देश में सूरजमुखी को नकदी फसल के रूप में जाना जाता है. यह तिलहन वाली फसल है. किसान सूरजमुखी की खेती रबी, जायद और खरीफ तीनों सीजन में कर सकते हैं. इसकी खेती में कम लागत में ज्यादा मुनाफा होता है. किसान इसकी खेती की सही जानकारी लेकर बढ़िया उत्पादन ले सकते हैं. सूरजमुखी की फसल की अच्छे जल निकास वाली सभी तरह की मिट्टी में खेती की जा सकती है. दोमट और बलुई मिट्टी जिसका पी-एच मान 6.5-8.5 हो, इसके लिए बेहतर मानी जाती है. सूरजमुखी की अच्छी फसल के लिए 26-30 डिग्री सेल्सियस तापमान सही माना जाता है. लेकिन इसकी अच्छी पैदावार के लिए उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल बहुत जरूरी है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बीजों को बुवाई से पहले 1 लीटर पानी में जिंक सल्फेट की 20 ग्राम मात्रा मिला कर बनाए गए घोल में 12 घंटे तक भिगो लें. फिर उस के बाद छाया में 8-9 फीसदी नमी बच जाने तक सुखाएं. फिर बीजों को बाविस्टिन या थीरम से उपचारित करें. कुछ देर छाया में सुखाने के बाद पीएसबी 200 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजों का उपचार करें. उसके बाद बीजों को 24 घंटे तक सुखाएं और फिर बुवाई करें.
सूरजमुखी की 15 जून के बाद बीज उपचारित करके बुवाई करें. इसकी अच्छी पैदावार के लिए अच्छी किस्मों का होना भी बहुत जरूरी है. उन्नत संकुल प्रजातियां जैसे-सूर्या, मॉडर्न, डीआरएफ-108 तथा संकर प्रजातियों में केवीएसएच-1, एसएच-3322, पीएसएफएच-118, पीएसएफएच-569, एचएसएफएच--848, मारुति, केवीएसएच 41, केवीएसएच 42, केवीएसएच-44 व केवीएसएच-53 प्रमुख हैं. सूरजमुखी की बुवाई के 15-20 दिनों बाद खेत से आवश्यक पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें. रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथलीन (30 ईसी.) 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के बाद एवं जमाव से पहले छिड़काव करें.
उर्वरक का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए. मिट्टी जांच न हो तो 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश एवं 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए. खरपतवारों की रोकथाम के लिए प्री इमरजेंस फ्लूक्लोरीन का 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई से 4-5 दिनों बाद छिड़काव करें. दोबारा 30-35 दिनों बाद हाथों से बचे हुए खरपतवारों को उखाड़ दें.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयलसीड रिसर्च के अनुसार सूरजमुखी की फसल कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में ज्यादा होती है. यहां देश के कुल सूरजमुखी का लगभग 80 प्रतिशत उत्पादन होता है. बसन्त एवं रबी के मौसम में पंजाब, हरियाणा, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में इसका उत्पादन अधिक होता है.
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