
मिजोरम में ‘रॉथिंग’ (Bambusa tulda) बांस के फूलों की फ्लावरिंग (mass flowering) के चलते चूहों का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है. राज्य के 11 जिलों के 170 गांवों में अब तक 5,600 से अधिक किसान परिवार प्रभावित हुए हैं.
सबसे अधिक नुकसान लुंगलेई जिले में हुआ है, जहां बीते छह हफ्तों में करीब 600 परिवारों की धान की फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गई हैं. हाल के दिनों में आठ और गांव इस चूहे के हमले की चपेट में आए हैं, जबकि प्रशासन लगातार जहर अभियान और रॉडेंटिसाइड सप्लाई में जुटा है.
सेरछिप जिले में शुक्रवार को अधिकारियों और ग्राम परिषदों ने मिलकर 13 गांवों में सामूहिक तौर पर चूहों को मारने के लिए छिड़काव (जहर) का अभियान चलाया.
धान की फसलों के अलावा मक्का, गन्ना, लोबिया, अदरक, मिर्च और खीरा जैसी फसलें भी कई इलाकों में बर्बाद हुई हैं. प्रभावित क्षेत्रों में ब्रोमेडियोलोन और जिंक फॉस्फाइड जैसे जहरों का इस्तेमाल किया जा रहा है. ग्रामीण पारंपरिक फंदों (वैथांग, मंगखावंग, थंगछेप) और गुलेल से चूहों को मारने की कोशिश कर रहे हैं.
'असम ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के अधिकारियों ने माना है कि सरकार ‘थिंगताम’ — यानी बांस की प्रजाति ‘रॉथिंग’ के लगभग हर 48 साल में फूलने वाले प्राकृतिक चक्र — के लिए तैयार नहीं थी. पिछली बार यह घटना 1977 में दर्ज की गई थी.
यह वही चक्र है जो मिजोरम में ‘माउताम’ जैसी स्थिति पैदा कर सकता है, जिसमें बांस के फूलने के बाद चूहों की आबादी विस्फोटक रूप से बढ़ जाती है और फसलें तबाह हो जाती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में यह प्रकोप और तेजी से बढ़ सकता है, क्योंकि चूहों का प्रजनन जारी है. इससे मिजोरम की इस साल की कृषि उपज पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
शुरुआती रिपोर्टों में बताया गया कि यह प्रकोप पहले सैतुअल, सेरछिप और खावजावल जिलों में शुरू हुआ था, जहां लगभग 800 किसानों की फसलें पहले ही नष्ट हो चुकी थीं.
राज्य सरकार ने मिजोरम विश्वविद्यालय के जीवविज्ञान विभाग (Zoology Department) को चूहों की प्रजाति की पहचान करने का निर्देश दिया है, क्योंकि शुरुआती जांच में कई प्रजातियों की भागीदारी की संभावना जताई गई है, जिससे नियंत्रण उपाय और मुश्किल हो रहे हैं.
रॉथिंग बांस को बंबुसा टुल्डा कहा जाता है और इसका लोकप्रिय नाम इंडियन टिंबर बंबू या बंगाल बांस है. यह बांस किसानों को आर्थिक मजबूती देता है, खासकर उत्तर पूर्व के राज्यों में. इन राज्यों के किसान बांस की खेती से अच्छी कमाई करते हैं.
यह बांस 1,500 मीटर तक की ऊंचाई पर मिले-जुले पतझड़ वाले जंगलों, मैदानों, घाटियों और नदियों के किनारे पाया जाता है.
इसे दोमट या जलोढ़ मिट्टी और उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली जगह पसंद है. हालांकि इसे बीजों से उगाया जा सकता है, लेकिन बीज के अंकुरण में आने वाली दिक्कतों के कारण अक्सर गुच्छों को बांटकर उगाने जैसे तरीकों को ज्यादा पसंद किया जाता है.