गेहूं के भाव का रुख इस बार भी पिछले साल जैसा ही दिखाई दे रहा है. कई शहरों में दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से ऊपर चल रहा है. ऐसे में किसान सरकार को गेहूं बेचेंगे या फिर निजी क्षेत्र को, यह बड़ा सवाल है. सरकार को गेहूं बेचने के लिए कई तरह की कागजी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं जबकि व्यापारी किसानों के घर से गेहूं खरीद लेते हैं. अगर निजी क्षेत्र को किसान गेहूं बेचेंगे तो फिर सरकार कैसे अपना लक्ष्य पूरा कर पाएगी. पिछले दो सीजन से गेहूं खरीद का टारगेट पूरा नहीं हो रहा है. एक अप्रैल से अधिकांश राज्यों में गेहूं की खरीद शुरू हो जाएगी. रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए सरकार ने 320 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है. ओपन मार्केट में इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2275 रुपये प्रति क्विंटल से इसका दाम ज्यादा चल रहा है. इस बीच सवाल यह भी है कि क्या कभी गेहूं खरीद का 2021-22 वाला रिकॉर्ड टूट पाएगा.
साल 2021-22 में रिकॉर्ड 433.44 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी. जिसके बदले 49,19,891 किसानों को 85,604.40 करोड़ रुपये एमएसपी के तौर पर मिले थे. बाजार के जानकारों का कहना है कि गेहूं की इतनी सरकारी खरीद न पहले कभी हुई थी और न उसके बाद अब तक हो पाई है. यही नहीं गेहूं की एमएसपी से लाभान्वित किसानों की संख्या भी उतनी नहीं हुई. इस साल तो सरकार ने उतना टारगेट ही नहीं रखा है, ऐसे में 2021-22 वाला रिकॉर्ड टूटने की कोई संभावना ही नहीं बची है.
इसे भी पढ़ें: पंजाब-हरियाणा के किसानों को मिली ‘एमएसपी’ की मलाई, बाकी के साथ कब खत्म होगा भेदभाव?
(Source: e-Nam)
एमएसपी पर गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या 2021-22 में सबसे ज्यादा थी. तब बफर स्टॉक यानी सेंट्रल पूल के लिए सबसे ज्यादा 433.44 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी. गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या का भी रिकॉर्ड टूट गया था और यह 49,19,891 तक पहुंच गई थी. ऐसा इसलिए था क्योंकि तब खुले बाजार में गेहूं का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम था. लेकिन उसके बाद खुले बाजार में गेहूं का दाम इतना बढ़ गया कि सरकार अपना खरीद लक्ष्य ही पूरा नहीं कर पाई. जहां तक पिछले साल यानी 2023-24 की बात है तो एक भी सूबे ने अपना खरीद टारगेट पूरा नहीं किया था.
इसे भी पढ़ें: बासमती चावल के एक्सपोर्ट का एक और रिकॉर्ड, इन दस देशों में नई ऊंचाई पर पहुंचा दाम