भारत में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन सही किस्मों का चयन नहीं करने की वजह से किसानों को धान की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है. अधिकांश किसान धान की सामान्य किस्मों से खेती करते हैं, जिससे अच्छा उत्पादन तो मिलता है लेकिन गुणवत्ता की वजह से अधिक मूल्य नहीं मिल पाता है. ऐसे में कृषि विशेषज्ञ किसानों को धान की सुगंधित किस्मों की खेती करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि धान की सुगंधित किस्मों की गुणवत्ता बाजार के मानकों पर खरी उतरती है.
बाजार में इनकी मांग है और उपज का सही दाम भी मिल जाता है. इतना ही नहीं विदेशों में भी धान की ऐसी किस्मों की मांग हमेशा बनी रहती है. ऐसे में आइए जानते हैं धान की इन सुगंधित किस्मों के बारे में जिसकी मांग ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में है.
पूसा बासमती-6 दिल्ली, भारत में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा विकसित बासमती चावल की एक लोकप्रिय किस्म है. यह IARI द्वारा विकसित कई सफल बासमती चावल किस्मों में से एक है, जो अपनी असाधारण सुगंध, बढ़ाव और नाजुक स्वाद के लिए जानी जाती है. पूसा बासमती-6 को IARI में संकरण की प्रक्रिया के माध्यम से विकसित किया गया था. यह पूसा बासमती-1 और पूसा 1121, एक अन्य प्रसिद्ध बासमती किस्म के बीच का संकरण है. पूसा बासमती-6 के दाने लंबे, पतले और सुगंधित होते हैं. उनकी बनावट अच्छी होती है और पकाने पर वे काफी लम्बे हो जाते हैं. पका हुआ चावल अपनी विशिष्ट सुगंध, गैर-चिपचिपा प्रकृति और नाजुक स्वाद के लिए जाना जाता है. अन्य बासमती किस्मों की तुलना में इस किस्म की विकास अवधि अपेक्षाकृत कम होती है, जो इसे छोटे बढ़ते मौसम वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाती है. यह लगभग 135-140 दिनों में पक जाती है और इसकी मध्यम उपज क्षमता होती है. पूसा बासमती-6 भारतीय उपमहाद्वीप में, विशेष रूप से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है.
ये भी पढ़ें: Paddy Variety: ये है धान की उन्नत किस्में, 90 से 100 दिनों में होती है तैयार
पूसा बासमती-1 दिल्ली, भारत में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा विकसित बासमती चावल की एक और प्रसिद्ध किस्म है. यह IARI द्वारा विकसित शुरुआती बासमती किस्मों में से एक है और इसने बासमती चावल उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. पूसा बासमती-1 के दाने लंबे, पतले और सुगंधित होते हैं. उनकी बनावट अच्छी होती है और पकाने पर वे काफी लम्बे हो जाते हैं. इस किस्म में मध्यम से उच्च उपज क्षमता होती है, जो इसे किसानों के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाती है. यह लगभग 145-150 दिनों में पक जाती है, जो कि कुछ अन्य बासमती किस्मों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है. पूसा बासमती-1 की खेती मुख्य रूप से भारत में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में की जाती है.
पूसा बासमती-1121 दिल्ली, भारत में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित बासमती चावल की एक अत्यधिक लोकप्रिय और व्यापक रूप से खेती की जाने वाली किस्म है. यह अपने लंबे अनाज, असाधारण सुगंध और उत्कृष्ट खाना पकाने के गुणों के लिए जाना जाता है. पूसा बासमती-1121 को पूसा बासमती-1 और पूसा 370 किस्मों के संकरण द्वारा विकसित किया गया. इसे 2003 में व्यावसायिक खेती के लिए जारी किया गया था. पूसा बासमती-1121 के दाने अधिक लंबे, पतले और मोती जैसे सफेद रंग के होते हैं. पूसा बासमती-1121 अपनी उच्च उपज क्षमता के लिए जानी जाती है. यह लगभग 135-140 दिनों में पक जाती है, जो कि कुछ अन्य बासमती किस्मों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है. इस किस्म की खेती मुख्य रूप से भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में की जाती है, जिसमें हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं.