हमारा देश कृषि प्रधान देश है. यहां अधिकतर मिश्रित खेती की जाती है. यहां किसान अनाज वाली फसलों के अलावा थोड़ा हरा चारा भी उगाते हैं. हमारे देश में पशुओं की संख्या अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है, लेकिन भारत में लगभग 4% कृषि योग्य भूमि पर ही चारा उगाया जाता है. एक ओर जहां हरे चारे की कमी है, वहीं दूसरी ओर पशुओं को दिए जाने वाले अनाज और चारे के दाम बढ़ रहे हैं. इसलिए किसानों के पास उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाकर प्रति हेक्टेयर हरे चारे का उत्पादन बढ़ाने और पशुओं को खिलाने पर होने वाले खर्च को कम करने का अच्छा विकल्प है.
जिस प्रकार उन्नत किस्मों के अनाज से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरक की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार दुधारू पशुओं, विशेषकर संकर गायों को भी संतुलित मात्रा में भोजन की आवश्यकता होती है. यह देखा गया है कि गर्मी के महीनों में हरा चारा खिलाने से गायों और भैंसों के दूध उत्पादन में 25% की वृद्धि होती है. अप्रैल तक बरसीम, जई, रिजके का हरा चारा उपलब्ध होता है, लेकिन मई और जून में हरे चारे की उपलब्धता कम हो जाती है.
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इसलिए इस मौसम में हरे चारे की उपलब्धता बहुत जरूरी है. फरवरी में आलू की खुदाई और मार्च में सरसों की कटाई के बाद खेत खाली हो जाते हैं. इसलिए अगर फरवरी-मार्च में हरा चारा बोया जाए तो मई और जून में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है. अब सवाल यह है कि इस मौसम में मक्का और लोबिया मुख्य अगेती चारा फसलें हैं. इन फसलों की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए कौन सा तरीका अपनाएं आइए जानते हैं.
बलुई दोमट मिट्टी मक्का के लिए उपयुक्त होती है. खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा उसके बाद देशी हल या हैरो से दो बार जुताई करने के बाद खेत बुवाई के लिए तैयार हो जाता है.
बुवाई से 20-25 दिन पहले खेत में प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर की खाद अच्छी तरह मिला दें. मक्का को प्रति हेक्टेयर 60-90 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 25-30 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पहले खेत में मिला दें. बची हुई नाइट्रोजन बुवाई के एक माह बाद डालें.
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प्रताप मक्का-6, अफ्रीकन टाल, गंगा-2, गंगा-5, जे-1006, गंगा-6 तथा गंगा-7
हरे चारे के लिए मक्का की बुवाई के लिए 40-45 किलोग्राम बीज को 25-30 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए. फलीदार फसलें जैसे ग्वार या लोबिया को 3:1 के अनुपात में मक्का के साथ मिलाकर बोना अधिक लाभदायक होता है. मक्का की बुवाई पहली बारिश के बाद करनी चाहिए. जून-जुलाई बुवाई के लिए सबसे अच्छा महीना है.
मक्का में तना छेदक कीट का प्रकोप अधिक होता है. इसके नियंत्रण के लिए पौधों के गमलों में फोरेट 10 जी 5 से 7.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें अथवा ट्राइकोग्रामा परजीवी 50,000 प्रति हेक्टेयर की दर से फसल अवस्था 10, 20 और 30 दिन पर तीन बार छोड़ें. खरपतवार नियंत्रण के लिए एक किलोग्राम एट्राजीन को 600 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करें.
मक्का की कटाई तब करनी चाहिए जब 50 प्रतिशत फूल आ जाएं। मक्का से प्रति हेक्टेयर 400-800 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है.