कहते हैं ना कि कुछ नया वही करता है जिसमें कुछ करने का जुनून और जज्बा हो और कुछ अलग करने की चाहत हो, फिर उसे कोई नहीं रोक सकता है. ऐसे ही तमिलनाडु के इरोड जिले के एक किसान हैं पी रामाराजू जिन्होंने हल्दी की खेती में आने वाली किसानों को परेशानी को देखकर उनके लिए एक मशीन बनाई है. इस मशीन से हल्दी की खुदाई की जाती है. उन्होंने ये देसी जुगाड़ वाली मशीन एक साल की मशक्कत के बाद बनाई है.
दरअसल धान के जैसे ही हल्दी के खेती में भी काफी मेहनत और लागत की जरूरत होती है क्योंकि हल्दी की खेती में उसकी निराई-गुड़ाई, उर्वरक के छिड़काव, हल्दी के गाठों की खुदाई और फिर उसकी सफाई में अधिक मजदूरों की जरूरत होती है. ऐसी ही परेशानियों को देखकर रामाराजू ने देसी मशीन बनाई है.
अपनी मशीन और उसकी जरूरतों के बारे में बताते हुए किसान रामाराजू ने कहा कि हल्दी की खेती में मजदूर नहीं मिलने से उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा था. इस नुकसान के बाद ही उन्होंने सोचा कि एक ऐसी मशीन बनाई जाए जो हल्दी के गाठों को जमीन से खोदकर बाहर निकाले ताकि बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत ना पड़े. अपनी इसी सोच को अमली जामा पहनाने के लिए उन्होंने बिजली से चलने वाला पतवार यानी पावर टिलर बनाया है.
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किसान पी रामाराजू ने बताया कि इस मशीन से हल्दी की खुदाई करने पर साबुत हल्दी निकलती है. वहीं हल्दी से अधिक मात्रा में मिट्टी भी निकल जाती है. इस मशीन से खुदाई करने पर किसान सात घंटे में एक एकड़ की खुदाई कर सकते हैं. ये मशीन ड्रीप सिंचाई प्रणाली वाले खेतों से हल्दी की खुदाई करने के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती है.
रामाराजू ने बताया कि ये मजदूरों से मुक्ति दिलाने का यंत्र है. इस मशीन से जहां एक एकड़ हल्दी निकालने में एक पुरुष और 15 से 20 महिलाओं की जरूरत होती है, जबकि बगैर मशीन के हल्दी निकालने में कम से कम 80 लोगों की जरूरत होती है. आपको ये भी बता दें कि इस मशीन से एक एकड़ हल्दी निकालने में सात से नौ हजार रुपये का खर्च आता है. वहीं इस मशीन को एक घंटे चलाने में एक लीटर डीजल की खपत होती है जिसका खर्च एक साधारण किसान भी आसानी से उठा सकता है.
देसी मशीन बनाने वाले राजू ने इसे दक्षिण भारत के अलग-अलग राज्यों में प्रदर्शित भी किया है. राजू के बनाए गए इस मशीन की कीमत 30 हजार रुपये है. वहीं किसान राजू ने अब तक 172 मशीनें बेच दी हैं. राजू इस मशीन को चलाने के लिए किसानों को सुझाव भी देते हैं और जरूरत पड़ने पर किसानों के पास जाकर मशीनों की सर्विसिंग भी करते हैं.