बिहार का दरभंगा जिला देश में मखाना के उत्पादन के लिए जाना जाता है, लेकिन अब उत्तर प्रदेश का देवरिया जिला भी इसमें शुमार होगा क्योंकि अब यहां पर भी इसकी खेती की शुरुआत की गई है. शुक्रवार को गड़ेर स्थित एक किसान के आधे एकड़ तालाब में स्वर्ण वैदेही प्रजाति के मखाना पौधों की रोपाई की गई. इस अवसर पर जिलाधिकारी के साथ-साथ मखाना खेती विशेषज्ञ और मत्स्य विभाग के अधिकारी मौजूद रहे. दरअसल मखाना कि खेती में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एक ही तालाब में मखाना के साथ-साथ देसी मांगुर प्रजाति की मछली का भी पालन किया जा सकता है क्योंकि मखाना के पत्ते बड़े आकार के होते है और मांगुर को ज्यादा CO2 की जरूरत नही पड़ती है, इसलिए मखाना उगाने के साथ-साथ देसी मांगुर मछली का पालन कर किसान ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.
वहीं मखाना रोपाई के अवसर पर डीएम ने बताया कि जब वे देवरिया जनपद में स्थानांतरित होकर आए, तो उन्होंने यहां की भौगोलिक स्थिति के बारे में जाना तो पता चला कि इस जनपद में 30 हज़ार हेक्टेयर भूमि लो लैंड और जलमग्न है. इन क्षेत्रों के लिए मखाना की खेती वरदान साबित होगी. यहां की जलवायु में मिथिला जैसी मखाना उत्पादन करने का सामर्थ्य है. इसी को देखते हुए गड़ेर के मछली पालक संकर्षण शाही के आधे एकड़ तालाब में दरभंगा रिसर्च इंस्टीट्यूट से स्वर्ण वैदेही प्रजाति जिसे काला हीरा नाम से जाना जाता है रोपाई की गई.
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डीएम अखण्ड प्रताप सिंह द्वारा गड़ेर इलाके के दर्जनों किसानों को बुलाकर उनके सामने मखाना की रोपाई कराई और खूद भी रोपाई कर यह संदेश देने की कोशिश की ज्यादा से ज्यादा किसान मखाना की खेती करके मुनाफा कमा सकता है. गड़ेर गांव में किसानों की गोष्ठी कर मखाना खेती करने के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई. किसानों को बताया गया कि किसान जलमग्न भूमि पर जहां एक वर्ष में एक ही खेती करते है. वह मखाना की रोपाई कर एक साल में दो खेती कर सकते हैं.
डीएम ने बताया कि जनपद में और इस तरह की जलमग्न भूमि को चिन्हित कर रहे है, जहां मखाना की खेती कराई जा सके.
मखाना खेती के विशेषज्ञ डॉक्टर डीएन पांडेय ने बताया कि बीते नवंबर में तरकुलवा विकास खण्ड के हरैया में प्रगतिशील मछली पालक गंगा शरण श्रीवास्तव के मछली पालन केंद्र पर मखाना की नर्सरी स्थापित की गई थी. नर्सरी में पौध तैयार होने के बाद आज उसकी रोपाई की गई.
उन्होंने बताया कि मखाना के दो पौधों के बीच की दूरी दो मीटर होनी चाहिए क्योंकि इसके पत्ते के आकार लगभग एक मीटर होता है. वहीं मई महीने के अंत तक इसमें फूल आ जाएंगे और सितंबर तक इसमें फसल तैयार हो जाएगी. उन्होंने बताया कि मखाना के साथ ही इसमें मछली पालन भी किया जा सकता है. इसमें मांगुर प्रजाति की मछली पालन किया जा सकता है जिसकी बाजार में काफी मांग है.