झारखंड के दो किसानों का चयन राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए किया गया है. एक मार्च को दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा इन दोनों किसानों को नवोन्वेषी कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. इन किसानों के नाम मीनू महतो और बीना उरांव हैं. मीनू महतो झारखंड में कृषि के लिए एक जाना माना नाम हैं. कृषि से जुड़ा हर कोई उनके बारे में जानता है. उन्होंने कृषि के जरिए एक लंबा सफर तय किया है. हजारीबाग जिले के रहने वाले मीनू महतो अपनी उन्नत कृषि तकनीक के लिए किसानों के प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं.
मीनू महतो ने अपने सफर के बारे में 'किसान तक' से बातचीत की. उन्होंने बताया कि उनका बचपन काफी गरीबी में बीता. पिताजी खेती करते थे पर उन्नत कृषि की जानकारी नहीं थी. इसके कारण अच्छी उपज नहीं हो पाती थी और अच्छी कमाई भी नहीं हो पाती थी. किसी तरह उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की और फिर इंटर में एडमिशन कराया. उन्होंने कहा कि आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है, ये कहावत उनके जीवन में भी हुई. अपने जीवन में कृषि के प्रति झुकाव के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि जब वो इंटर में थे तब उन्होंने हरित क्रांति के बारे में पढ़ा, वहीं से उनके जीवन में बदलाव की शुरुआत हुई. मीनू महतो मुख्य रुप से धान गेहूं, मकई, अरहर चना, मसूर, मूंग, राई, सरसों सब्जी में प्याज, फूलगोभी, पत्तागोभी और मटर के अलावा अन्य सब्जियों की खेती करते हैं.
हरित क्रांति के बारे में पढ़ने और समझने के बाद मीनू महतो ने जान लिया की खुद को और परिवार को गरीबी से बाहर निकालने का यही एक तरीका है. इसके बाग उन्होंने सन 1973 में 272 रुपए का एक रेडियो खरीदा. उस समय आकाशवाणी रांची से हर दिन सुबह औऱ शाम में खेती बारी से संबंधिक कार्यक्रम का प्रसारण होता था. जिसे वो सुनते थे. इस कार्यक्रम में उन्हें उन्नत कृषि की जानकारी मिलती थी, जिसे वो अपने खेत में आजमाते थे, साथ ही अपने पिता को भी इस बारे में बताते थे. मीनू महतो बताते हैं कि जब उन्होंने रेडियो में दी गई जानकारी को खेतों में आजमाया तब खेतों में उत्पादन चार गुणा बढ़ गया. जहां पहले 100 किलो का उत्पादन होता था, वहां अब 400 किलो का उत्पादन होने लगा.
उनके बढ़ते उत्पादन को देखते हुए और भी किसान उनसे प्रेरित हुए और उन लोगों ने भी मीनू महतो की तरह ही खेतो में उन्नत तकनीक से खेती करना शुरू किया. इससे पूरे आस-पास के क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ गया और लोगों की गरीबी दूर करने में मदद मिली. उन्होंने बताया कि वो बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी गए और वहां से उन्नत बीज लेकर आए. इसके अलावा रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया. इससे उत्पादन चार गुणा बढ़ गया. मीनू महतो बताते हैं इसके बाद उन्होंने ठान लिया की वो खेती ही करेंगे. इसके बाद उन्होंने एक पंपसेट लिया. इससे खेतों में सिंचाई करने की समस्या खत्म हो गई. पास में ही स्थित एक नदी से पानी लाने लगे.
उन्होंने सबसे पहले धान के उन्नत बीज लिए और उसकी खेती की. इसके साथ ही जो मजदूर उनके खेते में मजदूरी करने आते थे उन्हें भी धान के बीज देने लगे. इस तरह से सभी लोग उन्नत धान की खेती करने लगे और पूरे इलाके में धान का उत्पादन बढ़ गया. इसके बाद उन्होंने गेहूं की खेती की और इसी तरह से आसपास के किसानों को गेहूं के उन्नत बीज दिए. इसके बाद मकई के उन्नत किस्म के बीज का भी उन्होंने इसी तरह से प्रसार किया. यही वजह है कि आज इनके इलाके में जो भी किसान हैं वो उन्नत खेती करते हैं और कृषि में अच्छी कमाई करते हैं. कृषि के प्रति उनकी समझ को देखते हुए उन्हें बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ने तीन साल के लिए सीनेट का सदस्य बनाया था. इसके साथ ही उन्हें आकाशवाणी रांची के कार्यक्रमों में बुलाया जाता था. इसके अलावा राज्य स्तर के कई कमिटिय़ों के सलाहकार भी रहे हैं.
संत कोलंबस कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले मीनू महतो बताते हैं कि आज खेती ने उन्हें वो मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा सब कुछ दिया है जो वो सरकारी नौकरी भी करके हासिल नहीं कर सकते थे. उन्होंने बताया कि खेती के बदौलत ही उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन को भी आगे बढ़ाया है. उन्होंने कहा कि आज उनके पास लगभग 18-19 एकड़ जमीन है. इसमें लगभग 15 एकड़ जमीन उन्होंने अपनी कमाई से खरीदी है. दो ट्रैक्टर खरीदा है. हजारीबाग शहर में एक घर बनाया है. बच्चों को अच्छी शिक्षा दी है.बच्चे आज अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं.
किसान आंदोलन को लेकर मीनू महतो कहते हैं किसानों की मांगे जायज हैं. क्योंकि आज सरकारी नौकरी करने वाले एक चपरासी की जो इज्जत है वो किसान की नहीं होती है. किसान के बेटे के पास अगर 20 एकड़ की जोत जमीन है तब भी कोई उससे अपनी बेटी का ब्याह नहीं करना चाहता है. जबकि अगर किसी को चपरासी की नौकरी लग जाती है तो उससे दहेज देकर भी अपनी बेटी का ब्याह करने के लिए लोग तैयार रहते हैं. इस मानसिकता को दूर करना होगा. इसके अलावा उन्होंने कहा कि आज कृषि इनपुट महंगा हो गया है. उन्होंने बताया की साल 1994 में उन्होंने एक साल के धान को बेचकर ट्रैक्टर खरीद लिया था, पर आज चार साल का धान बेचकर भी किसान ट्रैक्टर नहीं खरीद पाते हैं. इसलिए किसानों की मांगे जायज हैं.
मीनू महतो को राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाने को लेकर झारखंड किसान महासभा के केद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पंकज रॉय ने कहा कि झारखंड में प्रतिभाशाली किसानों की कमी नहीं है. खास कर काफी पढ़े लिखे और टैलेंटेड युवा इस क्षेत्र में आ रहे हैं और स्टार्टअप के तौर पर इसे अपना रहे हैं. अगर राज्य सरकार की तरफ से राज्य में कृषि को लेकर स्पष्ट नीति हो और सही तरीके से योजनाएं लागू कि जाएंगी तो कृषि क्षेत्र में रोजगार के बहुत अवसर पैदा हो सकते हैं. मीनू महतो जैसे किसान राज्य के अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत की तरह हैं.