इस मशरूम की खेती से 20 दिन में होगी बंपर कमाई, जानिए पूरी तकनीक

इस मशरूम की खेती से 20 दिन में होगी बंपर कमाई, जानिए पूरी तकनीक

ऑयस्टर मशरूम की खेती एक कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है, जिसमें 25 दिनों में पैसा दोगुना करने की संभावना होती है. ये 20-25 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी होटल, रेस्टोरेंट और सुपरमार्केट में इसकी जबरदस्त मांग है. सही तकनीक अपनाकर अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.

मशरूम की खेतीमशरूम की खेती
जेपी स‍िंह
  • Noida,
  • Mar 22, 2025,
  • Updated Mar 22, 2025, 2:02 PM IST

भारत में ढिंगरी और ऑयस्टर मशरूम सबसे ज्यादा प्रचलित है. ऑयस्टर मशरूम को नमी और ठंडक की जरूरत  होती है. अपने देश में साल भर ऑयस्टर मशरूम की खेती की जा सकती है. आयस्टर मशरूम इस समय विश्व का दूसरे नंबर का मशरूम है. हमारे देश में भी उत्पादन की दृष्टि से ये दूसरे स्थान पर है. एनर्जी और प्रोटीन के अच्छे स्रोत के बावजूद अपने देश में इसकी खपत बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही है. जबकि चीन जापान और अमेरिका जैसे देशों में इसका इस्तेमाल वैसे होता है जैसे भारत में आलू का ऑयस्टर मशरूम को काफी सरलता से घरों के बंद कमरों में उगाया जा सकता है.

इसके लिए कम जगह की ज़रूरत होती है साथ ही इसकी उत्पादन तकनीक सरल और लागत बहुत कम है, जिसके माध्यम से समाज का हर वर्ग इसे छोटे या बड़े रूप में उगा सकता है. इसे जुलाई से मार्च तक आसानी से उगा सकते है. कई जगहों पर जहां तापमान कम हो वहां इसे साल भर उगाया जा सकता है. इस मशरूम की उत्पादन क्षमता दूसरे मशरूम की तुलना में सबसे ज्यादा है.

कम खर्च में उगाएं ये मशरूम

विशेषज्ञों के अनुसार ऑयस्टर मशरूम को सफलतापूर्वक कई तरह के कृषि अवशिष्टों या माध्यमों में उगाया जा सकता है. मुख्य रूप ऑयस्टर मशरूम धान के पुआल और गेहूं के भूसा पर उगाया जाता है. भूसा को पानी में 125 मीली लीटर फ़ार्मेलिन और 7.5 ग्राम बावस्टिन मिलाकर घोल बनाते हैं. उसके बाद 10 किलो भूसे को अच्छी तरह से घोल में 14-16 घण्टे के लिये डूबा देते हैं.

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बर्तन के मुंह को पॉलीथीन से ढक देते हैं. अब इस गीले भूसे या पुआल से घोल निथार देते हैं, और उसे पक्के ढालू फर्श पर बिछा देते हैं, ताकि घोल अच्छे से निथर जाए. ध्यान रहे कि भूसा इतना सूखा होना चाहिए कि हाथ से दबाने पर पानी न निकले. इस गीले भूसे का वजन सूखे भूसे की तुलना में तीन फीसदी ज्यादा होना चाहिए.

मशरूम उगाने की ये है तकनीक

ऑयस्टर मशरूम उत्पादन के लिए गेहूं का भूसा या पैरा कुट्टी का चयन कर उसमें मशरूम बीज यानी स्पॉन मिलाते हैं. इसके बाद स्पान मिले भुसे को थैलियों में 8 इंच बाई 12 इंच के प्लास्टिक बैग में भरते हैं. और ऊपर से मुंह बंद कर देते हैं. मध्यम आकार की थैलियों में इस बात का ध्यान रखें कि थैली का एक चौथाई भाग खाली रहे. थैलियों में चारों तरफ सलाई से छेद कर दें ताकि थैले के अंदर हवा प्रवेश कर सके.

मशरूम की खेती में पैसा डबल

मशरूम लगाने के बाद पहली उपज लगभग 22-25 दिन में प्राप्त होती है. दूसरी और तीसरी उपज क्रमश: 5 से 7 दिन के अंतराल से प्राप्त होती रहती है. इस तरह एक फसल में 45-50 दिन का समय लगता है. ऐसी 4-5 फसलें जुलाई से मार्च महीने के बीच तक ली जा सकती हैं.10 किलो भूसा या चारा से 20 थैलियां बनती है, जिनमें 100 से 150 रुपये प्रति किलो वाला 1 किलो स्पॉन लगता है. जबकि 20 थैलियों से 2-3 महीने के अंदर लगभग 100 किलो गीले मशरूम का उत्पादन होता है, जो 400 से लेकर 500 रुपये प्रति किलो तक बिक जाती है. इसका मतलब है सिर्फ 20 थैलियों की उपज से ही 40 हज़ार का मशरूम निकल जाता है. यानी लागत मामूली और कमाई लाखों में.

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