सरसों की नई फसल की आनी शुरू हो गई है, इसलिए उत्पादन बढ़ने के बाद बाजार में कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम होने से किसान निराश हैं. माना जा रहा है कि यह इस साल 14 मिलियन टन (एमटी) तक पहुंच सकता है. हालांकि, व्यापारी देश में सरसों तेल की कम खपत और तिलहन की कीमतों में सुस्ती के लिए सस्ते खाद्य तेलों के आयात को जिम्मेदार मानते हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में मंडी दरें कम हो गई हैं. बढ़े हुए रकबे और बाजार में आवक के बावजूद, किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. जबकि व्यापारी सस्ते खाद्य तेलों के आयात और पिछले साल के उत्पादन में देरी को कीमतों में गिरावट का कारण बताते हैं.
इस वर्ष सरसों की फसल का रिकॉर्ड उत्पादन लगभग 14 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है. यह पिछले वर्ष के 12.64 मिलियन टन के उत्पादन को पार कर जाएगा. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, विदर्भ, मराठवाड़ा, झारखंड, असम, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड क्षेत्रों जैसे राज्यों में रकबे में उल्लेखनीय वृद्धि ने उत्पादन में वृद्धि में योगदान दिया है. देश भर की मंडियों में 18-25 फरवरी के बीच एक लाख टन सरसों की आवक हुई. इसमें राजस्थान का योगदान सबसे ज्याा था. हालांकि, औसत मंडी कीमतें एमएसपी से नीचे रहीं. राजस्थान में इसकी कीमत 4820 रुपए प्रति क्विंटल मध्य प्रदेश में 4520 प्रति क्विंटल और गुजरात में 4858 प्रति क्विंटल रही.
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कहा जा रहा है कि कृषि मंत्री के एमएसपी पर खरीद के भरोसे के बाद भी किसानों को सरसों बेचते समय 1200 प्रति क्विंटल का घाटा उठाना पड़ रहा है. साथ ही नौकरशाहों द्वारा इन भरोसों के कार्यान्वयन को लेकर खासी चिंताएं हैं. दूसरी ओर व्यापारियों और प्रोसेसरों की तरफ से संकेत मिला है कि पिछले साल के उत्पादन का 15 से 20 फीसदी किसानों ने बेहतर कीमतों की उम्मीद में रोक लिया था. अब वो कम कीमतों की वजह दूसरे देशों से सस्ते खाद्य तेलों के अनियंत्रित आयात को बताते हैं.
सरकार को सरसों के एमएसपी को ध्यान में रखते हुए, सरसों के तेल की दरों के आधार पर खाद्य तेलों पर आयात शुल्क तय करने के लिए सुझाव दिए गए हैं. विशेषज्ञों की मानें तो 5650 प्रति क्विंटल के एमएसपी और 42 फीसदी तेल सामग्री के साथ, बाकी लागतों को छोड़कर, प्रोसेसर के लिए सरसों के तेल की कीमत 135 रुपए प्रति लीटर होनी चाहिए. हालांकि, दिल्ली एनसीआर में मौजूदा खुदरा कीमत इससे कम से कम 10 रुपए कम है.
सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन किसानों के लिए समृद्धि में तब्दील होने में असफल रहता है. बढ़े हुए रकबा और आवक की वजह से उन्हें खुश होना चाहिए. लेकिन एमएसपी से नीचे कीमतों में गिरावट की वास्तविकता कृषि बाजारों को परेशान करने वाले एक बड़े मसले को सामने लाती है. सरसों के किसानों की आजीविका की सुरक्षा और बाजार की अस्थिरता के खिलाफ भारत के कृषि क्षेत्र की लचीलापन को मजबूत करने के लिए स्थायी समाधान जरूरी हैं.
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