Kashmir Cherry:अब मुंबई के लोग भी जम्मू और कश्मीर में उगाई गईं चेरी का स्वाद चख पाएंगे. दरअसल तीन जून को जम्मू रेलवे डिवीजन की तरफ से कटरा स्टेशन से मुंबई के बांद्रा तक एक खास कार्गो ट्रेन चलाई जाएगी. यह ट्रेन जम्मू रेलवे डिवीजन के पहले वीपी इंडेंट (माल की शिपमेंट के लिए एक पूर्ण पार्सल वैन के आवंटन का अनुरोध) के तहत चलेगी. इसका मकसद बाहर जल्दी खराब होने वाली फसल को ट्रांसपोर्ट करना है. लेकिन इससे घाटी के किसानों को बड़ी मदद मिलेगी और घाटी की अर्थव्यवस्था में भी बदलाव आएगा.
कश्मीर, भारत में चेरी उत्पादन का एक प्रमुख क्षेत्र है. यह देश के कुल चेरी उत्पादन में करीब 95 प्रतिशत योगदान देता है. कश्मीर में हर साल करीब 12,000 से 14,000 मीट्रिक टन चेरी का उत्पादन होता है और करीब 2,800 हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है. कश्मीर में चेरी की फसल कई किसान परिवारों के लिए आय का एक अहम जरिया है. हालांकि कुल उत्पादन सेब या बादाम की तुलना में मामूली लग सकता है लेकिन इसका आर्थिक प्रभाव बहुत ज्यादा है. चेरी मौसम की पहली फल फसल है, जो लंबी सर्दी और शरद ऋतु में सेब की फसल से पहले के महीनों के बाद किसानों को बहुत जरूरी आय प्रदान करती है.
कश्मीर में चेरी की खेती- गंदेरबल, शोपियां, बारामुल्ला और श्रीनगर जैसे जिलों में होती है. इसकी खेती घाटी के बागवानी कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है. चेरी के बाग जो कश्मीर में हैं वो न केवल सुंदर हैं बल्कि हजारों किसान परिवारों के दिल की धड़कन हैं. यहां के किसान कहते हैं कि गांवों में चेरी का पेड़ कैलेंडर की तरह होता है. यह उन्हें बताता है कि कड़ी मेहनत कब शुरू होती है. लेकिन वह इसकी खेती को एक जुआ भी बताते हैं. एक ओलावृष्टि पूरे साल की मेहनत को बेकार कर सकती है.
चेरी की फसलें बहुत नाजुक होती हैं, बारिश, धूप और यहां तक कि अपने खुद के खिलने के समय के लिए भी ये काफी संवेदनशील मानी जाती है. इस साल, जब फसल की कटाई शुरू हुई तो किसान चिंतित थे. फसल विशेष तौर पर देर से वसंत की बारिश और ओलावृष्टि के लिए खास संवेदनशील है और ये घटनाएं अब घाटी में तेजी से हो रही हैं. कश्मीर में चेरी की खेती काफी विविधतापूर्ण भी है. घाटी में आठ प्रमुख किस्में पाई जाती हैं- मीठी, काली ‘मिश्री’ से लेकर गहरे लाल रंग की ‘मखमली’ और ठोस ‘दबल’ तक.
मिश्री अपनी मिठास और शेल्फ लाइफ के कारण स्थानीय और राष्ट्रीय बाजारों में छाई हुई है. बदलते मौसम और उपभोक्ता मांगों के अनुसार नई यूरोपियन किस्में भी अब यहां पर पेश की जाने लगी हैं. कई चुनौतियों के बावजूद चेरी की खेती घाटी में भावनात्मक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बनी हुई है. किसान कहत हैं कि यह सिर्फ एक फल नहीं है बल्कि उनकी कहानी और उनका अस्तित्व है.
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