ग्रीष्मकालीन मूंग में कब और कितनी दें सिंचाई? अच्छे बढ़वार के लिए खाद की मात्रा भी जान लें

ग्रीष्मकालीन मूंग में कब और कितनी दें सिंचाई? अच्छे बढ़वार के लिए खाद की मात्रा भी जान लें

मूंग की खेती के लिए दुमट मृदा सबसे अधिक उपयुक्त होती है. इसकी खेती मटियार और बलुई दुमट मृदा में भी की जा सकती है लेकिन उसमें उत्तम जल-निकास का होना आवश्यक है. ग्रीष्म व बसंत कालीन मूंग की फसल को 4 से 5 सिंचाइयां देना आवश्यक होता है. पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद व अन्य सिंचाई 12 से 15 दिन के अंतर पर करें. वर्षा ऋतु की फसल की आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें. 

मूंग की खेतीमूंग की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Apr 23, 2024,
  • Updated Apr 23, 2024, 4:00 PM IST

मूंग एक प्रमुख दलहन फसल है. इसकी  फसल हर प्रकार के मौसम में उगाई जा सकती है. ऐसे क्षेत्र जहां 60 से 75 सेमी वर्षा होती है, मूंग के लिए उपयुक्त होते हैं.फली बनते तथा पकते समय वर्षा होने से दाने सड़ जाते हैं और काफी हानि होती है.उत्तरी भारत में मूंग को वसंत ऋतु (जायद) में भी उगाते हैं. अच्छे अंकुरण एवं समुचित बढ़वार के लिए 20 से 40 डिग्री से. तापमान उपयुक्त होता है. किसान इस समय गर्मी में भी मूंग की बुवाई कर सकते हैं. मूंग जैसी दलहनी फसलों की बुवाई से यह फायदा होता है कि यह खेत में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती हैं, जिससे दूसरी फसलों से भी बढ़िया उत्पादन मिलता है. 

मूंग की खेती के लिए दुमट मृदा सबसे अधिक उपयुक्त होती है. इसकी खेती मटियार और बलुई दुमट मृदा में भी की जा सकती है लेकिन उसमें उत्तम जल-निकास का होना आवश्यक है. ग्रीष्म व बसंत कालीन मूंग की फसल को 4 से 5 सिंचाइयां देना आवश्यक होता है. पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद व अन्य सिंचाई 12 से 15 दिन के अंतर पर करें. वर्षा ऋतु की फसल की आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें. वर्षा ऋतु की मूंग में उचित जल-निकास की व्यवस्था आवश्यक है. फूल आने से पहले तथा दाना पड़ते समय सिंचाई आवश्यक है. सिंचाई क्यारी बनाकर करना चाहिए.

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खेत की तैयारी

ग्रीष्मकालीन फसल को बोने के लिए गेहूं को खेत से काट लेने के बाद केवल सिंचाई करके (बिना किसी प्रकार की खेत की तैयारी करके) मूंग बोयी जाती है.परन्तु अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए एक बार हैरो चलाकर जुताई करके पाटा फेर कर खेत तैयार करना ठीक रहता है.

बीज दर

1. खरीफ- किस्म के अनुसार 12 से 15 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर.

2. बसंत तथा ग्रीष्मकालीन ऋतु- 20 से 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर.

उर्वरक प्रबंधन

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए.10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर कम्पोस्ट की खाद डालना भी आवश्यक है. मूंग की फसल के लिए 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश एवं 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की जरुरत होती है. जिसके लिए 190 किग्रा. एन.पी. के. (12:32:16) के साथ 23 किग्रा. सल्फर बेंटोनाइट प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करें. 

जिंक की कमी हो तो क्या करें

कुछ क्षेत्रों में जिंक की कमी की अवस्था में 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए. फसल के अच्छे प्रारंभिक बढ़वार और जड़ों के विकास के लिए समुंदरी शैवाल से बने पौध विकास प्रोत्साहक सागरिका Z++ @ 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई के समय जरूर डालें. इसके साथ सागरिका तरल का 250 मिली प्रति एकड़ की दर से 100 लीटर में घोल बनाकर फूल आने से पहले, फूल आने के बाद और दाने बनते समय 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

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