प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 108वां एपिसोड पर रविवार को देश को संबोधित किया है. अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने मोटे अनाज का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि भारत के प्रयास से 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाया गया. इससे इस क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप को बहुत सारे अवसर मिले हैं. वहीं, किसान भी धीरे- धीरे मोटे अनाज की तरफ रूख कर रहे हैं. वे फिर से बाजरा और मक्का जैसी फसलों की खेती करने लगे हैं. इससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा है.
केंद्र सरकार का मानना है कि मोटे अनाज में काफी सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसका सेवन करने से लोग स्वस्थ्य और तंदरुस्त रहते हैं. ऐसे भी हमारे पूर्वज पहले मोटा अनाज ही खाते थे. लेकिन हरित क्रांति आने के बाद थाली से मोटे अनाज के व्यंजन गायब होते चले गए और उसकी जगह गेहूं ने ले ली. हालांकि, सरकार द्वारा जागरूकता फैलाने के बाद देश के किसान फिर से मोटे अनाज की तरफ रूख कर रहे हैं. किसान अब पहले के मुकाबले अधिक रकबे में मक्का, बाजरा और अन्य दूसरे मोटे अनाजों की खेती कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स या मोटा अनाज वर्ष घोषित किया. इस साल केंद्र सरकार ने मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए. कई राज्यों में मोटे अनाज की खेती करने पर किसानों को बंपर सब्सिडी भी दी जा रही है. यहां तक कि पिछले साल 20 दिसंबर को कृषि मंत्रालय की तरफ से संसद भवन में मोटे अनाज का भोज आयोजित किया गया था. इंटरनेशन ईयर ऑफ मिलेट्स के अवसर पर आयोजित इस भोज को विशेष बनाने के लिए कृषि मंत्रालय की तरफ से विशेष तैयारियां की गई थीं. इस भोज में राजस्थान और कर्नाटक के विशेष सेफ (खानसामे) बुलाए गए थे. वहीं इस भोज के लिए राष्ट्रपति द्रोप्रदी मुर्मू और पीएम नरेंद्र मोदी समेत दोनों सदनों को आमंत्रित किया गया था.
दरअसल, आज से 50-60 साल पहले पूरा देश मोटा अनाज ही खाता था. लेकिन हरित क्रांति आने के बाद किसान गेहूं की खेती करने लगे. धीरे- धीरे मोटा अनाज का मार्केट सिकुड़ता गया और लोगों के किचन से ज्वार और बाजरे की रोटी गायब होती चली गई. फिर मोटे अनाज को गरीबों का भोजन कह दिया गया है. मोटे अनाज का सेवन करने वाले लोगों को पिछड़ा हुआ समझा जाने लगा. ऐसे में मार्केट सिकुड़ने और उचित किमत नहीं मिलने से किसानों ने भी मोटे अनाज की खेती छोड़ दी.
लेकिन 50 साल बाद सरकार फिर से किसानों को मोटे अनाज की खेती करने के लिए जागरूक कर रही है. क्योंकि गेहूं और धान जैसी फसल की खेती में सिंचाई के लिए पानी की बहुत जरूरत पड़ती है. इससे भूजल स्तर तेजी के साथ गिरता जा रहा है. वहीं, खाद के ऊपर भी अधिक खर्च होता है. ऐसे में सरकार ने फिर से मोटे अनाज को बढ़ावा देने का मन बना लिया. क्योंकि मोटे अनाज को बहुत ही कम सिंचाई और कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है. साथ ही इसकी खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है.
सांवा, कोदो, रागी, कुट्टु, काकुन, ज्वार, बाजरा, चीना को मोटे अनाज कहा जाता है.