बदलते मौसम में गेहूं की फसल पर रोगों का खतरा, जानें बचाव के बेहद आसान उपाय

बदलते मौसम में गेहूं की फसल पर रोगों का खतरा, जानें बचाव के बेहद आसान उपाय

बदलते मौसम के साथ गेहूं की फसल पर रोगों का खतरा बढ़ जाता है. तापमान में उतार-चढ़ाव और जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे पीला रतुआ, लूज स्मट, पर्ण झुलसा और उकठा रोग. इन रोगों का प्रभाव फसल की वृद्धि और पैदावार पर गंभीर असर डालता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो सकता है.

केंद्र सरकार ने 2024-25 के लिए गेहूं उत्पादन का टारगेट 115 मिलियन टन रखा है. केंद्र सरकार ने 2024-25 के लिए गेहूं उत्पादन का टारगेट 115 मिलियन टन रखा है.
जेपी स‍िंह
  • Noida,
  • Jan 10, 2025,
  • Updated Jan 10, 2025, 5:39 PM IST

गेहूं की फसल देश की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है और इस फसल को होने वाले रोगों और कीटों के प्रकोप से न केवल किसानों की मेहनत पर पानी फिर सकता है, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है. इस कारण, बदलते मौसम में किसानों को अपनी फसल की सही देखभाल करना बेहद जरूरा है. मौसम में बदलाव तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं की फसल में कीट और रोगों का खतरा बढ़ जाता है. खासकर जब फसल बढ़वार और दूध भरने के चरण में होती है.अगर समय रहते इन रोगों की पहचान और उपचार न किया जाए, तो ये फसल को काफी  नुकसान पहुंचा सकते हैं. 

गेहूं की फसल में पीला रतुआ, पर्ण झुलसा और लूज स्मट जैसे खतरनाक रोगों से बचाव के उपाय अपनाना बेहद जरूरी हैं. अगर इन रोगों के लक्षण की पहचान समय पर कर ली जाए, जिसे देखकर उचित उपचार किए जाएं, तो गेहूं की फसल को स्वस्थ रखा जा सकता है. गेहूं की फसल में कई प्रकार के रोग जैसे पर्ण झुलसा, लूज स्मट, उकठा रोग और गेरुआ रोग लग सकते हैं, जो फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. नतीजतन पैदावार में गंभीर कमी आ जाती है. 

गेहू के लिए घातक है पीला रतुआ रोग 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं की फसल में सबसे आम और हानिकारक रोगों में से एक है पीला रतुआ. यह रोग मुख्य रूप से तापमान बढ़ने के साथ सक्रिय होता है और पत्तियों पर पीले रंग की धारियां बना देता है. जैसे ही यह रोग पत्तियों पर दिखाई देता है, तो किसानों को इसका ध्यान रखना चाहिए. इस रोग के कारण गेहूं की बालियां ठीक से विकसित नहीं हो पाती हैं और फसल की उपज में कमी आ जाती है. पीला रतुआ पक्सीनिया स्ट्राइपफारमिस नामक कवक के कारण फैलता है और यह उत्तरी हिमालय की पहाड़ियों से देश के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में फैलता है.

पीला रतुआ रोग से बचाव के उपाय

इस रोग से बचाव के लिए सबसे पहला और अहम कदम है रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना जो इस रोग के प्रति अधिक सक्षम हों. इसके अलावा,फफूंदनाशक जैसे मैंकोजेब 75 डब्ल्यू.पी. का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी का छिड़काव भी इस रोग को प्रभावी रूप से नियंत्रित करने में सहायक होता है. साथ ही, यूरिया और जिंक सल्फेट का 3 फीसदी और 0.5 फीसदी के अनुपात में छिड़काव करने से रोग लगने की संभावना कम होती है.

लूज स्मट रोग से रहे सावधान

लूज स्मट गेहूं की फसल का एक और घातक रोग है, जो गेहूं की बालियों को प्रभावित करता है. इस रोग में बालियों में काले रंग का पाउडर दिखाई देता है और गेहूं के दाने काले हो जाते हैं. यह एक बीजजनित रोग है, जिसका मुख्य कारण अस्टीलैगो सेजेटम नामक कवक है. यह रोग बाली आने के बाद दिखाई देता है और संक्रमित बीज हवा द्वारा फैल सकते हैं, जिससे स्वस्थ पौधे भी प्रभावित हो सकते हैं.

लूज स्मट से कैसे बचाएं फसल

बीज उपचार से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है. बीजों को कासुगामायसिन या कार्बेण्डाजिम जैसे फफूंदनाशकों से उपचारित करें.कॉपर्स ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यू.पी.या मैंकोजेब 63% का उपयोग करें.
जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस का 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें.

गेहूं का पत्ती झुलसा रोग  

पर्ण झुलसा रोग के शुरुआती लक्षण भूरे रंग के नाव के आकार के छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं. ये धब्बे धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं और पत्तियों के पूरे भाग को झुलसा देते हैं, जिससे ऊतक मर जाते हैं और हरा रंग नष्ट हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण बुरी तरह प्रभावित होता है और प्रभावित पौधों के बीजों में अंकुरण क्षमता भी कम हो जाती है.

रोकथाम के उपाय

गेहूं के झुलसा रोग से बचाव के लिए थायोफेनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी. का 300 ग्राम प्रति एकड़ या कार्बेण्डाजिम 12% का 300 ग्राम प्रति एकड़ दर से छिड़काव करें. यामैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी. का 300 ग्राम प्रति एकड़ या हेक्साकोनाजोल 5% एस.सी. का 400 मि.ली. प्रति एकड़ छिड़काव भी प्रभावी रहता है. अगर जैविक उपचार करना है तो ट्राइकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम प्रति एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. इन उपायों को अपनाकर किसान अपने गेहूं की फसल को इन खतरनाक रोगों से बचा सकते हैं और बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.

 

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