जीरा ऐसी मसाला फसल है जिसकी मांग हमेशा बनी रहती है. औषधि से लेकर मसाला तक में इसका खूब इस्तेमाल होता है. यूं कहें कि खाने का स्वाद इसके बिना अधूरा सा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह स्वाद और भी बढ़ सकता है अगर किसान जीरे की जैविक खेती करें. बस किसान को पता होना चाहिए कि इसकी जैविक खेती कब और कैसे करनी है. तो आइए हम आपको बताते हैं कि खाने में स्वाद बढ़ाने के साथ कमाई भी बढ़ाने के लिए किसान जीरा की जैविक खेती कैसे कर सकते हैं.
खेती कब करनी है, उससे पहले यह जान लेना चाहिए कि जीरा की जैविक खेती कैसे करनी है. इसमें सबसे जरूरी है जीरे का बीजोपचार. इसके लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलो और एजेटोबैक्टर और पीएसबी 600 ग्राम प्रति हेक्टेयर काम में लेना चाहिए. ट्राइकोडर्मा विरिडी 2.5 किलो को 100 किलो गोबर की खाद के साथ प्रति हेक्टेयर खेत में उपचारित करें. तुंबा की खल 1.5 टन और 3 टन गोबर की खाद और 3 टन सरसों की कंपोस्ट के साथ 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर मिट्टी में देना चाहिए.
जब बीजोपचार हो जाए तो बीज लगाने की तैयारी कर लेनी चाहिए. एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 12 से 15 किलो बीज पर्याप्त होता है. बुवाई से पहले 7.5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 घुलनशील चूर्ण से प्रति किलो बीज को उपचारित करें. जीरे की बुवाई मध्य नवंबर के आसपास कर देनी चाहिए क्योंकि इसमें जितनी देर होगी, जीरे की उपज उतनी ही कम रह सकती है. इससे किसान की कमाई घटने की आशंका रहेगी. इसलिए अच्छी उपज और कमाई के लिए जरूरी है कि किसान मध्य नवंबर (15 नवंबर) तक जीरे की बुवाई जरूर कर दें.
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जीरे की बुवाई आमतौर पर छिटकवां विधि से की जाती है. तैयार खेत में पहले क्यारियां बनाते हैं. उनमें बीजों को एक साथ छिटक कर क्यारियों में लोहे की दंताली इस प्रकार फिरा देनी चाहिए कि बीज के ऊपर मिट्टी की एक हल्की से परत चढ़ जाए. ध्यान रखें कि बीज जमीन से अधिक गहरा नही जाए. निराई-गुड़ाई और अन्य शस्य क्रियाओं की सुविधा की दृष्टि से छिटकवां विधि की अपेक्षा कतारों से बुवाई करना अधिक उपयुक्त पाया गया है.
कतारों में बुवाई के लिए क्यारियों में 30 सेमी की दूरी पर लोहे या लकड़ी के हुक से लाइनें बना देते हैं. बीजों को इन्हीं लाइनों में डालकर दंताली चला दी जाती है. बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज मिट्टी से एकसाथ ढक जाए और मिट्टी की परत एक सेमी से ज्यादा मोटी न हो. इस तरह बुवाई के ठीक बाद एक हल्की सिंचाई देनी चाहिए. सिंचाई के समय ध्यान रहे कि पानी का बहाव तेज न हो अन्यथा तेज बहाव से बीच अस्त-व्यस्त हो जाएंगे.
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अगर दूसरी सिंचाई के बाद अंकुरण पूरा नहीं हुआ हो या जमीन पर पपड़ी जम गई हो तो एक हल्की सिंचाई करना लाभदायक रहेगा. इसके बाद भूमि की बनावट और मौसम के अनुसार 15 से 25 दिन के अंतर से 5 सिंचाइयां पर्याप्त होगी. पकती हुई फसल में सिंचाई नहीं करनी चाहिए और दाने बनते समय अंतिम सिंचाई गहरी करनी चाहिए. ये रहा जीरे की खेती का तरीका जिससे आप अधिक उपज और अधिक कमाई पा सकते हैं.