भारत में पिछले कुछ समय में खेती में कई तरह के नए बदलाव आए हैं. किसान अब परंपरागत खेती के साथ-साथ अलग और मुनाफा प्रदान करने वाली फसलों की तरफ रुख करने लगे हैं. साथ ही सरकार भी अपने स्तर पर किसानों को लगातार जागरूक करने की कोशिश कर रही है. ऐसी ही एक फसल है काजू की जिसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. काजू का उपयोग मिठाई बनाने में किया जाता है. काजू का इस्तेमाल शराब बनाने के लिए भी किया जाता है. यही कारण है कि बड़े पैमाने पर काजू की खेती की जाती है और इसकी डिमांड बाज़ार में हमेशा बनी रहती है.काजू एक्सपोर्ट का एक बड़ा बिजनेस है. इसके पेड़ लगाकर किसान अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. काजू पेड़ में होता है. इसके पेड़ों की लंबाई 14 से 15 मीटर तक होती है. काजू के अलावा इसके छिलको को भी प्रयोग में लाया जाता है. इसलिए इसकी खेती फायदेमंद मानी जाती है.
काजू की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसकी सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है. इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. काजू ऐसे कई किस्में हैं, जिनसे अच्छा उत्पादन मिलता है लेकिन व्यवसाय के तोर सबसे अच्छी वैराइटी W-180 को माना जाता है.
काजू की 33 किस्मों की पहचान की गई है, जिनमें से केवल 26 किस्मों को ही बेचा जाता है. वाही W-180 किस्म को काजू के राजा के रूप में जाना जाता है.इसकी न्यूट्रीशनल वैल्यू के अनुसार, काजू में टोकोफेरॉल, फाइटोस्टेरॉल, फेनोलिक लिपिड और कई बायोएक्टिव कंपाउंड भरपूर मात्रा में होते हैं, जिनमें से सभी हमारे स्वास्थ्य को कई लाभ पहुँचाते हैं. इस किस्म से किसानों को अच्छा उत्पादन मिलता हैं.
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वैसे तो काजू की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन समुद्र तटीय प्रभाव वाली लाल एवं लेटराइट मिट्टी वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त रहते हैं.इसके साथ ही मिट्टी का पीएच स्तर 8.0 तक होना चाहिए.काजू उगाने के लिए खनिजों से समृद्ध शुद्ध रेतीली मिट्टी को भी चुना जा सकता है.
ऊष्णकटिबंधीय स्थानों पर इसकी अच्छी पैदावार होती है. जिन जगहों पर तापमान सामान्य रहता है वहां पर इसकी खेती करना अच्छा माना जाता है. इसके लिए समुद्रीय तलीय लाल और लेटराइट मिट्टी को इसकी फसल के लिए अच्छा माना जाता है. इसलिए दक्षिण भारत में बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है. इसकी खेती समुद्र तल से 750 मीटर की ऊंचाई पर करना चाहिए. अच्छी पैदावार के लिए इसे नमी और सर्दी बचाना होता है. क्योकि नमी और सर्दी की वजह से इसकी पैदावार प्रभावित होती है. अगर अच्छी तरह से देखभाल की जाए तो काजू की खेती कई तरह मिट्टियों में की जा सकती है.
एशियाई देशों में अधिकांश तटीय इलाके में काजू उत्पादन के बड़े क्षेत्र हैं.भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से केरल, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा एवं पं. बंगाल में की जाती है परंतु झारखंड राज्य के कुछ जिले जो बंगाल और उडीसा से सटे हुए हैं वहां पर भी इसकी खेती की अच्छी संभावनाएं हैं.अब तो मध्यप्रदेश में इसकी खेती होने लगी है.
डब्ल्यू-210
काजू के राजा" के ठीक पीछे W-210 है, जिसे जंबो आकार के काजू के नाम से जाना जाता है. W -210 काजू की कीमत W-180 के समान है, यानी यह अभी भी महंगे पक्ष की ओर झुकती है.
डब्ल्यू-240
W-240 एक आकर्षक ग्रेड है, जिसे मानक आकार काजू के रूप में भी जाना जाता है. W -240 काजू की कीमत कीमत और गुणवत्ता दोनों के मामले में मध्य श्रेणी में आती है.
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