भारत में कटहल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. खपत को ध्यान में रखते हुए यहां के किसान इसकी खेती करते रहे हैं. शादियों से लेकर हर छोटे-बड़े त्योहारों में कटहल एक खास व्यंजन के तौर पर शामिल किया जाता है. इसका स्वाद बहुत ही अलग होता है जिसके कारण लोग इसे खाना पसंद करते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि खाने में इसका स्वाद मांस जैसा होता है. ऐसे में अप्रैल के महीने में कटहल में फंगस जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है. जिससे किसानों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि किसान कैसे कटहल में फंगस को नियंत्रित कर सकते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक कटहल की खेती कर रहे किसानों को अप्रैल के महीने मं खास सावधानी बरतने की जरूरत है. इस समय मौसम में बदलाव से बागों में फंगस पनपने का खतरा रहता है. ऐसे में कटहल के पौधों को भारी नुकसान हो सकता है. वर्तमान में राइजोपस स्टोलोनिफर नामक फंगस कटहल के फल को अधिक नुकसान पहुंचा रहा है. इस फंगस के प्रकोप से कटहल के पेड़ों में लगे छोटे-छोटे फल सड़ने लगते हैं और उपज प्रभावित होती है. राइजोपस स्टोलोनिफर नामक फंगस का प्रकोप भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में है. कटहल के अलावा इस प्रकार की फफूंद अन्य सब्जियों में भी पाई जाती है. यह रोग आलू, स्ट्रॉबेरी और अन्य सब्जियों में भी फैलता है.
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राइजोपस स्टोलोनिफर नामक फंगस सबसे पहले कटहल के फूलों को प्रभावित करता है, जिससे वे सड़ने लगते हैं. फंगस फलों पर एक भूरे रंग का धब्बा बनाता है, जो बाद में एक काली फफूंदी में बदल जाता है और धीरे-धीरे कटहल को सड़ा देता है.
इस फंगस से कटहल के पेड़ों को बचाने के लिए समय-समय पर पेड़ों की छंटाई करनी चाहिए। इसके साथ ही पेड़ों पर लगे और जमीन पर गिरे सभी संक्रमित फलों को हटा देना चाहिए। कटहल की अच्छी तरह से कटाई करें और फलों को सुरक्षित जगहों पर रख देना चाहिए. फलों को गर्म और कम हवादार कमरे में रखना चाहिए. इसके लिए सही तापमान 10°C से कम माना जाता है. कटहल में होने वाले इस रोग की रोकथाम के लिए फफूंदनाशक का छिड़काव भी किया जा सकता है.