लगभग 50 प्रतिशत फसल सूखकर नष्ट हो जाते हैं. कृषि वैज्ञानिक संजीव कुमार, महेश कुमार , मो. शमीम,राकेश कुमार और हंसराज हंस बताते हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार में इसकी खड़ी फसल को इस रोग के कारण प्रतिवर्ष लगभग 5-10 प्रतिशत तक का नुकसान होता है. 

इसकी दाल को प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है. किसानों को अरहर की खेती से अधिक पैदावार लेने के लिए खेत की अच्छी तैयारी, बीज के उन्नत किस्मों का चयन, समय पर बुवाई और संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरकों के प्रयोग करने की सलाह दी जाती है. इसके रोगों का समुचित प्रबंधन करके इनसे होने वाली हानि को कम किया जा सकता है. अरहर खरीफ मौसम की प्रमुख दलहन फसल है. यह भारत में ही नहीं बल्क‍ि विश्व के अन्य देशों में भी अत्यन्त लोकप्रिय है. क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से चने के बाद अरहर का दूसरा स्थान है. प्रोटीन का अच्छा स्रोत होने के कारण हमारे देश में बड़े पैमाने पर अरहर की दाल का सेवन किया जाता है. इस दाल में 21 से 22 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है.  

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उकठा रोग के लक्षण

यह रोग एक मृदाजनित फंगस से होता है. इस रोग का संक्रमण देर से पकने वाली प्रजातियों में अधिक होता है. इस रोग का प्रमुख लक्षण बीजांकुरों और पौधों का मुरझाकर सूख जाना होता है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि पौधे पानी की कमी से मुरझा रहे हैं, जबकि खेत में नमी उपयुक्त मात्रा में रहती है. पहले पत्तियां पीली होकर मुरझाने लगती हैं और फिर सूख जाती हैं. इससे पूरा पौधा अथवा उसकी कुछ शाखायें सूख जाती हैं. फंगस के तंतु पौधे के संवहनी बंडलों में वृद्धि कर उनके आवागमन के रास्ते को बन्द कर देते हैं. इसके कारण जल और अन्य खनिज पौधे के ऊपरी भागों तक पहुंच नहीं पाते हैं और पौधे मुरझाने लगते हैं. 

भूरे रंग की धारियां द‍िखती हैं 

रोग की उग्र अवस्था में रोगग्रस्त पौधे की जड़ एवं तनों को फाड़कर देखने पर उसके बीच में काली या भूरे रंग की धारियां दिखाई देती हैं. ये काली या भूरे रंग की धारियां तने तथा जड़ों पर भी दिखाई देती हैं. इन काली धारियों से निकलने वाली शाखायें शीघ्र मुरझा जाती हैं. अरहर में उकठा रोग का कारण जीव विष फ्यूजेरिक अम्ल और लाइकोमेरास्मीन भी होता है. यह फंगस के तन्तुओं से स्रावित होता है. ये जीवविष परपोषी कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली की पारगम्यता में बदलाव कर देते हैं. इस कारण कोशिकाएं सामान्य की अपेक्षा अधिक तेजी से पानी खोने लगती हैं. इस असंतुलन के कारण पौधों में उकठा उत्पन्न हो जाता है.  

बचाव के ल‍िए कौन सी दवा डालें

अरहर में उकठा रोग से बचाव के ल‍िए 2.0 से 2.5 ग्राम इण्डोफिल एम 45 फंफॅूदी नाशक दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. इस छिड़काव के 8-10 दिनों बाद फ‍िर रीडोमिल दवा का 1.5 से 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें.

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