कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को बीटी कॉटन की क्षमता पर सवाल उठाया है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसे अपनाने के बावजूद, कपास के पौधे पर पिंक बॉलवर्म के हमले सहित कई समस्याओं के कारण उत्पादन कम हो गया है. उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से यह भी कहा कि वह विचार करे कि कई किस्में जारी होने के बावजूद देश में कपास का उत्पादन क्यों कम हुआ है. आईसीएआर के स्थापना दिवस समारोह में बोलते हुए, कृषि मंत्री ने किसानों द्वारा उठाई जा रही कई चिंताओं को उनके सामने रखा और अधिकारियों से उन मुद्दों का समाधान करने का अनुरोध किया. उनके ये विचार 11 जुलाई को कोयंबटूर में कपास पर एक उत्पादक बैठक में दिए गए उनके बयानों के बाद आए हैं.
बैठक में शिवराज सिंह चौहान ने भारत में कपास उत्पादन की चुनौतियों को स्वीकार किया, क्योंकि भारत की उत्पादकता अन्य देशों की तुलना में कम है. उन्होंने कहा कि बीटी कपास की किस्म, जिसे कभी पैदावार बढ़ाने के लिए विकसित किया गया था, अब बीमारियों के खतरे का सामना कर रही है, जिसके चलते उत्पादकता में गिरावट आ रही है. उन्होंने आगे कहा कि भारत को भी अन्य देशों की तरह आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके और रोग प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाले बीज विकसित करके कपास की उत्पादकता बढ़ाने के लिए हर संभव कदम उठाना चाहिए.
उर्वरकों के साथ अन्य उत्पादों को टैग करने की प्रथा पर कड़ी आपत्ति जताते हुए, कृषि मंत्री ने सचिव से एक हेल्पलाइन शुरू करने को कहा, जहां किसान सीधे शिकायत कर सकें और खुदरा विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जा सके. पिछले कुछ वर्षों में सब्सिडी वाले यूरिया और डीएपी के साथ नैनो उर्वरकों को टैग करना एक आम बात हो गई है और उर्वरक मंत्रालय ने इस पर रोक लगाने के लिए राज्यों और कंपनियों को पत्र भेजने के अलावा कोई खास कार्रवाई नहीं की है. यह मामला प्रतिस्पर्धा आयोग तक भी पहुंचा था.
कृषि मंत्री ने अधिकारियों से कहा कि वे इस बात की समीक्षा करें और जांच करें कि क्या जैव-उत्तेजक पदार्थों पर मूल्य नियंत्रण किया जा सकता है, क्योंकि किसानों को लगता है कि उत्पादों के किसी विश्वसनीय सत्यापन के बिना ही उन्हें बहुत ऊंची कीमतों पर उपज में भारी वृद्धि के वादे के साथ धोखा दिया जा रहा है. उन्होंने वैज्ञानिकों से कृषि मशीनरी पर अनुसंधान करने को कहा, जो छोटे किसानों के लिए उपयुक्त हो, क्योंकि देश में भूमि का आकार छोटा है.
इस कार्यक्रम में बोलते हुए आईसीएआर के महानिदेशक एमएल जाट ने भविष्य के लिए 10 सूत्री एजेंडा की रूपरेखा प्रस्तुत की, जिसके तहत आईसीएआर को पुनः दिशा निर्धारित करनी होगी. आईसीएआर इस वर्ष अपने 100 से अधिक शोध संस्थानों द्वारा तैयार किए गए विज़न दस्तावेज़ों पर काम करेगा और सभी संस्थानों के बीच तालमेल भी स्थापित करेगा. जाट ने बताया कि शोध क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी, साथ ही मंत्री द्वारा निर्धारित राज्यव्यापी कार्य योजना के साथ इसे मांग-आधारित बनाया जाएगा.
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि आईसीएआर तिलहन और दलहन अनुसंधान पर विशेष ध्यान देगा, जहां बहुत कुछ करने की आवश्यकता है, क्योंकि देश आयात पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि मिट्टी का संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसलिए आईसीएआर एक राष्ट्रीय मिट्टी और लचीलापन कार्य योजना के साथ-साथ एक राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजना भी बनाएगा. आईसीएआर कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रौद्योगिकी और ज्ञान में उत्कृष्टता का एक नोडल केंद्र स्थापित करेगा.
उन्होंने कहा कि एक अभिनव योजना के तहत, आईसीएआर ग्लोबल की परिकल्पना की गई है क्योंकि यह पहले से ही जी-20 जैसे कई अंतरराष्ट्रीय मंचों के साथ काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि आईसीएआर में इसके माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की क्षमता और योग्यता है. उन्होंने आईसीएआर को निजी कंपनियों के साथ मिलकर उनके सीएसआर फंड का आकलन करने के लिए और अधिक नजदीक से काम करने का भी समर्थन किया.
इस अवसर पर शिवराज सिंह चौहान ने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अनुसंधान संस्थान द्वारा वैज्ञानिकों को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उत्कृष्ट कर्म निष्पाक पुरस्कार दिया. ये पुरस्कार उत्कृष्ट महिला वैज्ञानिक, युवा वैज्ञानिक, नवोन्मेषी वैज्ञानिक सहित अलग-अलग श्रेणियों में दिए गए. पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं में सहायक महानिदेशक (एडीजी) एसके प्रधान और पीके दाश और लुधियाना स्थित भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के निदेशक एचएस जाट शामिल हैं.
निष्कर्ष- हाल के वर्षों में जिस तरह से बीटी कॉटन का उत्पादन गिरा है उसे लेकर किसानों के साथ साथ वैज्ञानिकों में भी चिता है. बहुत तैयारी के साथ बीटी कॉटन को भारत के बाजार में उतारा गया था. यह सोचकर कि इसका उत्पादन हमेशा अधिक रहेगा, इस पर कीट आदि का अटैक नहीं होगा. मगर अब सबकुछ उलटा हो रहा है. इसे देखते हुए कृषि मंत्री का बीटी कॉटन पर उठाया गया सवाल जायज है और वैज्ञानिक समुदाय को इसका सटीक जवाब भी ढूंढना चाहिए.