कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए अब अलग-अलग तकनीकों का प्रयोग शुरु हो चुका है. लगातार जल दोहन के चलते भूजल का स्तर तेजी से कम हो रहा है. इसलिए अब सिंचाई के नई तकनीक को खोजा जा रहा है जिससे कि किसानों का पानी और पैसा दोनों बच सके. खेतों के लिए ही नहीं बल्कि बागवानी के लिए भी सिंचाई की आवश्यकता होती है. लखनऊ के केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ कंचन श्रीवास्तव ने एक ऐसी तकनीक को विकसित किया है जिसके जरिए सिंचाई करने पर किसानों का पानी और उनका पैसा भी बचेगा. इस तकनीक के माध्यम से किसानों की आय में भी इजाफा होगा. वही उनका समय भी बचेगा. बागवानी करने वाले किसानों के लिए यह तकनीक काफी ज्यादा कारगर है.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ कंचन श्रीवास्तव ने अमरूद की बागवानी के लिए सिंचाई की एक नई तकनीक को विकसित किया है. अब तक किसानों के द्वारा परंपरागत तरीके से पौधों की सिंचाई की जाती थी जिसमें काफी ज्यादा पानी भी बर्बाद होता था. इसके साथ-साथ पौधों को महीने में तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता होती थी. इस तरीके से किसानों का पैसा और पानी दोनों ही बर्बाद होता था जिसे बचाने के लिए कृषि वैज्ञानिक ने एक नई तकनीक को विकसित किया है. इस नई तकनीक को डॉ कंचन श्रीवास्तव ने मल्चिंग सिंचाई तकनीक कहां है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक में सबसे पहले मिट्टी का एक बेड तैयार किया जाता है जिसके ऊपर से काली पन्नी से ढक दिया जाता है. इसके अंदर पाइप लाइन बिछाकर बूंद- बूंद तरीके से सिंचाई की जाती है. इस विधि से सिंचाई करने पर 50 से 60 फ़ीसदी पानी की बचत होती है. वहीं इस विधि से सिंचाई करने पर बागवानी करने वाले किसानों का फायदा होगा .
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मल्चिंग विधि से सिचाई की तकनीक का इस्तेमाल सब्जियों को उगाने में भी किया जाने लगा है. इसके लिए खेतों में बेड बनाकर ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन को बिछा दिया जाता है और फिर 25 से 30 माइक्रोन प्लास्टिक को मल्च विधि से ऊपर बिछा दिया जाता है. इस विधि से सिंचाई करने पर घास और खरपतवार से बचाव होता है. वही पौधों को नमी बराबर मिलती रहती है. इससे जड़ को उपयुक्त तापमान भी मिलता है जिससे उत्पादन अच्छा होता है.