आज जब बाजार में प्याज का दाम 80 रुपये किलो तक पहुंच गया है और किसानों को दो पैसे मिल रहे हैं तो नेफेड (NAFED) नाम की सहकारी एजेंसी सिर्फ 25 रुपये किलो पर प्याज बेच रही है, ताकि इसका दाम जल्दी से जल्दी गिर जाए और कंज्यूमर को राहत मिले. नफेड की इस नीति से कंज्यूमर को तो फायदा मिल जाएगा लेकिन यह फायदा किसान की जेब काटकर दिया जाएगा. जबकि नफेड किसानों के फायदे के लिए बनाया गया था. लेकिन अब इसे किसान अपना दुश्मन समझने लगे हैं. नेफेड की नीतियों से किसानों का नुकसान हो रहा है. अगर महाराष्ट्र के किसान इस पर ऐसे आरोप लगा रहे हैं तो उसका आधार क्या है? इस वीडियो में इसे समझते हैं.
गांधी जयंती के दिन 2 अक्टूबर, 1958 को कृषि उत्पादों की सहकारी मार्केटिंग बढ़ाने के लिए नेफेड की स्थापना की गई थी. ताकि किसानों को लाभ मिल सके. लेकिन जब बाजार में प्याज 80 रुपये किलो है तब सिर्फ 25 रुपये किलो बेचकर नेफेड किसान या कंज्यूमर किसका भला कर रहा है इसे आप आसानी से समझ सकते हैं. नेफेड का इसका पूरा नाम नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया है. इसमें कंज्यूमर कहीं नहीं है.
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नेफेड के डायरेक्टर अशोक ठाकुर का मासूम जवाब है कि हमें तो सरकार जो कहती है वही करते हैं. वही सरकार जो किसानों की इनकम डबल करने की बात करती है. दरअसल केंद्र सरकार ने प्याज बाजार की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए नाफेड को दोधारी तलवार के रूप में इस्तेमाल किया है. जिसमें नेफेड से किसानों को फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ है. यूं ही नहीं आज महाराष्ट्र के अनगिनत किसान नेफेड पर उनका नुकसान करने का आरोप लगा रहे हैं.
यहां यह भी सवाल है कि जब प्याज का दाम सिर्फ 1 या 2 रुपये किलो रह जाता है तब नेफेड नाम की चिड़िया कहां गायब हो जाता है? दरअसल, तब यह एजेंसी या तो गायब हो जाती है या फिर वह उसी रेट पर किसानों से प्याज खरीदती है जो उन दिनों बाजार का औसत भाव होता है. यह खरीद किससे और कहां करती है यह भी किसी रहस्य से कम नहीं है.
मसलन अगर किसी साल इसने 20 रुपये किलो प्याज खरीदा तो जरूरी नहीं कि वो अगले साल 20 या 22 रुपये किलो पर ही प्याज खरीदेगा. बल्कि अगले साल वो 10-12 रुपये के भाव पर भी खरीदी कर सकता है. किसानों की इनपुट कॉस्ट भले ही बढ़ जाएगी लेकिन यह सहकारी एजेंसी लागत के आधार पर दाम नहीं तय करेगी बल्कि ओपन मार्केट के औसत दाम के आधार पर अपना रेट तय करेगी. सवाल यह है कि क्या सहकारी एजेंसी भी किसानों के साथ व्यापारियों की तरह व्यवहार करेगी. बहरहाल, अब 25 रुपये किलो प्याज बेचकर नेफेड दिन दहाड़े किसानों को चूना लगा रहा है.
क्या नेफेड को उस किसान का दर्द याद है जिसे 512 किलो प्याज बेचने के बाद सिर्फ 2 रुपये का चेक मिला था. प्याज का दाम बढ़ते ही हायतौबा मचाने वाले उपभोक्ताओं को भी इस किसान का दर्द जानना चाहिए. दरअसल, सोलापुर जिले के बरशी तालुका के बोरगांव के रहने वाले किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण इसी 17 फरवरी को अपने गांव से 70 किलोमीटर दूर सोलापुर की मंडी में प्याज बेचने पहुंचे थे. वहां सूर्या ट्रेडर्स के यहां प्याज के 10 बोरे दिए जिसका वजन 512 किलो था.
जहां पर उन्हें 1 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्याज बेचने पर मजबूर होना पड़ा. सिस्टम ने उन्हें यहीं नहीं छोड़ा. व्यापारी ने 512 रुपये की कुल राशि से 509.50 रुपये परिवहन शुल्क, हेड-लोडिंग और वजन शुल्क आदि में तौर पर काट लिया. इसके बाद चव्हाण का शुद्ध लाभ 2.49 रुपये बचा. फिर व्यापारी इतनी बड़ी रकम में भला 49 पैसे की क्या परवाह करता तो उसने राउंड फिगर में 2 रुपये का चेक बनवा दिया.
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यह सिर्फ चव्हाण की कहानी नहीं थी. प्याज की खेती की इस दुर्दशा को महाराष्ट्र के अनगिनत किसानों ने झेला है. तब उनके साथ न तो सरकार खड़ी हुई न 70 रुपये प्याज होने पर महंगाई की हाय-हाय करने वाला समाज. चार दिन से दाम क्या बढ़ा है उपभोक्ता हितों के नाम पर सरकार ने भी आसमान छत पर उठा लिया है और लोग भी छाती पीट रहे हैं. हम इस बात का समर्थन किसी भी सूरत में नहीं कर रहे हैं कि प्याज का दाम 100 रुपये किलो होना चाहिए. लेकिन इस इस बात के भी सख्त खिलाफ हैं कि किसानों को एक रुपये किलो प्याज बेचनी पड़े.